कोलारस नामा हार्दिक गुप्ता। भ्रष्टाचार के साक्ष्य छुपाने के लिए एक पंचायत के माननीय सचिव ने सूचना के अधिकार 2005 के संविधान ही बदल दिया। सचिव ने आरटीआई के आवेदन कर्ता को एक पत्र भेजा है इस पत्र में नियमों को हवाला दिया हैं जिस धारा 7 की उपधारा 5 मे ही सचिव महोदय ने उल्लेख किया है उसके अर्थ में बदलाव कर दिया ।
मामला कोलारस जनपद पंचायत कोलारस के अंतर्गत आने वाली अटारा पंचायत का है। आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा 8 नवंबर 2024 को सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 के तहत जनपद पंचायत कोलारस की ग्राम पंचायत अटारा में जानकारी लेने हेतु आवेदन किया था। निर्धारित नियम 30 दिवस में जानकारी नही दिए जाने के बाद आरटीआई कार्यकर्ता ने इस मामले में प्रथम अपील कर दी।
आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा द्वारा 16 दिसंबर 2024 को जनपद पंचायत कोलारस में प्रथम अपील की ग्राम पंचायत अटारा के सचिव द्वारा 16 जनवरी को आरटीआई कार्यकर्ता को एक पत्र के माध्यम से यह सूचित किया जाता है की आपके द्वारा मांगी गई जानकारी का उद्देश्य क्या है साथ ही आरटीआई एक्ट की धारा 7 की उपधारा 5 हवाला देकर यह कहा गया कि आपके द्वारा नाम एवं पते संबंधी दस्तावेज आवेदन के साथ प्रस्तुत नही किए गए इसलिए जानकारी नहीं दी सकती हैं । यहां बता दे कि आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 7 की उपधारा 5 मे नाम एवं पते सम्बंधी उल्लेख न होकर गरीबी रेखा के अन्तर्गत आने वाले व्यक्तियों को दी जाने वाली छूट का उल्लेख है।
मामला ग्राम पंचायत अटारा में हुए निर्माण कार्यो में लाखों रुपए के घोटाले से जुडा है। इस निर्माण के संबंध में आरटीआई कार्यकर्ता ने जानकारी मांगी थी। पूर्व में सचिव महोदय ने इस सूचना के अधिकार को गंभीरता से नही लिया। जब इस मामले में अपील दायर कर दी तो आरटीआई कार्यकर्ता को भ्रम पैदा करने के लिए एक पत्र सीधे तौर पर कार्यकर्ता को प्रेषित कर दिया।
नियमों के अनुसार जब किसी मामले में अपील दायर हो जाती है तो अपीलीय अधिकारी को संबंधित को जवाब देना होता है लेकिन यह भी नियम को तोडा गया। कुल मिलाकर भ्रष्टाचार के साक्ष्य सार्वजनिक ना हो इसके लिए धारा का उपयोग करते हुए कार्यकर्ता को भटकाने का प्रयास किया गया है। यहां सचिव ने सूचना के अधिकार का संविधान ही बदल दिया है। अब देखते है कि अपीलीय अधिकारी इस मामले में क्या कदम उठाते है।