शिवपुरी। शिवपुरी जिले के करैरा तहसील के ग्राम मुजरा से महाराष्ट्र के लिए मजदूरी करने गए 2 परिवारों को बंधक बना लिया गया था। इन दोनों परिवारों में 7 बच्चे भी थे। सहरिया क्रांति की सक्रियता और प्रशासन के प्रयास से इन 15 आदिवासियों की सकुशल वापसी हो गई। जब मुक्त हुए यह मजदूरी अपने गांव वापस पहुंचे तो गांव में खुशी की लहर दौउ गई और अपने परिजनों की वापसी का स्वागत ढोल नगाड़ों से किया गया।
जानकारी के मुताबिक नरवर क्षेत्र मे निवास करने वाले भगत जी ने करैरा तहसील के उकायला के पास स्थित ग्राम मुजरा से 8 आदिवासी मजदूरों और उनके 7 बच्चों को गुना में मजदूरी दिलाने का झांसा देकर महाराष्ट्र के सांगली जिले के एक कृषि फार्म पर छोड़ आया। वहाँ उन्हें बंधक बनाकर रखा गया और धमकाया गया कि यदि वे प्रति व्यक्ति 50,000 रुपये नहीं चुकाएंगे, तो उन्हें वापस घर जाने नहीं दिया जाएगा।
ग्राम भ्रमण के दौरान सहरिया क्रांति के सदस्य राम कृष्ण पाल, संतोष जाटव, अनुराग दिवेदी और दुष्यंत सिंह गाँव पहुँचे। वहाँ उन्होंने पीड़ित परिवारों को बिलखते हुए पाया, जिन्होंने अपनी पीड़ा सुनाई। तत्काल कार्रवाई करते हुए सहरिया क्रांति के सदस्यों ने पंचनामा तैयार कर अमोला थाना में शिकायत दर्ज कराई।
महाराष्ट्र पुलिस और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त प्रयास से सभी 15 बंधकों को मुक्त कराया गया। मुक्त किए गए व्यक्तियों में बबलू, सुमन, रामेती, खेरू, उम्मेद, हरिविलास, सुदामा, सपना और उनके सात छोटे बच्चे शामिल थे। गाँव लौटते ही आदिवासियों ने ढोलक बजाकर अपनी खुशी का इज़हार किया और सहरिया क्रांति को धन्यवाद दिया। पूरे गाँव ने इस सफलता को सामूहिक जीत के रूप में मनाया।
इस मामले में जिला कलेक्टर रवीन्द्र कुमार चौधरी ने संवेदनशीलता दिखाते हुए सक्रियता से निर्देश दिए, जिसके परिणामस्वरूप सभी बंधकों की सकुशल वापसी सुनिश्चित हो सकी। ग्रामवासियों ने सहरिया क्रांति और प्रशासन के इस कदम की सराहना की। पीड़ित परिवारों ने अपनी स्वतंत्रता के लिए कृतज्ञता प्रकट की और ऐसी घटनाओं से बचने के लिए जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया।
सांगली से लौटी महिलाओ ने सुनाई दर्द भरी दास्तां
महाराष्ट्र के सांगली जिले में बंधुआ मजदूरी के दलदल से मुक्त कराई गई मजरा की आदिवासी महिलाएं अपने गांव लौट आए हैं। गांव पहुँचते ही जहाँ एक ओर परिजनों ने ढोल-नगाड़ों से उनका स्वागत किया, वहीं दूसरी ओर महिलाओं ने अपनी दर्दभरी दास्तां सुनाई। उनकी आँखों में आँसू और शब्दों में पीड़ा थी। उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसी अमानवीय यातनाएँ सहनी पड़ीं, जिन्हें शब्दों में बयां करना मुश्किल है।
मुक्त हुई महिलाओं ने रोते हुए कहा, "हम साक्षात नरक से लौटकर आए हैं। वहाँ हमें जानवरों से भी बदतर हालत में रखा गया। दिन-रात मजदूरी कराई जाती थी जो काम हमे कभी नहीं किया वो काम भी हमे करना पड़े हैं । और खाने के लिए मुश्किल से एक वक्त का भोजन मिलता था। अगर हम थक कर रुक जाते, तो गालियाँ और मारपीट होती थी। बच्चों को भी भूखा रखा जाता था।
महिलाओं ने बताया कि वहाँ की स्थिति इतनी खराब थी कि कई बार उन्हें पानी और बासी रोटी खाकर दिन गुजारने पड़े। "हमारे साथ ऐसे बर्ताव किया गया, जैसे हम इंसान नहीं, बल्कि गुलाम हों।" एक महिला ने कहा, "अगर हम विरोध करने की कोशिश करते, तो हमें धमकाया जाता कि घर वापस जाने के लिए 50,000 रुपये देने होंगे। हमारे पास न पैसे थे और न कोई मदद। हमें लगा कि हम वहीं मर जाएंगे।"