शिवपुरी। 22 जनवरी 2024 का दिन इतिहास के पन्ने मे जुडकर अमर हो गया। भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में बने भव्य मंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा पूरे विधि विधान और गौरवमयी हुई है। इस अवसर पर पूरे देश में राम दिवाली मनाई गई। देश में राम लहर की चल रही थी,हर दिल में राम,और लोगों के रोम रोम में राम थे,लेकिन इस राम ना की प्रचंड आंधी में सिंधिया राजवंश के द्वारा स्थापित श्रीराम एक दुकान में लाॅक रहे,वह एक दीपक के लिए तरसते रहे।
वही शिवपुरी जिले के पोहरी नगर में भी राम नाम का शोर नहीं सुनाई दिया,पोहरी में 22 जनवरी को आयोजित होने वाले कार्यक्रमों को एक विवाद के चलते स्थगित कर दिया गया था। प्राण प्रतिष्ठा के पूर्व ही पोहरी नगर में लगे सभी बैनर पोस्टरों को उतार लिया गया था।
उल्लेखनीय है कि अमला में सिंधिया राजवंश के समय में स्थापित किया गया सौ साल से भी अधिक पुराना भगवान राम का मंदिर वर्ष 2003 में मड़ीखेड़ा डैम के डूब क्षेत्र में आने के कारण विस्थापित हुए अमोला गांव के साथ नए अमोला में विस्थापित कर दिया गया था। विस्थापन के दौरान मंदिर के विस्थापन को मुआवजा राशि लाखों रुपये में मिली थी, लेकिन इसके बावजूद पिछले 16 सालों से विस्थापन का दंश झेल रहे भगवान अमोला क्रेशर के हाट बाजार में कैद हैं।
इसी क्रम में जब 22 जनवरी को छोटे से छोटे मंदिरों को चिह्नित कर वहां पर अयोध्या में भगवान राम को प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाया जा रहा था, तब भी प्रशासन ने अमोला में सिंधिया राजवंश के समय में स्थापित सौ साल से भी अधिक पुराने ऐतिहासिक महत्व के राम मंदिर की सुध नहीं ली। हालात यह रहे कि जिस दुकान में भगवान ताले में कैद हैं उस दुकान को न तो सफाई करवाई गई और न हो भगवान राम को प्रतिमा पर लगे मकड़ी के जाले हटाए गए।
यहां तक कि जहां भगवान राम केंद हैं वहां पर एक दीपक तक जलवाने को व्यवस्था नहीं की गई। कुल मिलाकर जिस समय पूरा देश अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाते हुए भगवान राम को भक्ति में लीन था, उस समय भो अमोला के भगवान राम अंधेरे में बैठे थे। प्रशासनिक लापरवाही के कारण 16 साल से वनवास भुगत रहे भगवान राम को किसी ने भी कोई सुध नहीं ली।
उल्लेखनीय है कि अमला में सिंधिया राजवंश के समय में स्थापित किया गया सौ साल से भी अधिक पुराना भगवान राम का मंदिर वर्ष 2003 में मड़ीखेड़ा डैम के डूब क्षेत्र में आने के कारण विस्थापित हुए अमोला गांव के साथ नए अमोला में विस्थापित कर दिया गया था। विस्थापन के दौरान मंदिर के विस्थापन को मुआवजा राशि लाखों रुपये में मिली थी, लेकिन इसके बावजूद पिछले 16 सालों से विस्थापन का दंश झेल रहे भगवान अमोला क्रेशर के हाट बाजार में कैद हैं।
इसी क्रम में जब 22 जनवरी को छोटे से छोटे मंदिरों को चिह्नित कर वहां पर अयोध्या में भगवान राम को प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाया जा रहा था, तब भी प्रशासन ने अमोला में सिंधिया राजवंश के समय में स्थापित सौ साल से भी अधिक पुराने ऐतिहासिक महत्व के राम मंदिर की सुध नहीं ली। हालात यह रहे कि जिस दुकान में भगवान ताले में कैद हैं उस दुकान को न तो सफाई करवाई गई और न हो भगवान राम को प्रतिमा पर लगे मकड़ी के जाले हटाए गए।
यहां तक कि जहां भगवान राम केंद हैं वहां पर एक दीपक तक जलवाने को व्यवस्था नहीं की गई। कुल मिलाकर जिस समय पूरा देश अयोध्या में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा का उत्सव मनाते हुए भगवान राम को भक्ति में लीन था, उस समय भो अमोला के भगवान राम अंधेरे में बैठे थे। प्रशासनिक लापरवाही के कारण 16 साल से वनवास भुगत रहे भगवान राम को किसी ने भी कोई सुध नहीं ली।