ये बात साल साल 1863 की है. तत्कालीन मेजर जेनरल जीएसपी लॉरेंस ने भारत सरकार के सचिव को लिखा था, "हमारे चालीस हज़ार सैनिक पूरी तरह से असली तात्या टोपे और उनके पांच हज़ार सैनिकों को गिरफ़्तार करने के लिए तैयार हैं. तात्या टोपे के साथ युद्ध और उनकी मौत के क़रीब चार साल बाद भी ब्रितानियों को भरोसा नहीं था कि तात्या टोपे की मौत हो चुकी है. तात्या टोपे की मौत को लेकर ऐसी किवदंतियां उस जमाने रहीं होंगी क्योंकि कुछ लोग ये मानते थे कि तात्या टोपे को मारा नहीं जा सकता था.
आज इसकी पुष्टि भले संभव नहीं हो लेकिन अंग्रेज मेजर जनरल के ख़त से यह तो ज़ाहिर हो ही रहा है कि तात्या टोपे ब्रितानी साम्राज्य के लिए परेशानी का सबब बन गए थे. तात्या टोपे को कई भूमिकाओं में रखा जा सकता है, वे नाना साहेब के दोस्त, दीवान, प्रधानमंत्री और सेना प्रमुख जैसे पदों पर रहे. 1857 के स्वाधीनता संग्राम के शुरुआती दिनों में तात्या टोपे की योजना काफी कामयाब रही. दिल्ली में 1857 के विद्रोह के बाद लखनऊ, झांसी और ग्वालियर जैसे साम्राज्य 1858 में स्वतंत्र हो गए थे.
सके अलावा दिल्ली, कानपुर, आज़मगढ़, वाराणसी, इलाहाबाद, फैज़ाबाद, बाराबंकी और गोंडा जैसे इलाके भी अंग्रेजों से पूरी तरह मुक्त हो गए थे.
तात्या टोपे ने नाना साहेब की सेना को पूरी तरह संभाला था, इसको साबित करने वाले प्रमाण मौजूद हैं. इसमें सैनिकों की नियुक्ति, उनका वेतन, प्रशासन और उनकी योजना सब तात्या टोपे ही देख रहे थे. तात्या टोपे तेजी से फ़ैसला करने के लिए जाने जाते थे और इसी वजह से उन्हें काफ़ी सम्मान से देखा जाता था. नाना साहेब के अपने मुख्य सचिव मोहम्मद इसाक़ और तात्या टोपे के साथ पत्र व्यवहार से यह ज़ाहिर होता है.