ग्वालियर। मप्र उच्च न्यायालय ने सांख्य सागर (चांद पाठा) में जलकुम्भी के खिलाफ दायर जनहित याचिका को लेकर सोमवार को सुनवाई हुई। जिसमें सुप्रीम कोर्ट के युवा एडवोकेट शिवपुरी निवासी निपुण सक्सेना ने बहस की। जिसके बाद मप्र उच्च न्यायालय ने कलेक्टर शिवपुरी, मुख्य संरक्षक वन, नगरपालिका, राज्य जैव विविधता बोर्ड सहित मप्र सरकार को नोटिस जारी करके 7 दिन में जवाब तलब किया है।
बता दें कि शिवपुरी के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक माधव राष्ट्रीय उद्यान के अंदर स्थित रामसर साइट सांख्य सागर झील में चारों ओर जलकुंभी फैली है। इस जलकुंभी के कारण सांख्य सागर झील की हालत खराब है। जलकुंभी ने पूरी झील के पानी को घेर लिया है,सूर्य की किरणें पानी के अंदर नहीं जाने के कारण जीव जंतुओं के जीवन पर भी असर पड़ रहा है। जलकुंभी की चादर के कारण पर्यटन नगरी शिवपुरी का नौका विहार बंद हो चुका है। जलकुंभी को लेकर मीडिया ने अभी तक सैकड़ों खबरों को प्रकाशन कर दिया है लेकिन शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क प्रबंधन पर असर नहीं हो रहा है।
पार्क की इस गंभीर लापरवाही के कारण ही इस मामले को उच्च न्यायालय की चौखट पर जाना पडा। इस तालाब में सैकड़ों मगरमच्छ है पानी में ऑक्सीजन की कमी के कारण मगरमच्छ शहर की सडको तक निकल रहे है वही यह तालाब पार्क के वन्य जीवों सहित शहर की आधी आबादी की प्यास बुझाने का काम करता है।
वन महकमे की लापरवाही के चलते पूरे तालाब में जलकुंभी बिछी हुई नजर आती हैं जिससे आने वाली भीषण गर्मी में पानी का संकट सामने आ सकता हैं खासकर माधव नेशनल पार्क के वन्य प्राणियों को पानी के लिए परेशान होना पड़ सकता हैं वहीं बीते मानसून की तरह जलकुंभी के कारण डैम टूटने की नौबत आ सकती हैं। जैसा बीते साल हुआ था। दरअसल सांख्य सागर झील 1919 में तैयार हुई। इसकी विशेषता हैं की जल भराव 1132 फीट के बाद जैसे ही जल स्तर बढ़ता है इसके ऑटोमेटिक गेटों से पानी की निकासी शुरू हो जाती हैं।
बीते कुछ साल पहले जब डेम की दीवार में कुछ जगह दरार आईं तो इनसे जल निकलने लगा। जिससे जल स्तर कम होने और सौ साल के हो चुके डेम को खतरा उत्पन्न हुआ। ऐसे में तत्कालीन सरकार में मंत्री रहते ज्योतिरादित्य सिंधिया ने चुने और विशालकाय पत्थरों से निर्मित इस डेम की सुध ली और साढ़े छह करोड़ की राशि से इसका रिसाव बंद करवाया। लेकिन बताया जाता है की इसी दौरान जब रेडियल गेटों को बदलकर नए ऑटोमेटिक गेट लगाए गए इसमें चूक हुई।
जिन गेटों से हर साल उपजने वाली जलकुंभी बारिश के ओवर फ्लो के साथ डेम से निकल जाती थी वह नए गेटों के लगने के बाद निकलती नहीं बल्कि गेटों में जाकर फस जाती हैं जिससे डेम बारिश के दिनों में टूटने की संभावना जल संसाधन विभाग ने जाहिर की थी और मुनादी करवाने के साथ मीडिया ने खबर भी दी थी। खेर डेम तो नहीं टूटा लेकिन जलकुंभी की निकासी न होने से झील का अस्तित्व खतरे में हैं। एक और बात ये की सांख्य सागर झील पर जल संसाधन का अधिकार है लेकिन नेशनल पार्क की सीमा में होने से पार्क प्रबंधन उसे पूरी तरह दखल नहीं देने देता।