KUNO NATIONAL PARK ने साझा किए चीतो के अपने अनुभवो को, किताबी ज्ञान अलग

Bhopal Samachar

भोपाल। कूनो की धरती पर पैर रखना विश्व का पहला ऐसा अभियान था जिसमें एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप पर लाकर किसी जानवर को बसना,इस प्रोजेक्ट पर विश्व की निगाह थी,हालांकि अभी यह प्रोजेक्ट पूरी तरह से पास और ना ही फैल हुआ है,लेकिन कूनो नेशनल पार्क ने अपने 2 साल के अनुभवो का साझा किया है। कूनो प्रबंधन ने चीते के व्यवहार में काफी परिवर्तन अफ्रीका की धरती से अलग पाया जा रहा है।


नजीर के तौर पर जो चीते दक्षिण अफ्रीका महाद्वीप में सप्ताह में एक या दो बार पानी पीते हैं, गर्मियों के दिनों में उन्होंने भारतीय धरती पर दिन में दो बार तक पानी पीया है। यह बात पार्क प्रबंधन की ओर से चीतों के दो साल होने के अनुभव को लेकर दी गई जानकारी में कही गई है। साथ ही प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया है कि गर्मियों के दिनों में जब हमें पता था कि चीता सप्ताह में सिर्फ दो बार पानी पीता है, तब उसको दिन में दो बार तक प्यास लगने को हमने सीखा और उसी के लिहाज से प्रबंधन किया।

इस दौरान मैदानी अमले द्वारा इस बात का पूरा ध्यान रखा गया कि चीते का जंगलीपन प्रभावित न हो, अर्थात मानवीय उपस्थिति का पता उन्हें न चले, ताकि उनका जंगलीपन बना रहे। गर्मियों के दिनों में दो शावकों की मौत से जो सीख मिली, उस अनुभव का उपयोग करते हुए इस बार हमने 13 में से अब तक 11  को बचाए रखा है। यह इस प्रोजेक्ट की उपलब्धि है।

पार्क प्रबंधन ने बताया कि नन्हें शावकों के शुरुआत के 45 दिन खासे चुनौतीपूर्ण थे, क्योंकि उन दिनों के दौरान मां जब शिकार पर जाती है, तब शावक अपनी मांद में रहकर मां का इंतजार करते हैं। ऐसे में उनके जंगली करण को प्रभावित किए बिना उन पर नजर रखना अलग था, लेकिन इस दौरान मां-शावक के बीच के प्रेम को समझने का अनुभव मिला।

पार्क प्रबंधन ने चीते और बाघ के मैनेजमेंट को अलग बताया है, दलील दी है कि कॉलर आईडी भले एक है, लेकिन बाघ की तुलना में इनका मैनेजमेंट काफी अलग है, क्योंकि इनके साथ व्यक्ति चल सकता है, उनके नहीं, वह डरते नहीं है, जबकि यह डर के भागने लगते हैं, ऐसे में इनका तापमान बढ़ जाता है, जो चीते के लिए हानिकारक होता है।