हार्दिक गुप्ता कोलारसनामा। कोलारस नगर में निजी स्कूलों की बाढ़ सी आ गई है। इन निजी स्कूलों में आरटीई के मापदंडों के अनुसार आवश्यक योग्यताधारी शिक्षकों की व्यवस्था नहीं की गई है और न ही शिक्षकों के वेतन पर एकरूपता है। महज 3 हजार रुपए मासिक वेतन पर शिक्षक रखकर बच्चों की पढ़ाई कराई जा रही है। इन शिक्षकों के पास डीएड, बीएड जैसी योग्यता भी नहीं है। अनेक स्कूलों में तो दसवीं पास युवकों को अत्यल्प मानदेय पर शिक्षक नियुक्त कर लिया गया है।
शिक्षा के अधिकार कानून के तहत प्राथमिक शालाओं के लिए हायर सेकंडरी और डीएड योग्यताधारी शिक्षक होना चाहिए। मिडिल स्कूलों के लिए ग्रेजुएशन के साथ बीएड योग्यताधारी और हायर सेकंडरी स्कूलों के लिए पोस्ट ग्रेज्युएट के साथ एम एड योग्यताधारी शिक्षक अध्यापन कार्य के लिए पात्र हैं। लेकिन नगर में संचालित ज्यादातर स्कूलों में ऐसे योग्यताधारी शिक्षकों की कमी है।
पालकों की हो रही जेब ढीली, शिक्षकों को वेतन कम
निजी शालाओं में पालकों से 100 रुपए से लेकर 1700 रुपए तक प्रत्येक विद्यार्थियों से मासिक शुल्क वसूला जा रहा है। लेकिन ऐसे स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप शिक्षक नहीं हैं। जानकारी के अनुसार निजी शालाओं में न्यूनतम 8 सौ रुपए से अधिकतम 5 हजार रुपए तक मासिक पगार दिए जा रहे हैं। लिहाजा अल्प वेतनमान पर डीएड, बीएड जैसे योग्यताधारी शिक्षक नहीं मिलते। नगर के निजी स्कूलों में शिक्षकों को केवल 10 महीने का अल्प वेतनमान दिया जा रहा है और पालकों से बच्चों की 12 महीने की फीस वसूली जा रही है।
रहवासी मकानों में चल रहे स्कूल
नगर के कई निजी स्कूल ऐसे हैं जो मकानों में संचालित किए जा रहे हैं। महज 15 सौ से 2 हजार वर्ग फुट के मकानों में विगत कई वर्षो से प्राथमिक शालाएं संचालित की जा रही है। ऐसे स्कूलों में बच्चों के लिए आरटीई के मापदंड के अनुरूप न हीं पर्याप्त कमरे हैं। और न कमरों का आकार मापदंड के अनुरूप है। खेल मैदान के लिए भी विद्यार्थियों को तरसना पड़ रहा है।
50 से 100 विद्यार्थियों को पढ़ा रहे एक शिक्षक
नगर के निजी स्कूलों में 50 से 100 विद्यार्थियों को पढ़ाने आरटीई के मापदंड के अनुरूप 30 विद्यार्थी पर एक शिक्षक नहीं है। एक शिक्षक के भरोसे 30 से अधिक विद्यार्थियों की कक्षाएं ली जा रही है।
राजनीतिक लोगो से जुड़े हैं निजी स्कूलों के संचालक
ज्यादातर निजी स्कूलों के संचालक किसी न किसी राजनीतिक पार्टी से जुड़े हुए हैं। इससे कई तरह के लाभ हैं। राजनीतिक पहुंच होने की वजह से अधिकारी ऐसे स्कूलों का निरीक्षण कर वास्तविकता जानने का प्रयास नहीं करते। दूसरी ओर शासन से विभिन्न तरह से अनुदान लेने स्कूल के लिए धन बटोरते हैं। ऐसे स्कूलों के विरुद्ध कोई शासकीय सेवारत पालक आवाज उठता है तो उसे राजनीतिक रूप से दबाने का प्रयास किया जाता है।
पालकों में जागरूकता होना जरूरी
नागरिक जगदीश शर्मा का कहना है कि सरकारी स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप शिक्षक नियुक्त हैं। यहां विद्यार्थियों के लिए कोई मासिक शुल्क की भी बाध्यता नहीं है। बावजूद पालक निजी स्कूलों पर फिदा हैं। सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के पालक बच्चों की पढाई पर सतत निगरानी रखते हैं तो मेधावी विद्यार्थी सामने आते हैं। पालकों को जागरूक होने की जरूरत है।
शिक्षकों की योग्यता रखती है मायने
पार्षद विकास कुशवाह का कहना है कि निजी स्कूलों में आरटीई के मापदंड के अनुरूप योग्यताधारी शिक्षक नहीं है। आमतौर पर पालक नामी-गिरामी निजी स्कूल के सब्जबाग में आ जाते हैं। फीस देखकर स्कूल का स्टैंडर्ड तय करते हैं लेकिन यह पूछना भूल जाते हैं कि उनके बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की योग्यता क्या हैं।