ग्वालियर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में एक ऐसा परिवार भी रहा है जिनकी दो पीढियों के महिला एवं पुरूषों ने देश को आजाद कराने में अपनी भूमिका निभाई। शिवपुरी जिले के जमींदार पन्नालाल द्विवेदी का जन्म 1882 ई. में हुआ था यह परिवार कई पीढियों से राजपूतों के पुरोहित के रूप में कार्यरत था। चन्द्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी संघर्ष की कर्मभूमि ग्वालियर और झॉँसी नियत हुई तभी से पन्नालाल द्विवेदी का सम्पर्क चन्द्रशेखर आजाद के साथ बना। खनियाधाना के राजा खलक सिंह के साथ चन्द्रशेखर आजाद के अन्तरंग सम्बन्ध थे, बाद में इसी आरोप को आधार बनाकर खलकसिंह का राज्याधिकार छीन लिया गया। इसके बाद भी वे चन्द्रशेखर आजाद के साथ पूर्व की तरह मित्रवत् बने रहे और समय-समय पर उनकी सहायता करते रहे। राजपुरोहित परिवार के सदस्य होने के कारण पन्नालाल द्विवेदी का राजा खलकसिंह के साथ पारिवारिक संबंध था। महाराजा खलकसिंह के माध्यम से ही द्विवेदी जी चन्द्रशेखर आजाद के सम्पर्क में आए और नेपथ्य में रहते हुए उनके सहयोगी बन गए। इस बात की जानकारी कुछ दिनों बाद जब रियासत के महाराजा तक पहुॅँची तब द्विवेदी जी की जमींदारी छींन ली गई और उन पर दिनारा में साम्यवाद फैलाने का आरोप लगाया गया लेकिन द्विवेदी जी मानसिक रूप से पहले से ही तैयार थे वे जरा भी विचलित नहीं हुए। जमींदारी जब्त होने के बाद पन्नालाल द्विवेदी दिनारा और आसपास के ग्रामीण अंचलों में स्वतंत्रता का अलख जगाते रहे। उन्होंने किसानों को संगठित किया, उनके लिए संघर्ष किया और राष्ट्रीय भावनाओं को संचार करते हुए उन्हें स्वतंत्रता संघर्ष में भागीदार बनने के लिए प्रेरित और प्रवृत्त किया। उनके जीवन का परम ध्येय देश को गुलामी से मुक्त कराना था इसी ध्येय को पाने में वे जीवनभर लगे रहे। सन् 1944 में उन्होंने अंतिम श्वांस ली।