शिवपुरी। महर्षि वाल्मीकि रामायण में स्पष्ट प्रमाण मिलता है कि जब श्री राम और सीता जी का विवाह हुआ तब सीता जी की आयु 18 वर्ष और श्री राम की आयु 25 वर्ष थी और इसकी घोषणा भरी सभा मे महाराज जनक करते है,बाल विवाह का विरोध दर्ज इससे होता है और परिवार चार चार पीढ़ियों को जोड़ने का मंत्र देती है रामायण,जिसे पहले लोग पढ़ते थे लेकिन जब से रामायण से दूरी हुई तब से परिवारो में विघटन शुरू हो गया है,उक्त कथन गांधी पार्क में चल रही वाल्मीकि कृत रामकथा के तीसरे दिन विदुषी वक्ता अंजली आर्या ने प्रकट किये।
दीदी अंजली आर्या ने रामकथा में आगे कहा कि रामकथा के आयोजन आत्मा को तृप्त करने के साथ साथ संस्कारो को बढ़ाने के लिए होते है,संस्कारो को खाद पानी देने के लिए होते है,और तुलसीदास जी रामचरितमानस में लिखते भी है बिन सत्संग विवेक न होई।संतोष सबसे बड़ा धन है ये यू ही नही कहा जाता इस तरह के आयोजन यही गुण को विकसित करते है।संस्कार कर्तव्यबोध पैदा करते है।
सुना भी और बुना भी अर्थात आचरण में उतारा वही जीवन सफल है।महर्षि वशिष्ठ के सत्संग समझाइश ने ही तो राजा दशरथ को अपने पुत्रों को मोह त्याग कर वन में भेजने विश्वामित्र जी के यज्ञ में सहायता करने की प्रेरणा दी।अतः सत्संग होते रहना चाहिये।महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण से हम समझते है कि स्वयंवर यानी जहाँ कन्या को अपने वर का चुनने चयन करने की स्वतंत्रता थी वही स्वयंवर कहलाता था।उत्तर प्रदेश के नेता मुलायम सिंह को धरती पुत्र कहा जाता था तो क्या वह धरती से पैदा हुए थे नहीं,इसी तरह भगवती सीता की माता सुनैना का एक नाम योगिनी और धरनी था इसी वजह से उन्हें भी ये नाम मिला।
महर्षि वाल्मीकि स्पष्ट करते है कि सीता बाल्यवस्था से ही वीर साहसी गुणवान थी इसी वजह से राजा जनक के मन मे ये भाव था कि एक वीर साहसी योग्य राजा से उनका विवाह करेंगे,इसी वजह से उनके यहां पिनाक धनुष जिसे कोई नही उठा सकता था उसे उठाने की शर्त रखी और जब कोई राजा उसे न उठा सका चार पाँच राजा इकट्ठे होकर उसे उठाने जाने लगे तब राजा जनक नाराज हुए और बोले क्या आर्यावर्त्त की धरा वीर विहीन हो गयी है,तब आदेश महर्षि विश्वामित्र जी से पाकर श्री राम धनुष को तोड़ने उठते है।
इसी प्रकार नवरात्रि में घर घर कन्या को पूजने वाली संस्कृति के लोग क्या मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम से किसी महिला को पैर लगाने की कल्पना कर सकते है नही महर्षि वाल्मीकि यहां भी स्पष्ट कहते है गौतम ऋषि की पत्नी एकाकी जीवन व्यतीत करने वाली उनकी पत्नी अहिल्या से मेल करा उनके पाषाण जीवन को खत्म किया।
अरे हम अलाउद्दीन खिलजी को सूरत न देखना पसंद करके जोहर करने वाली पद्मिनी की परिपाटी के लोग है। पद्मिनी सी सूरत को तू खिलजी पा नही सकता,शेर के भोजन को कुत्ता खा नहीं सकता कि पंक्तियों को याद करने दोहराने वाले लोग है,हम आदर्श अगर सीखते है तो श्री राम से,यही एक चरित्र है जो जीवन को सार्थकता प्रदान करता है।
श्री राम की बारात जब निकली तब वह आदर्श बारात थी पंरन्तु आज हम क्या कर रहे है कितनी फिजूल खर्ची कर रहे है शादी यो के नाम पर कुछ भी तो कर रहे है और परिवार सिमट रहे है इसे रोकना और श्री राम जी के जीवन से सीखकर आगे बढ़ना यही रामायण की सीख है। प्रारम्भ में तीसरे दिन परिहार समाज,बाथम समाज,वैश्य समाज कलचुरी महिला व प्रसाद की व्यवस्था महिला समन्वय की और से दीदी का स्वागत व रामायण की प्राप्ति हुई।
तीसरे दिन का संचालन आकांक्षा गौर व प्रमोद मिश्रा के द्वारा व आभार मुख्य यजमान इंद्रजीत चावला द्वारा व्यक्त किया गया।