SHIVPURI NEWS - गुरु के प्रति इतना प्रेमभाव-बनवा दिया मठ, केवल पत्थर ही पत्थर

Bhopal Samachar

फरमान काजी रन्नौद। मध्य प्रदेश में स्थित शिवपुरी जिले की बात करें तो इसे शिव की नगरी कहा जाता है और यह शिवपुरी जिला अपने आपने भी ऐसे कई ऐतिहासिक कहानियों को दबाकर बैठा है तो आज हम बात कर रहे हैं शिवपुरी से 70 किलोमीटर दूर रन्नौद क्षेत्र में स्थित खोखई मठ की, जो आज से 1 हजार वर्ष पुराना मठ हैं जिसको बनवाने के पीछे की कहानी भी अनौखी हैं। यह मठ केवल पत्थरों से तैयार किया गया हैं इस मठ में सास-बहू के नाम से एक बावड़ी भी स्थित हैं जिसे काले पानी का कुआ भी स्थित हैं इस मठ की सुन्दरता को देखने दूर दूर से पर्यटक आते हैं।

लेकिन रन्नौद का यह खोकई मठ कई मायनों में खास है। शिव भक्ति के लिए पहचाने जाने वाले इस क्षेत्र में खोकई मठ भक्ति स्थल के साथ ही अनूठी शिल्पकला के लिए भी जाना जाता है। यहां पत्थरों की नक्काशी कर तैयार को गई खूबसूरत शिल्प कृतियां लोगों को आकर्षित करती हैं।

तो आईए जानते हैं इस मठ की एक अनोखी कहानी

खोखई मठ की कहानी एक गुरु से संबंधित हैं एक ऐसा गुरू जिसके लिए यह मठ तैयार किया गया था तो आज से लगभग एक हजार वर्ष पुरानी बात हैं एक राजा अवति बर्मन ने अपने गुरु पुरन्दर की तपस्या हेतु समर्पण भाव से बनवाया था। कहा जाता है कि जबलपुर के पास बिल्हारी गांव के जंगलों में राजा अवंति बर्मन के गुरु पुरन्दर निवास करते थे।

उसके बाद राजा अवंति बर्मन ने उनसे शेध्व धर्म की दीक्षा ली और तत्कालीन समय में रन्नौद आकर यहां एक दो मंजिला विशाल पत्थरों से सुसज्जित मठ का निर्माण कराया, जो कि उस जमाने में बिना चूने और सीमेंट के बना हुआ है। आज भी यह अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है और इसकी कला को देखने- दूर दूर से लोग आते है।

इसके अलावा इस मठ के सामने ही एक विशाल चौपड़ा भी बना हुआ है। कहावत यहां चरितार्थ है कि रन्नौद के इस मठ के समीप कुआं भी है जिसे सास-बहू की बावड़ी के नाम से पुकारा जाता है। अब यह मठ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा रहा है, जहां शासन की ओर से देखभाल के लिए अनेकों कर्मचारियों को भी नियुक्त किया गया है। अब यह यह मठ जन सामान्य के अवलोकन के लिए भी खोला जा चुका हैं।

माना जाता है कि इस मठ में करीब 69 श्लोक बाली भाषा में अंकित हैं। इस बीजक के श्लोकों का पुरातत्व विभाग के सुपरीटेंडेंट गर्दै साहब ने हिन्दी व अंग्रेजी भाषा में समझकर अनुवाद किया है। इस क्षेत्र के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विश्वासों के अनुसार, यह मठ धार्मिक महत्व रखता है। जनश्रुतियों के मुताबिक यह मंदिर 6 वीं या 7 वीं सदी में बना हुआ है लेकिन आज 20 वीं सदी में यहां आने वाले भक्तों की श्रद्धा में कोई कमी नहीं है, यहां आने वाले श्रद्धालुओं ने इस मंदिर के प्रताप को बरकरार रखा है।

आस-पास के मंदिर भी आकर्षण का केंद्र है

भक्तों की अटूट श्रृंखला अभी भी इस क्षेत्र को लेकर बनी हुई है। इस मंदिर के आसपास महुआ मंदिर, तेराही मंदिर और सिद्धेश्वर मंदिर स्थित है, यह सभी मंदिर उस दौरान के बने हुए है जब यहा की भूमि पर राजा और राज्यों के शासकों का बोलबाला था। शिवपुरी में अधिकांश मंदिर भगवान शिव को समर्पित है लेकिन यह मठ इस क्षेत्र में बने मंदिरों में से थोड़ा अलग है जो घने जंगलों के बीच स्थित है। कई सालों से भक्त इस मठ में दर्शन करने आते रहे हैं। एक लम्बे समय से मठ इस क्षेत्र में पर्यटन का केंद्र बना हुआ है।

शिल्पकला का गढ़

यह क्षेत्र शिल्पकला प्रधान रहा है। यहां निवासरत राममोहन शर्मा और भानु प्रकाश शर्मा निवासी रन्नौद कविकार बताते हैं कि कोलारस परगने के 400 ग्रामों में रन्नौद को प्रथम कोटि में गिना जाता है। इसके पीछे एक प्रमुख वजह खोकई मठ भी है, जो आस्था के साथ-साथ ऐतिहासिक महत्व के लिए भी संपूर्ण क्षेत्र में ख्याति प्राप्त है।