राजा परीक्षित जन्म, शुकदेव आगमन की कथा सुन भावविभोर हुए श्रोता - SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar

दिनारा। दिनारा कस्बे के छितीपुर गांव के नंदी पर स्थित शिव मंदिर पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के दूसरे साध्वी वृन्दा भारती शास्त्री ने राजा परीक्षित जन्म, शुकदेव भगवान का आगमन, सृष्टि उत्पत्ती व शिव पार्वती विवाह की कथा सुनाई गई। कथा का आयोजन यजमान भागवती हरनाम सिंह राजपूत द्वारा कराया जा रहा है। कथा वाचक साध्वी वृन्दा भारती ने कहा कि,कलयुग के प्रभाव से राजा परीक्षित ने ऋषि श्रृंगी के गले में मरा हुआ सर्प डाल दिया था और ऋषि ने उन्हें श्राप दिया कि ठीक सातवें दिन सर्प के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी।

उसी श्राप के निवारण के लिए वेद व्यास द्वारा रचित भागवत कथा शुकदेव द्वारा सुनाई गई। जिसमें उनका उत्थान हो गया। राजा परीक्षित ने सात दिन भागवत सुनकर किस तरह अपना उद्धार कर लिया। उसी तरह प्रत्येक व्यक्ति को भागवत का महत्व समझना चाहिए। भागवत अमृत रूपी कलश है। जिसका रसपान करके आदमी अपने जीवन को कृतार्थ कर लेता है। इसलिए जहां भी भागवत होती है। ध्रुव चरित्र सृष्टि की रचना पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, मनुष्य जीवन आदमी को बार-बार नहीं मिलता है इसलिए इस कलयुग में दया धर्म भगवान के स्मरण से ही सारी योनियों को पार करता है।

मनुष्य जीवन का महत्व समझते हुए भगवान की भक्ति में अधिक से अधिक समय देना चाहिए। उन्होंने बताया कि, भगवान विष्णु ने पांचवा अवतार कपिल मुनि के रूप में लिया। शिव-पार्वती विवाह का प्रसंग बताते हुए कहा कि, यह पवित्र संस्कार है, लेकिन आधुनिक समय में प्राणी संस्कारों से दूर भाग रहा है। जीव के बिना शरीर निरर्थक होता है, ऐसे ही संस्कारों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं होता। भक्ति में दिखावा नहीं होना चाहिए। जब सती के विरह में भगवान शंकर की दशा दयनीय हो गई, सती ने भी संकल्प के अनुसार राजा हिमालय के घर पर्वतराज की पुत्री होने पर पार्वती के रूप में जन्म लिया।

पार्वती जब बड़ी हुईं तो हिमालय को उनकी शादी की चिंता सताने लगी। एक दिन देवर्षि नारद हिमालय के महल पहुंचे और पार्वती को देखकर उन्हें भगवान शिव के योग्य बताया। इसके बाद सारी प्रक्रिया शुरू तो हो गई, लेकिन शिव अब भी सती के विरह में ही रहे। ऐसे में शिव को पार्वती के प्रति अनुरक्त करने कामदेव को उनके पास भेजा गया, लेकिन वे भी शिव को विचलित नहीं कर सके और उनकी क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। इसके बाद वे कैलाश पर्वत चले गए। तीन हजार सालों तक उन्होंने भगवान शिव को पाने के लिए तपस्या की। इसके बाद भगवान शिव का विवाह पार्वती के साथ हुआ।

कथा में सुनाए गए भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे। दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक चलने वाली कथा में बड़ी संख्या में महिला-पुरुष कथा श्रवण करने पहुंचे मंगलवार को कृष्ण जन्म की कथा सुनाई जाएगी।