शिवपुरी। शिवपुरी के माधव टाइगर रिजर्व के अंदर स्थित 5 गांवो की किसानो की जमीन को सरकारी घोषित दिया है,वही इन गांवों के ग्रामीणों और वन विभाग को लेकर मुआवजे को लेकर विवाद चल रहा है किसानों ने अभी तक यह मुआवजा नहीं लिया। इस बात का खुलासा जब हुआ जब किसान अपनी उपज का पंजीयन कराने को गए थे,जब पंजीयन कराने वाले ने बताया कि तुम्हारा पंजीयन अब नहीं हो सकता क्योकि आपकी जमीन सरकारी घोषित हो चुकी है।
इन गांवों की जमीन की हुई सरकारी
माधव टाइगर रिजर्व की सीमा में आने वाले लखनगुवां, हर नगर, डोंगर, अर्जुन गवां व मामोनी के कई परिवारों ने एनटीसीए की गाइडलाइन से मुआवजा लेने के फेर में मुआवजा नहीं लिया है। इस कारण वह अभी तक इन गांवों से विस्थापित नहीं हुए हैं। इस कारण किसानों को उन्हें गांव में रहकर खेती करते हुए अपना जीवन यापन करना पड़ रहा है। सरकार ने इन गांवों के किसानों की जमीन को बिना मुआवजा दिए ही सरकारी दस्तावेजों में शासकीय भूमि व माधव टाइगर रिजर्व की भूमि घोषित कर दिया है।
समर्थन मूल्य की फसल को समर्थन नही
ऐसे में जब किसान अपने खेतों में बोई हुई गेहूं की फसल को शासन द्वारा घोषित किए गए समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए अपना पंजीयन करवाने केंद्र पर पहुंचे तो किसानों का पंजीयन ही नहीं हो रहा है। अब तक दस्तावेजों में उनके नाम से दर्ज जमीन को कम्प्यूटर सरकारी बता रहा है। किसानों का कहना है कि उनके सामने पहले ही मुआवजा और जंगली जानवरों से जीवन को खतरे का संकट तो था ही, सरकार ने अब एक और संकट खड़ा कर दिया है कि वह जिस जमीन के मालिक हैं, वह भी उनकी नहीं रही एवं वे अपनी उपज को भी समर्थन मूल्य पर नहीं बेच पा रहे हैं।
शासन को भेजी झूठी जानकारी
खास बात यह है कि एक किसान राघवेंद्र गुर्जर निवासी लखनगुवां ने जब मामले की शिकायत मुख्यमंत्री को दर्ज करवाई तो माधव राष्ट्रीय उद्यान के उपसंचालक ने 30 जुलाई 2024 के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वन्य प्राणी को झूठी जानकारी भेज दी कि, भू-अर्जन अधिकारी शिवपुरी द्वारा कराये गये आंकलन एवं पारित अवार्ड आदेश क्रमांक 19, दिनांक 30 दिसम्बर 2005 के अनुसार माधव राष्ट्रीय उद्यान के ग्राम लखनगंगा में मुआवजा हेतु कुल 92 पात्र परिवार थे।
जिनमें से 68 परिवारों को भू-अर्जन अधिकारी शिवपुरी द्वारा मुआवजा वितरित किया जा चुका है तथा शेष 24 परिवारों द्वारा अभी तक मुआवजा प्राप्त नहीं किया गया है। ग्राम लखनगंवा के जिन 68 परिवारों को पूर्ण मुआवजा वितरित किया गया है, उनकी भूमि को ही राजस्व विभाग द्वारा राजस्व अभिलेखों में शासकीय किया गया है तथा जिन परिवारों को मुआवजा वितरित नहीं किया गया है, उनकी भूमि को राजस्व विभाग द्वारा शासकीय नहीं किया गया है।
300 बीघा जमीन की सरकारी
प्रशासनिक अधिकारियों ने पांच गांवों के अंदर रह रहे किसानों की तीन सौ बीघा जमीन को अवैध रूप से सरकारी दस्तावेजों में शासकीय घोषित कर दिया है। बताया जा रहा है कि लखनगवां में 60 बीघा जमीन, हर नगर में 25 बीघा जमीन, डोंगर में 10 बीघा जमीन, अर्जुन गवां में 10 बीघा जमीन, मामोनी में 200 बीघा जमीन को शासकीय घोषित किया है।
नरेश गुर्जर, किसान, लखनगवां
मैं अपनी फसल को समर्थन मूल्य पर बेचने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए जब जमीन के दस्तावेज लेकर सेंटर पर पहुंचा तो मैं उस समय चौंक गया जब सेंटर संचालक ने मेरी जमीन को सरकारी बता दिया। इसी तरह से गांव के अन्य किसानों के साथ भी हुआ है।
उमेश कौरव, एसडीएम शिवपुरी
किसानों की जमीन को वर्ष 2005 में अधिग्रहण करने की कार्रवाई की गई थी. इसलिए उनकी जमीनों को सरकारी करने की कार्रवाई की गई है। कुछ किसानों ने मुआवजा नहीं लिया है। वह एनटीसीए की गाइडलाइन के तहत मुआवजा की मांग कर रहे हैं।
उत्तम शर्मा, डायरेक्टर, सिंह परियोजना
टाइगर रिजर्व के अंदर की सारी जमीन टाइगर रिजर्व की है। किसानों की जमीनों को सरकारी कैसे किया गया है, यह तो राजस्व के अधिकारी बेहतर बता पाएंगे।