हार्दिक गुप्ता कोलारस। शिवपुरी जिले की कोलारस नगर से 7 किलोमीटर की दूरी पर स्थित राई गांव के भैरो पूरे देश में प्रसिद्ध है,गांव के पास शंखचूर्ण पर्वत पर स्थित मंदिर का उल्लेख शिवपुराण मे भी मिलता है। भारत में यह भैरो की यह खडगासन में 12 फुट की प्रतिमा इकलौती है। आम तौर भैरो के मंदिर में बटुक भैरव की प्रतिमा होती है। इस मंदिर को चमत्कारिक मंदिर करते है,इन भैरो को इस क्षेत्र का कोतवाली कहते है।
भादौ शुक्ल पक्ष में आयोजित भैरों बाबा के दो दिवसीय मेले में कोलारस विधानसभा क्षेत्र के अलावा मालवा अंचल के ईसागढ़, अशोकनगर, चंदेरी, ललितपुर, गुना, गंज बासौदा, विदिशा, खतौरा, बदरवास, शिवपुरी, श्योपुर, दतिया, भिंड, मुरैना, ग्वालियर सहित अन्य क्षेत्रों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। अल सुबह से ही मालवा अंचल के श्रद्धालुओं का मंदिर पहुंचना शुरू हो गया था। अधिकांश श्रद्धालु जीप-कारों, बाइकों व ट्रैक्टर-ट्रालियों से पहुंचे, वहीं तमाम श्रद्धालुओं के जत्थे पैदल ही हाथों में धर्म पताकाएं लिए बाबा के दरबार में पहुंचे।
राई के पैरों पर जो भी भक्त सच्चे दिले अपनी मनोकामना लेकर वहां जाता हैं तो उसकी मनोकामना पूर्ण हो जाती हैं काफी प्रसिद्ध स्थान हैं और शिवपुराण में भी भैरा का उल्लेख हैं इसे रामेश्वर धाम से जाना जाता हैं क्योंकि इस ही समय पर तीन मूर्तियां बनाई गई थी। कई अलग-अलग कहानियां इस स्थान की बताई जाती हैं और आज एक शिक्षक जिनकी समस्या यहां आकर ठीक हुई हैं वह शिक्षक भी आज इस मंदिर पर अपनी सेवा दे रहे हैं।
तो आईए जानते हैं भैरों के विषय में
राई के भैरों को शिवपुरी जिले के कोतवाल माना जाता हैं इनको देवों के देवता, रक्षक मानते हैं उनकी स्थापना के पीछे भी एक अलग कहानी जुड़ी हुई हैं तो हम आपको बताते हैं कि वो कहानी क्या हैं। बहुत पहले की बात हैं कोलारस में तीन मूर्तियां बनाई गई थी पहली राई के भैरो जिसकी लंबाई 12 फीट है, दूसरी कुदोनिया के गणेश, तीसरी सेसई के नौ गजा जो कि जैन भगवान पारसनाथ की मूर्ति हैं।
बाटते थे ब्याज पर पैसा
इस मंदिर की एक पुरानी किवदंती है कि राई के भैरो लोगो को नगर पैसा देते थे,जिस व्यक्ति को राई के भैरो से मदद लेनी होती थी वह पाट पर नारियल रखकर और अपने रकम बताकर चला आता था। सुबह उस व्यक्ति को उतना पैसा मिल जाता था। वह बताए गए समय पर ब्याज सहित पैसा इसी पाट पर रख आता था।
इस बार एक प्रजापति आया और पाट पर नारियल रखकर अपनी मन्नत मांगी तो सुबह उसकी मन्नत पूरी हो गई, मन्नत में मांगे पैसों को वह बताए गए वादे पर पूरा करने में असमर्थ हो रहा था। इस कारण वह अपना गधा भैरो को रकम के बदले में दे आया,अपने गधे को पाट के पास बांध आया था। लेकिन उसी समय वह पाट फूट गया। लेकिन उसके बाद भी आज यह परम्परा वहां चली आ रही हैं उसे फूटे पाट पर भी लोग अपनी मनोकामना लेकर जाते हैं और वहां पर नारियल रखकर आते हैं लोगों की आज मनोकामना पूरी होती हैं।
मन्नत पूरी होने पर खडका चढाया जाता है
वहीं अगर हम मान्यता की बात करें तो राई के भैरों पर हर साल मोहर छठ का दो दिवसीय मेला लगता है। भैरो पर प्रसाद में खडका का भोग लगाया जाता हैं साथ ही घंटियां अर्पित की जाती हैं इसके साथ ही भूत प्रेत की बाधा को भी दूर करते हैं। साथ ही लोग मवेशियों से संबंधित बीमारियों को लेकर भैरो जी से निवेदन करते है तो मवेशियों की बीमारी भी ठीक हो जाती हैं गाय, भैंस ग्यावन नहीं होती तो उनको बच्चा हो जाते हैं।
वैसे तो भैरों के चमत्कार की कई कहानियां हैं उन्हीं में से एक कहानी हैं एक शिक्षक की जो कोलारस के सरकारी स्कूल में शिक्षक था उसके परिवार में भूत प्रेत की बाधा थी तो वह मेहंदीपुर गये वहां उसे बताया गया कि आप राई के भैरो से निवेदन कीजिए वह सब ठीक कर देंगे। शिक्षक ने उनसे कहा कि अगर मेरी बाधा दूर हो जायेगी तो मैं पूरी जिंदगी भैरों की सेवा में गुजार दूंगा। तो वह राई के भैरों पर गया और उसने भैरों से कहा कि भैरो मेरी यह बाधा दूर कर दो। तो कुछ ही दिनों में उसकी बाधा दूर हो गई और वह आज भी भैरों की सेवा में लगा हुआ हैं शिक्षक अगर कभी स्कूल नहीं जा पाता था और चेकिंग के लिए कोई अधिकारी आते थे तो वह मंदिर में रहता था तो उसकी स्कूल में अटेंडेंस लग जाती थी। शिक्षक कह देखकर अचंभित रह जाता था। कि यह कैसे हुआ,जब से वह यह मानता हैं कि मेरी हाजिरी मेरे भैरों लगा रहे हैं और वह उनकी भक्ति में लीन हो गया। और आज मंदिर पर सेवा दे रहा हैं।