शिवपुरी। सिंधिया छत्री में कई कुंड बने हुए हैं, जिनमें एक मोहन कुंड भी है। इस कुंड के आसपास पांच सौ वर्ष पुराने बरगद-पीपल जैसे पेड़ लगे हैं। पर्यावरणविद् व छत्री ट्रस्ट ऑफिसर अशोक मोहिते का कहना है कि जब हमने मोहन कुंड में पानी देखा तो यह समझते देर नहीं लगी कि बरसों पुराने पेड़ खुद के लिए पानी को धरती के बहुत अंदर से खींच रहे हैं।
मोहिते ने बताया कि जब भीषण गर्मी पड़ने के साथ तापमान अधिक रहता है तो जमीन के अंदर की ऊपरी परत सूख जाती हैं, ऐसी स्थिति में पेड़ों की बारीक जड़ें जमीन के बहुत अंदर से पानी को खुद में सोखती हैं। जड़ें जमीन के अंदर पानी को खींचकर पेड़ को तो हरा-भरा रखती हैं, तथा यह प्रक्रिया निरंतर जारी रहती हैं। दिन में तो खींचे गए पानी को यह पेड़ खुद ही भोजन बनाने व पानी की कमी को दूर करते हैं, लेकिन रात में यह पानी अतिरिक्त हो जाने की वजह से कुंड की झिरों से आ रहा है। मोहिते बताते हैं कि पहले तो पूरे दिन इस कुंड में पानी रिस रहा था, लेकिन अब रात में अपने आप इस कुंड में पानी बढ़ जाता है।
प्राकृतिक संतुलन में पेड़ों अधिक महत्व
छत्री ट्रस्ट ऑफिसर अशोक मोहिते का कहना है कि छत्री परिसर में लगे पुराने पेड़ों के नीचे आज भी भरी दोपहरी में भी ठंडक मिलती है तथा उनकी जड़ें रसातल से पानी खींच रही हैं। पेड़ों का प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में बहुत महत्व होता है तथा पेड़ों की जड़ों की वजह से मिट्टी में नमी भी बनी रहती है।