SHIVPURI NEWS - पिछोर में राशन लूट का खुला खेल, प्रशासन और दुकानदारों की मिलीभगत से गरीब की थाली खाली

Bhopal Samachar

पिछोर। पिछोर में गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हजारों परिवारों का हक खुलेआम लूटा जा रहा है। सरकारी राशन वितरण प्रणाली अब सिर्फ कागज़ों में पारदर्शी दिखती है, जबकि जमीनी हकीकत बेहद डरावनी और शर्मनाक है। प्रशासन और राशन दुकानों के बीच की मिलीभगत ने इस लूट को 'सिस्टम' का हिस्सा बना दिया है।

गोदाम से निकलती गाड़ियां, दुकान तक नहीं पहुंचती
प्रत्येक दिन गोदामों से सरकारी अनाज से भरी गाड़ियां निकलती हैं, लेकिन ये गाड़ियां गरीबों तक पहुंचने की बजाय गुप्त रूप से कहीं और गायब हो जाती हैं। जिम्मेदार अधिकारी और फूड इंस्पेक्टर आंखें मूंद लेते हैं-या कहें जानबूझकर अनदेखी करते हैं।

राशन दुकानों पर दर्ज स्टॉक, लेकिन वितरण ज़ीरो
राशन दुकानों की ई-पॉस मशीनों में 500 से 800 यूनिट स्टॉक दर्ज है, फिर भी गरीब उपभोक्ता को यह कहकर टाल दिया जाता है—"मशीन डाउन है", "अभी माल नहीं आया", या "डेटा अपडेट नहीं हुआ है"। सूत्र बताते हैं कि स्टॉक होते हुए भी यह राशन 'कागज़ी उपभोक्ताओं' के नाम पर निकालकर बाजार में बेच दिया जाता है।

कार्रवाई का दिखावा, माफिया की सेटिंग हावी
जब मीडिया या शिकायत के दबाव में ट्रक पकड़े भी जाते हैं, तो उन्हें जब्त दिखाकर रात में 'गायब' कर दिया जाता है। प्रशासन की ओर से दी जाने वाली सफाई हास्यास्पद होती है—"चावल तो किसान का था" या "गोदाम की एंट्री में त्रुटि थी"।

फूड इंस्पेक्टर बना दलाल, दुकानदार बना ठेकेदार का साझीदार
वह फूड इंस्पेक्टर जिसे निगरानी की जिम्मेदारी दी गई थी, अब वही इस गोरखधंधे का 'ऑपरेशन मैनेजर' बन बैठा है। राशन दुकानों के संचालक भी इस खेल के अभ्यस्त खिलाड़ी हैं—फर्जी लाभार्थी, मशीन में छेड़छाड़ और स्टॉक के झूठे आंकड़े इनके नए हथियार हैं।

प्रशासनिक अफसर सवालों के घेरे में, कार्रवाई नदारद
इस लूट पर अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। जिन अफसरों को व्यवस्था सुधारनी थी, वे बैठक दर बैठक में मशगूल हैं। उनकी कलम माफिया के सामने कांपती है और आदेश सिर्फ कागजों में जारी होते हैं।

अब पिछोर बोलेगा
पिछोर की जनता अब खामोश नहीं। जनजागृति की लहर उठ चुकी है। लोगों ने तय कर लिया है—गोदाम से लेकर राशन दुकान तक हर ताले पर सवाल खड़े किए जाएंगे। दोषियों को उजागर कर सज़ा दिलाने तक यह आवाज़ थमेगी नहीं।