SHIVPURI NEWS - जिला अस्पताल में SNCU में नवजातों की मौत का आंकड़ा 10.32%,पढ़िए क्यों

Bhopal Samachar

शिवपुरी। शिवपुरी जिले में एसएनसीयू जिले में एकमात्र जिला सरकारी अस्पताल में है। स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट एसएनसीयू यह एक नवजात इकाई है, जहां बीमार नवजात शिशुओं को विशेष देखभाल दी जाती है। शिवपुरी जिले के सरकारी अस्पताल के एसएनसीयू यूनिट में लोड अधिक है इस कारण एक वार्मर मशीन दो नवजातों को रखा जाता है। पिछले 11 माह में

जिला अस्पताल के विशेष नवजात शिशु देखभाल इकाई (एसएनसीयू) में 1 जनवरी 2024 से 31 नवंबर 2024 के बीच 91 नवजातों की 28 दिन के अंदर मौत हो गई है। 46 नवजातों की हालत बिगड़ने पर उन्हें ग्वालियर एवं अन्य जिलों में रेफर करना पड़ा है, साथ ही 883 नवजात 11 माह में अस्पताल के एसएनसीयू में भर्ती हुए।

एसएनसीयू में भर्ती किए जा रहे बच्चों में अधिकांश का वजन 2 किलो से कम है। इसलिए इन बच्चों में संक्रमण फैलने का खतरा अधिक होता है। बच्चों को स्वस्थ करने के लिए लगाई एक वार्मर मशीन पर दो नवजातों को रखा जा रहा है। जिससे नवजातों में संक्रमण होने का खतरा बना रहता है। क्योंकि एक मशीन पर भर्ती दोनों ही नवजात एक दूसरे के संपर्क में आ रहे हैं। जबकि दोनों ही नवजात स्वस्थ नहीं है। इसलिए इन्हें वार्मर मशीन पर रखा गया है।

रोज पांच नवजात हो रहे अस्पताल के एसएनसीयू में भर्ती

डॉक्टरों का कहना है एसएनसीयू में रोज 5 के लगभग नवजात भर्ती हो रहे हैं। जिनके जन्म के समय प्रसूता (नवजात की मां) ने खान-पान पर ध्यान नहीं दिया। जिससे बच्चों में कमजोरी आ गई, मजबूरन ऐसे बच्चों को एसएनसीयू में भर्ती करना पड़ रहा है।

कमजोर नवजातो में फेफड़ों में इन्फेक्शन

नवजातों में पोषक तत्वों की कमी से मौत का आंकड़ा 1.5 किलो से नीचे के बच्चों का अधिक है। कमजोर नवजातों के फेफड़ों में इंफेक्शन देखा जा रहा है। जिससे नवजातों द्वारा ऑक्सीजन नहीं ली जा रही। डॉक्टर कृत्रिम ऑक्सीजन देकर नवजातों की जान बचाने का प्रयास कर रहे हैं।

सरकारी अस्पताल के एसएनसीयू पर अधिक लोड

निजी अस्पतालों के पास भी जिला अस्पताल जैसे एसएनसीयू की सुविधा नहीं है। जिला अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि अस्पताल में भर्ती होने वाले उन नवजातों की मौत अधिक हो रही है, जिनके माता पिता द्वारा गर्भावस्था के समय अधिक लापरवाही बरती गई हो या उन्हें सही प्रेगनेंसी की जानकारी ही नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि कई बच्चे तो ऐसे हैं, जिनकी माताओं ने दो बच्चों के बीच समय का अंतर ही कम रखा। जिससे दूसरे बच्चे में कमजोरी आ गई और उसे भर्ती करने की नौबत आई। अस्पताल में रोज 10 बच्चे ऐसे आ रहे हैं। जिनमें पोषण की कमी है।

वार्ड में खुले तारों से शॉर्ट सर्किट का डर

एसएनसीयू में कई जगह खुले तार एवं अव्यवस्थित बिजली के स्विच लगे हुए हैं। जबकि एसएनसीयू में नवजातों के लिए 24 घंटे ऑक्सीजन का प्रवाह कराया जाता है। यह एक तीव्र ज्वलनशील गैस होती है। ऐसे में यदि खुले तारों की वजह से शॉर्ट सर्किट हुआ तो यूनिट में भर्ती कई नवजातों की जलने से दर्दनाक मौत हो सकती है। बता दें कुछ माह पहले इस तरह का एक हादसा झांसी के मेडिकल कॉलेज में हो चुका है। जिसमें कई नवजातों की जलकर मौत हो गई थी, इसके बावजूद प्रशासन इस मामले में कोई गंभीरता नहीं दिखा रहा है।

यह बोलते है सरकारी आंकड़े

जिले के आंकड़ों की अगर बात करें तो 1148 नवजात जनवरी से नवंबर 2024 तक जिले के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं अन्य अस्पतालों में भर्ती हुए। इसमें 107 नवजातों की बीते 11 माह के अंदर मौत हो गई। 71 नवजातों की हालत गंभीर होने के कारण उन्हें ग्वालियर रेफर करना पड़ा।

एसएनसीयू में नवजातों को भर्ती रखने की अधिकतम समय सीमा 28 दिन होती है। इतने दिनों में नवजात यदि ठीक हो जाता है तो उसकी छुट्टी कर दी जाती है। जिला अस्पताल में जिन 91 नवजातों की मौत हुई है, उसमें कुछ नवजात 10 से 15 दिन ही जीवित रहे। नवजातों के जीवित रहने की अधिकतम समय अवधि 28 दिन ही रही।

भर्ती की अधिकतम समय सीमा 28 दिन

एसएनसीयू में उन्ही बच्चों को भर्ती किया जा रहा है जो पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हैं। इसलिए परिजनों को नवजात की मां के खान-पान पर ध्यान देने की जरूरत है। एक वार्मर मशीन पर दो बच्चों को इसलिए भर्ती किया जा रहा है, क्योंकि अस्पताल में वार्मर मशीन कम है और नवजात अधिक भर्ती हो रहे हैं। डॉ बीएल यादव, सिविल सर्जन, जिला अस्पताल शिवपुरी