SHIVPURI NEWS - दूषित पानी से पितरों का तर्पण, मोती सागर तालाब में नहाने से लोगो को हुआ इंफेक्शन

Bhopal Samachar

पवन पाठक पिछोर । खबर पिछोर से है, जहां इन दिनों श्राद्ध पक्ष चल रहे हैं और लोग अपने पितरों तथा पूर्वजों को जल अर्पित करते हैं जिसे तर्पण कहा जाता है लेकिन समय के साथ परंपराओं में भी बदलाव दिखाई दे रहा है लोग इन 15 दिनों में सुबह तालाब नदी या सरोवर में स्नान के पश्चात जल में खड़े होकर कुशा हाथ में लेकर पितरों को तर्पण करते हैं लेकिन अब लोग मोती सागर तालाब पर घर से ही नहा धो कर आने लगे है।

श्राद्ध पक्ष की दूज पर पितरों को जल अर्पित कर रहे संतोष कुमार भार्गव ने बताया कि मुझे तालाब के पानी से खुजली हो जाती है वहीं तर्पण कर रहे राजेश गुप्ता बताते हैं कि अभी तालाब का पानी साफ नहीं है मूर्ति आदि विसर्जन से केमिकल भी पानी में मिल गया है शरीर को दिक्कत हो जाती है सो हम घर से ही नहा कर आते हैं।

तथा अपने पूर्वजों को जल अर्पित करने आये नंदकिशोर चौरसिया एडवोकेट कहते है कि तालाब का पानी प्रदूषित है नहाने से खुजली आदि होने लगती है इसलिए घर से ही स्नान कर यहां तर्पण कराने आते हैं राजेश श्रीवास्तव कहते हैं कि अभी तालाब के पानी से इंफेक्शन हो जाता है तो घर से ही नहा कर आता हूं देखा गया कि अधिकतर लोग घर से नहा धोकर तैयार होकर तालाब में औपचारिकता के रूप में खड़े होकर पितरों को तर्पण कर सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांग रहे  

ऐतिहासिक किले के नीचे टेकरी सरकार मंदिर के पास स्थित पिछोर के प्राचीन मोती सागर तालाब की बात करें तो पक्के घाटों से निर्मित तालाब अत्यंत ही सुंदर है हाल ही में नगर परिषद सीएमओ आनंद शर्मा के आदेश से बड़ी मात्रा में तालाब से कचरा निकल जा रहा है और घाटों को लाइट आदि से सुसज्जित किया गया है ताकि गणेश उत्सव नवरात्रि आदि में प्रतिमाओं के विसर्जन और श्राद्ध पक्ष में तर्पण करने वाले लोगों को कोई दिक्कत ना हो सके लेकिन बरसात के दिनों में डाक बंगला बिजासन रोड आदि के पानी आने से तथा पूजा सामग्री और मूर्ति, ताजिये आदि विसर्जन  के केमिकल से पानी दूषित होने लगता है जो काफी समय बाद साफ होता दिखाई देता है जिससे लोगों को इन्फेक्शन और खुजली की संभावना बढ़ जाती है और लोग नहाने से परहेज करने लगते हैं।

पंडित के अनुसार क्या है तर्पण की परंपरा
हरिमोहन पाठक बताते हैं कि पहले लोग तालाब पर आकर ही स्नान कर पानी में खड़े होकर जल अर्पित करते थे या गीले कपड़ों में ही अपने पूर्वजों और पितरों को जल अर्पित करते थे क्योंकि तर्पण करते समय कम से काम नाभी तक तो पानी होना ही चाहिए लेकिन अब आधुनिकता है कई लोग तो पैर के पंजो या घुटनों तक के पानी में खड़े रहकर तर्पण कर जाते हैं समय के साथ सब कुछ बदलता जा रहा है।