MADHAV TIGER RESERVE - गांव के घर बने पिंजरे,जानवरों के कारण झुंड में निकल रहे लोग

Bhopal Samachar

शिवपुरी। शिवपुरी के माधव टाइगर रिजर्व की सीमा मे लगभग 1 दर्जन गांवों का विस्थापन नहीं हुआ है। रिजर्व प्रबंधन और ग्रामीणों के बीच मुआवजे को लेकर लड़ाई चल रही है,वर्तमान समय में टाइगर खुले में भ्रमण कर रहे है और वह उन गांवो तक पहुंच रहे जहां अभी मानव आबादी निवास कर रही है। इस कारण ग्रामीण दहशत मे है और उनने जंगली जानवरों से बचने के लिए अपने घरो को पिंजरा बना लिया है। इसी के चलते अब ग्रामीणों ने अपने मवेशियों के सार में जालियां लगवा ली हैं। मंदिर में भी लोहे की जालियां लगवा ली गई हैं, ताकि वह यहां पर सुरक्षित बैठ, उठ सकें।

वर्तमान में मामोनी में जो हालात गांव में हैं, उन्हें देखकर यह कहा जाए कि गांव में टाइगर, पिंजरे में ग्रामीण व मवेशी तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। ग्रामीणों का कहना है कि टाइगर दो-चार दिन में गांव के आसपास आ रहा है। एक बार तो ग्रामीणों ने उसे हैंडपंप के पास गड्ढे से पानी पीते हुए भी देखा था। ग्रामीणों के अनुसार टाइगर ने कई मवेशियों का शिकार भी कर लिया है। इस संबंध में टाइगर रिजर्व प्रबंधन का दावा है कि जंगल में पानी के पर्याप्त स्त्रोत मौजूद हैं। जहां सभी जंगली जानवरों के लिए पर्याप्त पानी उपलब्ध है। रही बात गांवों में टाइगर के पहुंचने की तो जंगल टाइगर का घर है। वह जंगल में कहीं भी जा सकता है और पानी पी सकता है।

यह है विस्थापन का पूरा विवाद
माधव नेशनल पार्क की सीमा में आने वाले गांव मामौनी, लखनगेवा, महुआखेड़ा, चकडोंगर, हरनगर के ग्रामीणों के विस्थापन के लिए सरकार ने 2004 में जमीन के अधिग्रहण कार्य शुरू किया था। वर्ष 2008 में कुछ ग्रामीणों को पड़त जमीन का 27 हजार रुपये प्रति बीघा, असिंचित जमीन का 31 हजार रुपये प्रति वीधा और सिंचित जमीन का 37 हजार रुपये प्रति बीघा के मान से मुआवजा दिया गया। तत्समय के नियमानुसार भू-स्वामी का मुआवजा और परिवार के प्रत्येक बालिग सदस्य को एक लाख रुपये मुआवजा दिया जाना था।

सरकार ने किसी को भी एक लाख रुपये प्रति सदस्य के मान से मुआवजा नहीं दिया। विवाद लगातार बना रहा, यह लड़ाई सड़क से लेकर संसद तक चली। समय के साथ नियम भी बदले। ऐसे में जिन लोगों को मुआवजा नहीं दिया गया, उन लोगों की मांग है कि उन्हें वर्तमान मान के हिसाब से मुआवजा दिया जाए, जबकि प्रशासन उन्हें पुराने मान से ही मुआवजा देने के लिए तैयार है।

झुंड के रूप में रहते हैं ग्रामीण
ग्रामीणों के अनुसार टाइगर की दहशत के कारण अब गांव के लोग ज्यादातर समय झुंड के रूप में रहते हैं, ताकि अगर टाइगर या अन्य कोई जंगली जानवर आ भी जाए तो वह उन पर हमला न कर सके। ग्रामीणों के अनुसार अगर वह अंधेरे में या अल सुबह शौच आदि के लिए भी जाते हैं तो भी झुंड के रूप में ही जाते हैं ताकि कोई जानवर उन पर हमला न कर सके।

हर दो किमी पर पानी उपलब्ध
जंगली जानवरों को जंगल में पानी की उपलब्धता के संबंध में जब सिंह परियोजना के संचालक उत्तम शर्मा से बात की गई तो उनका कहना था कि जंगल में हर दो किमी पर जानवरों के लिए पानी की उपलब्धता होनी चाहिए। हमने वह उपलब्धता करवा रखी है। कई जगल पर प्राकृतिक स्त्रोत मौजूद हैं तो कई जगह हमने टंकियां आदि बनवा रखी है, ताकि जानवरों को पानी मिल सके।