SHIVPURI NEWS - पोहरी के मडखेडा गांव में ग्रामीणों के प्राण संकट में, यहां प्यास है जिंदगी से बडी

Bhopal Samachar

पोहरी। पोहरी जनपद के ग्राम पंचायत मडखेडा में पीने के पानी के लिए आजमन अपने प्राण संकट में डाल रहे है,जिंदा रहने के लिए पीने का पानी आवश्यक है,यहां प्यास है जिंदगी से बडी कहावत सचित्र सत्य होते प्रतीत हो रही है।

मडखेडा के आदिवासी समुदाय की महिलाएं और बच्चे गहरी खाई में उतरकर पानी लाने को मजबूर हैं। यह खाई न केवल खतरनाक है, बल्कि इसमें उतरने और चढ़ने में जान का जोखिम भी है। फिर भी, इस संकट से जूझते हुए उनका पूरा दिन पानी ढोने में बीत जाता है। लेकिन प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधि इस समस्या से पूरी तरह अनजान बने हुए हैं।

सहरिया क्रांति आंदोलन के सदस्यों ने प्रशासन को व जनप्रतिनिधियों को चेतावनी दी है कि यदि तत्काल पानी जैसी मूलभूत आवश्यकता जैसी समस्या नहीं दूर हुई तो सड़कों पर उतरकर आंदोलन किया जाएगा ।

बच्चो की शिक्षा पर असर
गाँव के लोग बताते हैं कि जलस्रोतों का अभाव और प्रशासनिक लापरवाही ने उनकी जिंदगी नर्क बना दी है। महिलाएं सुबह से लेकर शाम तक पानी के लिए संघर्ष करती हैं। छोटे बच्चे, जिनके हाथों में किताबें होनी चाहिए, वे पानी के मटके उठाने में व्यस्त हैं। यह स्थिति न केवल उनके स्वास्थ्य पर भारी पड़ रही है, बल्कि बच्चों की शिक्षा पर भी गहरा असर डाल रही है।

प्रशासन की चुप्पी और उदासीनता
यह कोई नई समस्या नहीं है। ग्रामीण कई बार पंचायत और प्रशासन को अपनी समस्याओं से अवगत करा चुके हैं। लेकिन अधिकारी शायद इस समुदाय के दर्द को सुनने के लिए तैयार ही नहीं हैं। आदिवासी समुदाय को हाशिये पर रखने की यह मानसिकता केवल मडखेड़ा में नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र में फैली हुई है। अधिकारी और जनप्रतिनिधि आदिवासी समाज की समस्याओं को केवल कागजों में निपटा देते हैं।

सहरिया क्राांति आंदोलन की चेतावनी
गाँव के लोगों के साथ सहरिया क्रांति आंदोलन के नेताओं ने प्रशासन को चेतावनी दी है। सहरिया क्रांति के एक प्रमुख कार्यकर्ता मोहर सिंह , शिशुपाल और राजेश सोनीपुरा  ने कहा, अगर जल्दी ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया, तो हम सत्याग्रह का रास्ता अपनाएंगे। यह सरकार और अधिकारियों के लिए आखिरी चेतावनी है। यह बयान केवल एक आंदोलन की धमकी नहीं, बल्कि आदिवासी समाज के गुस्से का प्रतीक है।

केवल वोट बैंक समझ रखा है
मडखेड़ा का यह संकट केवल जल की समस्या नहीं है, यह आदिवासी समाज के साथ हो रहे अन्याय और भेदभाव की कहानी भी कहता है। यह समय है कि प्रशासन और सरकार इस समस्या का स्थायी समाधान निकालें। अगर यही हाल रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब सहरिया क्रांति जैसा आंदोलन पूरे क्षेत्र में प्रशासन के खिलाफ खड़ा हो जाएगा।

प्रशासन के लिए प्रश्नचिन्ह
इस विकट स्थिति में प्रशासन की उदासीनता कई सवाल खड़े करती है:

क्यों नहीं जलस्रोतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण किया जा रहा?

क्यों आदिवासी समुदाय की समस्याओं को नजरअंदाज किया जा रहा है?

क्या प्रशासन और जनप्रतिनिधि केवल चुनाव के समय ही जागते हैं?