देवउठनी ग्यारस, कैसे भगवान विष्णु पत्थर के शालिग्राम कैसे बने, पढिए कथा - SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar

शिवपुरी। आज भगवान विष्णु चार माह की चिरनिद्रा में सो कर उठेंगे,आज घर से से उठो देव जागो देव के जयकारे सुनाई देगें,हिन्दू सनातन धर्म के अनुसार आज से मांगलिक कार्य भी शुरू हो जाएंगे,कुंवारों के विवाह भी कराएंगे देव,देवउठनी ग्यारस आज साल की सबसे बडी ग्यारस मानी जाती है,आज देवउठनी ग्यारस की बहुत कथाएं हमारे धर्म ग्रंथों मे मिलती है। शिवपुरी समाचार ने इन सभी कथाओं को एक खबर में प्रकाशित करने का प्रयास किया है। पढ़िए खबर को  

देवप्रबोधिनी एकादशी/ देवोत्थान एकादशी/ देवउठनी ग्यारस की कथा

एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था। सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला और सुंदरी को देख चकित रह गया। उसने पूछा- हे सुंदरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?
 
तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले- मैं निराश्रिता हूं। नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं है, किससे सहायता मांगू? राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला- तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।
 
सुंदरी बोली- मैं तुम्हारी बात मानूंगी, पर तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य पर मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा। राजा उसके रूप पर मोहित था, अतः उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर लीं। अगले दिन एकादशी थी। रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाए। उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोस कर राजा से खाने के लिए कहा। यह देखकर राजा बोला- रानी! आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा।
 
तब रानी ने शर्त की याद दिलाई और बोली- या तो खाना खाओ, नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट दूंगी। राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो बड़ी रानी बोली- महाराज! धर्म न छोड़ें, बड़े राजकुमार का सिर दे दें। पुत्र तो फिर मिल जाएगा, पर धर्म नहीं मिलेगा।
 
इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया। मां की आंखों में आंसू देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने उसे सारी वस्तुस्थिति बता दी। तब वह बोला- मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा होगी, जरूर होगी।
 
राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप से भगवान विष्णु ने प्रकट होकर असली बात बताई- राजन! तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से राजा से वर मांगने को कहा तो राजा बोला- आपका दिया सब कुछ है। हमारा उद्धार करें।
 
उसी समय वहां एक विमान उतरा। राजा ने अपना राज्य पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परम धाम को चला गया। इस प्रकार जो भी मनुष्य धर्म की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार के त्याग के लिए तैयार होता है भगवान विष्णु उसे अपने धाम में विशेष स्थान देते हैं। बोलो, श्री हरि विष्णु भगवान की जय।

शिव पुराण के अनुसार चार महीने योग निद्रा में रहते हैं भगवान विष्णु

शिव पुराण के मुताबिक, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लंबे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए।

उन्होंने सृष्टि का कार्यभार भगवान शिव को सौंप दिया। इसके बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब शिवजी सहित सभी देवी-देवताओं ने भगवान विष्णु की पूजा की और वापस सृष्टि का कार्यभार उन्हें सौंप दिया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

वामन पुराण के अनुसार 4 महीने राजा बलि के महल में रहते हैं भगवान विष्णु

वामन पुराण के मुताबिक, भगवान विष्णु ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी थी। उन्होंनें विशाल रूप लेकर दो पग में पृथ्वी, आकाश और स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरा पैर बलि ने अपने सिर पर रखने को कहा। पैर रखते ही राजा बलि पाताल में चले गए।

भगवान ने खुश होकर बलि को पाताल का राजा बना दिया और वर मांगने को कहा। बलि ने कहा आप मेरे महल में निवास करें। भगवान ने चार महीने तक उसके महल में रहने का वरदान दिया। धार्मिक मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधिनी एकादशी तक पाताल में बलि के महल में निवास करते हैं। फिर कार्तिक महीने की इस एकादशी पर अपने लोक लक्ष्मीजी के साथ रहते हैं।

भगवान विष्णु पत्थर के शालिग्राम कैसे बने

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसी जी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक अपनी भक्त के साथ छल किया था।

इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।