बामौरकलां। मुनि श्री सरल सागर महाराज का भव्य पिच्छिका परिवर्तन बामौर कलां में संपन्न हुआ। पुरानी पिच्छि लेने का सौभाग्य मुकेश जैन चौधरी को प्राप्त हुआ। कार्यक्रम पार्श्वनाथ जैन मंदिर के विघासागर सभागार में संपन्न हुआ। डॉ. नरेन्द्र जैन भोपाल ने कार्यक्रम का संचालन किया।
मुनिश्री ने कहा श्लोक नाथ ग्रंथ में उसमें लिखा हुआ है जब साधु जंगल में ही रहा करते थे तब मोर के पंखों को ग्रहण करने में स्वाधीन हुआ करते थे साधु कचौरी महाव्रत धारी होते है अदीताया दानों मिषती एम बिना दी हुई चीजों को ग्रहण करना चोरी कहलाता है लेकिन पूज्यपाद आचार्य ने अपवाद मार्ग निकला है उसमें मुनियों को छूट दी है
स्वेच्छा से छोड़े गए पंखों को ग्रहण करने में उन्हें किसी भी प्रकार चोरी का दोष नहीं रहता अर्थात उन्हें स्वयं ग्रहण कर सकते हैं साधु उन पंखों ग्रहण करके उन्हें पिच्छिका रूप देकर के और जब तक वे उपयोगी होती थी तब तक उनसे काम देते थे अनुपयोगी हो जाने पर उन्हें छोड़कर दूसरी ग्रहण कर लेते थे ही क्रम था इसी प्रकार जो पुंगी हुआ करती है उस समय पुंगी के कमंडल बना लिए जाते थे उन्हें ग्रहण करने भी उन्हें चोरी का दोष नहीं लगता था और झरनों का बहता पानी प्रासुक हुआ करता है
जरूरत पड़ने पर उस पानी को स्वयं लेने पर उन्हें चोरी का दोष नहीं है ऐसा पूज्यपाद स्वामी कहते हैं लेकिन हुड्डासरपड़ी काल में धीरे-धीरे शरीर के सहनशक्ति क्षीण होती जा रही है और यही कारण है साधु अब सीढ़ी के तरह निर्भीक होकर जंगलों में विचरण नहीं कर सकते हैं दो हजार साल पहले करीब आत्मानुशासन ग्रंथ रचिता उन्होंने खेद व्यक्त किया है कि सिंह के सामान जंगल में विचरण करने वाले साधू अब सियार के सामन रात्रि में गांव पास आ कर के रहने लगे खेद व्यक्त किया था सियार तो अभी गांव के बाहर रहते हैं लेकिन साधु गांव के अंदर हैं।