शिवपुरी। शिवपुरी में यज्ञोपवीत संस्कार ग्रहण कराने का बड़ा आयोजन 9 अप्रैल को नक्षत्र गार्डन में होने जा रहा है। वर्ल्ड स्प्रिचुअल फॉउंडेशन के संस्थापक डॉ रघुवीर सिंह गौर ने बताया की इस आयोजन में नगर के सभी प्रमुख सामाजिक संगठनों का सहयोग प्राप्त हो रहा है। सैंकड़ों की संख्या में जनेऊ संस्कार के लिए पंजीयन हो चुके हैं।
उन्होंने यज्ञोपवीत संस्कार के बारे में जानकारी देते बताया कि यह प्रबंध सनातन संस्कृति में ही निहित है, जिसमें प्रत्येक संस्कार को शारीरिक उपचार के प्राकृतिक शोध से जोड़कर समाज के लिए प्रचलन में लाया गया है। इन्हीं में ही एक है यज्ञोपवीत अर्थात उपनयन या जनेऊ संस्कार। वैदिक काल में स्थापित इस संस्कार से तात्पर्य वेदों के पठन, श्रवण तथा अध्ययन-मनन से है। इन लक्ष्यों को पूर्ति के हेतु गुरु शिष्य को कहते है, 'मैं तुम्हें यज्ञोपवीत धारण कराता हूं, जिससे तुम दीर्घायु, बल और तेजस्विता प्राप्त कर सर्वगुण संपन्न बन जाओ।
दरअसल उस कालखंड में यज्ञोपवीत संस्कार के उपरांत ही ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए विद्यार्जन का द्वार खुलता था। बहुमुखी प्रतिभा विविध क्षेत्रों में विकसित करने और समाज में कीर्तिमान व प्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन इसलिए आवश्यक था, जिससे एकाग्रता भंग न हो और चित्त विचलित न हो। डॉ गौर ने आगे कहा कि , आज देखने में आ रहा है कि महानगरों में शिक्षारत युवा विद्यार्थी सभी प्रकार के अनुशासनों से मुक्त होकर विवाह पूर्व ही समागम कर यशस्वी जीवन को बर्बादी की ओर धकेल रहे हैं।
फलतः व्यभिचार और आत्महत्याएं बढ़ रहे हैं। ऐसा सभी वर्ण के युवक-युवतियों में देखने में आ रहा है। सरकार इससे निपटने का उपाय कानून में देखती है और समाज थानों में प्रकरण दर्ज करा देने में ? शास्त्रसम्मत ज्ञान को इस परिप्रेक्ष्य में खूंटी पर टांग दिया है। अतएव गुरु और षिश्यों को सनातन ज्ञान से जोड़े बिना अविवाहित रहते हुए युवाओं के बढ़ते संसर्ग को अनुषासित करना कठिन है।
यज्ञोपवीत के बारे में जानकारी देते हुए उन्होंने कहा कि उपनयन संस्कार के अंतर्गत सूत के तीन धागों का जनेऊ धारण कराया जाता है। इस यज्ञोपवीत से तात्पर्य ओंकार (ऊँ) को अपने शरीर पर धारण करना है। ओंकार के अर्थ में चित् तथा आनंद की अनुभूति के भाव हैं। ये तीन धागे भगवान विष्णु के तीन चरणों और ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के भी प्रतीक हैं। ये धागे गायत्री मंत्र के तीन चरणों एवं तीन आश्रमों के भी प्रतीक हैं।
जनेऊ के तीन धागों को तिगुना करके निर्मित किया जाता है। अर्थात एक-एक धागे में नौ धागों का समावेश करके नौ देवताओं, प्रजापति, ओंकार, अनंत, अग्नि, सूर्य, चंद्रमा, वायु, सर्प एवं पितृगणों का समावेश मानकर इनकी पवित्रता स्थापित मानी गई है। जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल रखी जाती है, क्योंकि जनेऊ धारण करने वाले विद्यार्थियों को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सिखाने का प्रयास कराया जाता है।
32 विद्याओं में चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्र ग्रंथ और नौ अरण्यक ग्रंथ शामिल रहते हैं। 64 कलाओं में भाषा,खगोलीय ज्ञान, ज्योतिष, स्थापत्य, व्यंजन ,चित्रकारी, साहित्य, दस्तकारी, यंत्र, अस्त्र-शस्त्र एवं आभूषण निर्माण की कलाएं सिखाने के साथ कृषि कार्य में भी युवाओं को दक्ष किया जाता है। अतएव हमारी सभी सनातनियों से अपील है कि वे इस वेद सम्मत यज्ञ में अपनी भागीदारी करें।