कान्हा नही है राधा रानी है चंचल यहां,अपनी पसंद का भोग ओर श्रृंगार स्वीकार करती है

Bhopal Samachar
हार्दिक गुप्ता शिवपुरी।
शिवपुरी जिले का मिनी वृंदावन धाम कहने वाले कोलारस के राधा कृष्ण पंचायती मंदिर के कान्हा नहीं राधा हे चंचल। कान्हा की किशोरी को पुजारी की पसंद का भोग नहीं अपनी पसंद का भोग स्वीकार करती है और श्रृंगार भी अपनी ही मर्जी से स्वीकार करती है।

कोलारस के सदर बाजार पुरानी बस्ती में स्थित लगभग 250 साल पुराने राधा कृष्ण का मंदिर में प्रतिदिन चमत्कार होते है कुछ चमत्कार पब्लिक मे आ जाते है कुछ चमत्कारों को ठाकुरजी के पुजारी महसूस करते है। कोलारस नगर और आसपास के क्षेत्र के लोगो के आस्था का प्रतीक इस मंदिर में आज जन्माष्टमी बड़ी ही धूमधाम से मनाई जा रही है।

यह है मंदिर में राधारानी और कान्हा के नित्य नियम

मंदिर के मुख्य पुजारी जितेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि सुबह 6 बजे राज मंदिर के पट खोले जाते है और ठाकुर जी की शयन आरती की जाती है। इसके बाद ठाकुर जी को मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। सुबह 8 बजे ठाकुरजी की धूप आरती की जाती है और फिर पुन:मिष्ठान या डायफ्रुट की प्रसादी दी जाती है।

साढे आठ बजे ठाकुर जी का श्रृंगार किया जाता है और पुन फिर कान्हा और राधा रानी की श्रृंगार आरती की जाती है। 10 बजकर 30 मिनट पर भगवान का भोग लगाया जाता है यह भोग भगवान की निज रसोई घर में बनता है। 10 बजे के भोग मे कान्हा और किशोरी को कच्चा खाना दाल-रोटी,कडी चावल पापड़ और मिष्ठान का भोग लगाया जाता है। अगर पक्का भोग लगाते है तो दो सब्जी पापड़,पूड़ी,हलवा या खीर होता है। उसके बाद भगवान को वीणा का भोग लगया जाता है। 11 बजे शयन आरती की जाती है।

शाम को 6 बजे पुन:भगवान के पट खोले जाते है और उत्थान आरती की जाती है। साढ़े सात बजे संध्या आरती की जाती है और 8:30 पर भगवान को रात का भोग लगाया जाता है रात के भोग में पक्का खाना पूड़ी सब्जी मिष्ठान दिया जाता है दूध रात में प्रतिदिन भगवान को अर्पण किया जाता है। 9 बजे शयन आरती कर भगवान को शयन कराया जाता है रात में भोग मे लड्ड रखे जाते है।

ठाकुर जी छुपा लेते है और राधारानी गिरा देती है

कहते हे कि भगवान भी भक्त के ही जाते है और जो उनकी सेवा करता है वह अपने भगवान की आदत भी पहचनता है। पुजारी जितेन्द्र उपाध्याय ने बताया कि अगर ठाकुरजी को अगर कोई पोशाक नहीं पहननी तो वह उसे गुम कर देतेे है वह मिलती ही नहीं है,जो गहने उन्हे नही पहनने होते है वह भी गुम हो जाते है,इससे समझ में आ जाता है कि आज ठाकुर जी को जो पोशाक पहनाने की सोच रहे थे वह उन्हे नही पहननी है,फिर दूसरी पोशाक पहनाई जाती है। लेकिन यह गुम हुई पोशाक और आभूषण बाद मे मिल जाते है।

राधारानी आभूषणो को गिराने लगती है

पंडित उपाध्याय जी कहते है राधारानी अपने कान्हा के भोग का बडा ध्यान रखती है अगर उनकी रसोई में कोई भोग बनाया जा रहा है और वह आज ठाकुर को पसंद नहीं है तो कुछ ना कुछ गड़बड़ हो जाती है फिर दूसरा मेन्यू तैयार होता है भोंग के लिए,वही अगर राधा रानी को कोई आभूषण इस बार के श्रृंगार में नही पहनना तो वह गिराने लगती है इससे समक्ष में आता है कि आज राधा रानी को यह आभूषण पहनने का मन नही है।

रोते हुए वृद्ध महाराज मुरारीलाल जी ने बताया

जितेन्द्र उपाध्याय के पिता मुरारीलाल महाराज उम्र 92 साल ने बताया कि मैंने 70 साल ठाकुरजी की सेवा की है। शुरू शुरू में जब ठाकुर जी अपने सोने के छोटे छोटे आभूषण छुपा लेते थे,मै उन आभूषणों की तलाश करता था वह नहीं मिलते थे,मुझे डर लगता था कि अब यह सोने के आभूषण कहां से लाऊंगा,समाज मेरे पर चोरी का आरोप लगाऐगा,लेकिन यह आभूषण दो-चार दिन बाद ठाकुर के पहने वस्त्रो में ही मिल जाते थे,बाद में धीरे धीरे समझ में आने लगा कि यह मेरे ठाकुर की लीला है।

राधारानी चलकर आई थी जयपुर से,250 साल पुराना इतिहास है

कोलारस के इस मंदिर का इतिहास 250 वर्ष पुरानी है उससे पूर्व इस मंदिर को पंसारियो का मंदिर कहते थे। कोलारस के लोगो ने बताया कि लगभग 70 साल पूर्व राधारानी की प्रतिमा खंडित हो गई थी। कोलारस में गम का माहौल था-दूसरी प्रतिमा लाने के लिए पंचायत बुलाई गई। इतने मे एक जयपुर से व्यापारी केवल राधारानी की प्रतिमा लेकर आया और बोला की मै मूर्तियों का व्यापारी हूं। कोलारस के उस समय के लोगों का कहना था यह प्रतिमा हूबहू उस खंडित प्रतिमा जैसी ही थी। कुल मिलाकर कहने का सीधा सा अर्थ है कि कान्हा की किशोरी जयपुर से स्वयं चलकर कोलारस आई थी।

चमत्कारों की चर्चा: पुजारी की रसोई तक पहुंचे भगवान

मिनी वृंदावन धाम कोलारस के राधा कृष्ण के वृद्ध पुजारी ने अपने ठाकुर जी की लीला को शिवपुरी समाचार से शेयर किया। पुजारी जी ने बताया कि बहुत साल पहले की बात है कि घर में गेहूं नहीं थे,इसलिए रोटी नहीं बन सकती थी,ठाकुर जी को भोग लगाना था और हमे भी अपनी पेट की अग्नि को शांत करना था,मे और पुजारन इस विषय पर बात कर रही रहे थे कि तभी एक नवयुवक अपने कंधे पर गेहूं का कट्टा लेकर आया कहा कि पंडित जी यह सामान कहां रखना है।

मै विस्मित हो गया और मैंने बिना पूछे ही कह दिया कि रसोई घर में रख दो वह नवयुवक उस कट्टे को रखकर चला गया,पुजारी जी ने उसे रोका भी वह नहीं रुका,बाद में सवाल मन में चले कि कैसे मैंने कह दिया कि यह सामान रसोई में रख दो,पुजारी जी भरी आंखो से बोले ऐसा है मेरा ठाकुर मेरे लिए स्वयं अपने कंधे पर रखकर गेहूं लेकर आया था।

दूसरे स्मरण मे कहा कि कहते है कि कान्हा रात में रास रचाने जाते है। इसका मेरे ठाकुर ने मुझे प्रमाण दिया है कई बार सुबह मेरे बिस्तर पर और ठाकुर जी के बिस्तर पर उनके पाजेब के घुंघरू मिले है।

राधा रानी बाजार चली गई थी कान्हा को प्रसाद लाने

कोलारस के इस मंदिर का निर्माण की काई अधिकृत जानकारी नही है लेकिन बताते है कि यह मंदिर लगभग 250 वर्ष से भी अधिक पुराना है,कोलारस नगर की कुंज गलियों में यह कथा सुनाई जाती है कि लगभग 150 साल पूर्व पुजारी ने दोपहर के भोग मे मिष्ठान रखना भूल गया था। इस कारण कान्हा ने भोग स्वीकार नहीं किया,राधा रानी एक छोटी से बालिका का रूप धारण कर अपना एक कंगन बेचकर कोलारस के बाजार से कान्हा के लड्डू लेकर आई,जब सुबह पुजारी ने पट खोले और राधा रानी का एक कंगना नही था,तो कोलारस में यह चर्चा हो गई कि राधा रानी के कंगन चोरी हो गया,लेकिन यह सवाल भी उठ रहा था कि सिर्फ एक कंगन ही चोरी क्यों पूरे आभूषण क्यो नही। यह बात लड्डू बेचने वाले हलवाई के पास पहुंची तो वह कंगन लेकर सीधे मंदिर पर पहुंचा और पूछा कि यह कंगन तो नहीं है यह कंगन राधा रानी का ही था,फिर हलवाई ने पूरी बता बताई।

आज जन्माष्टमी की विशेष तैयारी

आज राधा कृष्ण के मंदिर पर आज शाम 8 बजे विशेष अभिषेक आरती के बाद दर्शन होंगे,आज विशेष श्रृंगार राधारानी और कान्हा का किया जाता है। मंदिर में सजावट की जाऐगी। वही रात 12 बजे से भगवान का जन्मोत्सव मनाया जाएगा वही 27 अगस्त को पालना दर्शन में भारी भीड़ होगी। कहा जाता है कि जो भी महिला इस पालना दर्शन में पुत्र की अभिलाषा लेकर आती है उसकी मुराद पूरी होती है।

कोलारस के वासी के दिल में बसे है यह राधाकृष्ण

कोलारस की पुरानी बस्ती में स्थित राधा कृष्ण कोलारस वासियो के दिल में बसे है,कोलारस में इनकी विशेष मान्यता है हर भक्त की मुराद पुरी करते है यह ठाकुर जी,इस कारण कोलारस में सभी धार्मिक उत्सव विशेष रूप से मान्य जाते है। कान्हा की सेवा पूजा और उत्सवों की भव्यता के कारण ही कोलारस को मिनी वृंदावन कहा जाता है।