शिवपुरी। हमारी सनातन संस्कृति के पति की रक्षा के लिए पत्नि यमराज से लड़ने तक की प्रेरक कथाए मिलती है उससे से सबसे अधिक प्रचलित कथा सत्यवान और माता सावित्री की आती है,जिसमें पति सत्यवान की मौत के बाद माता सावित्री अपने पति के प्राणों को वापस करने के लिए यमराज से लड़ गई और अपने पति का पुनर्जीवित कर लिया।
करवा चौथ भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे देशभर में और विदेशों में भी जहां भारतीय परिवार रहते हैं, बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सधवा महिलाओं (विवाहित महिलाओं) द्वारा अपने पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य, सुख-समृद्धि और मंगल की कामना के लिए रखा जाता है।
इस व्रत का मुख्य उद्देश्य अपने पतियों की लंबी आयु की कामना करना है। हमारे शास्त्रों में कई प्रेम प्रसंग मिलते है। यह प्रेरक प्रंसग सतयुग के समय के है लेकिन कलयुग में भी ऐसे प्रेरक प्रसंग मिलते है कि पत्नि ने अपने पति की प्राण संकट मे आने वाले पर वह आगे खड़ी हो गई और पति के ऊपर आने वाले मौत रूपी संकट को टाल दिया। शिवपुरी शहर के तीन उदाहरणों से जानिए कैसे सात फेरे लेकर जीवन साथी बनी पत्नी, पति को लिवर देकर जीवनदायिनी बन गई। भारतीय संस्कृति में पति-पत्नी के रिश्ते की सार्थकता इनका समर्पण बयां करता है।
पहला प्रसंग:जीवन दायिनी बन गई
शहर के आर्यसमाज रोड पर रहने वाले समाजसेवी प्रकाश जैन के बेटे रवि 56 वर्ष को लिवर सोरायसिस की शिकायत हुई तो 2022 में उनका दिल्ली में ऑपरेशन हुआ। जहां पत्नी सुषमा 52 वर्ष ने अपना लिवर देकर पति को दिया। पति रवि का कहना है कि 1994 में पत्नी जीवन साथी बनी और अब वह जीवनदायिनी भी बन गई।
वंदना वशिष्ठ ने दिया पति को अपना लीवर
तीन साल पहले पति अभिषेक वशिष्ठ 44 वर्ष के लिवर में खराबी आई तो डॉक्टर ने लिवर ट्रांसप्लांट करने की नसीहत दी। पति का ब्लड ग्रुप ए पॉजीटिव और पत्नी का एबी पॉजीटिव होने से अतिरिक्त सावधानी डॉक्टर को बरतनी पड़ी। और जब पत्नी वंदना वशिष्ठ 43 वर्ष ने खुद आगे आकर अपना लिवर देने की बात कही। 2023 में दिल्ली में ऑपरेशन हुआ। अब पति अभिषेक का कहना है कि पत्नी वंदना उन्हें जीवनदायिनी साबित हुई।
देवी स्वरूपा मानते हैं
कस्टम गेट के पास निवासरत हरिवल्लभ जैन की बेटी लवली और मनीष की शादी 2004 में हुई। इस दौरान 2022 में मनीष 49 वर्ष को लिवर में परेशानी आई तो उनको लिवर देने पत्नी तैयार हुई। पर डॉक्टर ने ब्लड ग्रुप मैच न होने पर दूसरे मरीज के साथ लिवर ट्रांसफर करने की बात कही। इस पर लवली ने अपना लिवर डोनेट किया और अटेंडर मरीजों को लवली का और उनके पति मनीष को अटेंडर का लिवर लगा और अब मनीष और उसका परिवार लवली को देवी स्वरूपा मानते हैं।