SHIVPURI में देवी की देश की अनोखी प्रतिमा, खजाने के रक्षा के लिए पसर गई थी, सिक्को की 'खन्न् की आवाज

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काजल सिकरवार@  शिवपुरी। शिवपुरी जिले के ऐतिहासिक संपदा को अपने आप में समेटे अति प्राचीन नरवर नगर की देवी की प्रतिमा देश की अनोखी प्रतिमा में गिनी जाती है। नरवर का किला अपने अतीत की कई यादें और यादगार इतिहास को अपने आप मे लेकर शान से खडा हुआ है। वही अपने कुल के खजाने के रक्षा के लिए देवी का खजाने के मुख पर पसरना की घटना देश के इतिहास की एक मात्र उल्लेखनीय कहानी में है।

नरवर के किले के निर्माण के कोई ठोस प्रमाण किसी के पास नहीं है इसका निर्माण किसने और किस काल में कराया है सटीक जानकारी नहीं है लेकिन नरवर के किले की मुख्य कहानी राजा नल से जोड़ी जाती है राजा नल को महाभारत काल के समय का राजा माना जाता है,इस प्रकार से नरवर नगर को सदियों पुराना नगर कह सकते है शिवपुरी जिले से पूर्व इस क्षेत्र का जिला नरवर था,लेकिन सिंधिया राजवंश ने एक सैकड़ों वर्ष पूर्व शिवपुरी को जिला घोषित कर दिया था।

विंध्य पर्वतमाला की पहाडी पर लगभग 500 फुट की उंचाई पर नरवर का किला लगभग 8 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में फैला हुआ है,माना जाता है कि इस किले को राजा नल ने निर्माण कराया था ओर नरवर से देश की प्रसिद्ध ढोला मारू की अमर प्रेम कहानी के तार भी यह से जुडे है। वही राजा नल और विदर्भ देश की राजकुमारी दमयंती की प्रेम कहानी का जन्म भी इसी किले से हुआ है। इस किले ने कई आक्रमण झेले है कई राजवंशो ने इस पर राज किया है,हिन्दू,मुस्लिम और जैन मंदिर पर भी इस किले में बने हुए है। वीरवर खांडेराव की तलवार की चमक के किस्से भी नरवर के किले से जुडे है। कुल मिलाकर अपने आप मे एक अनोखा इतिहास  से नरवर का किला अपने आप को जोड़े हुए है।

इसलिए पसर गई थी मॉ भुजंगबलया
नरवर किले में स्थित पसर देवी का मंदिर, राजा नल की कुलदेवी का मंदिर है। यह मंदिर दूर-दूर से श्रद्धालुओं के लिए प्रसिद्ध है।  इस मंदिर में मां भुजंगबलया देवी लेटी हुई अवस्था में विराजमान हैं। महाभारत काल में जब राजा नल जुए में छोटे भाई से अपना सारा राजपाट हार गए थे और वे पत्नी को साथ लेकर जाने लगे, तब उनकी कुलदेवी खजाने की रक्षा के लिए किले के दरवाजे के समीप आकर लेट गई थीं। तभी से उनका नाम पसरदेवी पड़ा।  किले के मुख्यद्वार पर 12 फीट लंबी और आठ फीट चौड़ी पसरदेवी की मूर्ति की दोनों भुजाओं के नीचे 7-8 फीट गहरा गड्ढा नजर आता है। इसमें सिक्का डालने पर 'खन्न्' की आवाज आज भी आती है, इसलिए इसे धन और खजाने से जोड़ा जाता है।

विलक्षण हैं ऐसा स्वरूप
ऐसी विलक्षण प्रतिमाएं भारत में कुछ ही जगह देखने को मिलती है। लेटी हुई देवी प्रतिमाओं को लोग हिंगलाज देवी भी बोलते हैं, क्योंकि पाकिस्तान में स्थित हिंगलाज देवी भी लेटी हुई अवस्था में है। पसर देवी की मूर्ति पर शेषनाग लिपटे हुए हैं, जो उन्हें भुजंगबलया देवी के रूप में भी प्रतिष्ठित करता है।

कई उपनामों से जानते हैं भक्त
इनके कई सारे उपनाम भी हैं जिनमें प्रमुख रूप से फणीन्द्र भोग शयना, फणिमण्डल मण्डिता, हंसस्था, गरुडारूढा, नाग्रजिती, वृषभ वाहिनी, जय कच्छपी, नारसिंही, व्रषारुढा आदि नामों से जानी जाती हैं। ऐसी देवी का भागवत में उल्लेख है।

नरवर को तंत्र मंत्र ओर जादू की नगरी कहा जाता है
यही इस जगह की सबसे बड़ी विशेषता है। इतिहासकार डॉ. मनोज माहेश्वरी के मुताबिक किले में खजाने से जुड़ी बातें सामने तो आती रही हैं, लेकिन इतिहास से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध बात यह है कि नरवर को तंत्र-मंत्र और जादू की नगरी कहा जाता रहा है। किले पर तांत्रिक पीठ होने के प्रमाण भी मिलते रहे हैं।

पसर देवी को कई राजपरिवारों की कुलदेवी माना जाता है, जिनमें कच्छप वंश प्रमुख है। कहा जाता है कि कच्छप वंश के लोग आज भी मां के दर्शन के लिए आते हैं। वर्तमान में कच्छप राजवंश के वंशज पाडौन राजा राजपरिवार सहित कुलदेवी के रूप में यहां पूजन करने आते हैं। शारदीय नवरात्रि में विशाल जनसमूह देवी जी के दर्शन करने जाते हैं।

पसर देवी मंदिर की खास बातें
  • मां पसर देवी की प्रतिमा पर शेष नाग लपेटे हुए हैं।  
  • इस मंदिर में चैत्र और शारदीय नवरात्रि में दूर-दूर से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।  
  • कई राज परिवारों की कुलदेवी के रूप में भी मां पूजित होती हैं।  
  • लेटी हुई अवस्था में होने के कारण इन्हें पसर देवी कहा जाता है।  
  • ऐसी विलक्षण प्रतिमाएं भारत में कुछ ही जगह देखने को मिलती हैं.
  • कटोरा ताल के जल से ही हमेशा से मां पसर देवी की पूजा-अर्चना होती आई है।