शिवपुरी। जिले में सरकारी अनुदान प्राप्त स्कूलों सहित मदरसों में आठवीं तक के बच्चों को मिलने वाले मध्यान्ह भोजन की राशि करीब ढाई माह से नहीं आई है जिससे अब भोजन बनने वाली महिलाओं की रसोई डगमगा गई है। स्कूलों में कही कही तो भोजन वन रहा है लेकिन कुछ ऐसे स्कूल भी है जहां भोजन बनना भी बंद कर दिया गया है। वही जिले के अधिकारियों का भी कहना है कि यह पैसा सीधा भोपाल से आता है जैसे ही पैसा आयेगा वह डलवा देगे।
जिले के सरकारी स्कूलों में बटने वाला मध्यान्ह भोजन और मानदेय की राशि करीब ढाई माह से नहीं आई है। यह राशि विश्व चुनाव से पहले अक्टूबर के लास्ट के दिनो में स्व-सहायता समूहों को जारी की गई थी तो वहीं इस पूरी व्यवस्था की धुरी महिला रसोइयों के हाथों में आखिरी मानदेय 11 नवम्बर को आया था, तब से करीब अब ढाई महीने हो चुके है लेकिन अभी तक राशि नहीं आई है। मध्यान्ह भोजन पर नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद सुधार होने की बजाय ग्रहण लग गया है। यह दोनों ही राशि नहीं आने से जिले के अधिकतर स्कूलों में मध्यान भोजन की समस्या डगमगा गई है। जिससे कुछ स्कूलों में तो लगभग भोजन बंद सा हो गया है। यहा तक की राशि कब तक आएगी इसकी जानकारी भी कोई नहीं दे रहा है जिससे रसोईओं में खाना बनाने वाली बाई भी अब खाना नहीं बना रही है।
सरकार ने किया था यह बदलाव तब हुई थी खुशी
सरकार ने जब रसोइयों के खाते में 2 हजार रुपये की जगह चार हजार रुपये का मानदेय दिया था उस समय खुशी हुई थी यह मानदेय अक्टूबर माह कहा था, हालांकि इसके बाद अब तक न तो बढ़ा हुआ और न ही पुराने मान से मानदेय खातों में पहुंचा है। स्व-सहायता समूह के लोगों में चर्चा है कि लाडली बहना जैसी योजना में भारी भरकम बजट खर्च होने से एमडीएम, पोषण आहार सहित अन्य योजनाओं का आर्थिक सिस्टम गड़बड़ा गया है।
जिले में यह है मध्यान भोजन के बच्चों का आकडा
जिले में मध्यान्ह भोजन योजना बच्चों के एक बड़े वर्ग के लिए संचालित होती है। आंकड़ों की बात करें तो जिले में 2234 प्राथमिक, 687 माध्यमिक स्कूलों के अलावा अनुदान व मदरसों को मिलाकर यह संख्या तीन हजार के करीब है और यहां योजना से लाभान्वित होने वाले बच्चों का आंकड़ा पहली से आठवीं तक करीब डेढ़ लाख है। योजना के लिए प्राथमिक व माध्यमिक स्तर पर बच्चों की ऑनलाइन उपस्थिति के आधार पर भोजन पकाने की लागत राशि नियमानुसार हर महीने जारी चाहिए,
विधानसभा चुनाव से पहले दी थी शिवराज मामा ने खुशी
चुनाव से पहले मानदेय दो हजार से बढ़ाकर चार हजार रुपये किया था जो कि अभी एक बार ही मिला है। लेकिन चुनाव के साथ ही यह स्थिति डगमगा गई। तीन महीने होने को है, फिलहाल स्व-सहायता समूहों की महिला सदस्य राशि के इंतजार में कभी बैंकों के तो कभी कार्यालयों के चक्कर काट रही हैं।
गांव में भी हो रही कई परेशानी
खाद्यान्न भी समय पर नहीं रसूखदारों के कब्जे वाले कुछ स्व-सहायता समूहों को छोड़ दें तो ग्रामीण क्षेत्रों में बीपीएल वर्ग से आने वाली महिलाएं ही एमडीएम योजना को अपने समूह के माध्यम से संचालित कर रही है। ऐसे में राशि न मिलने से उन्हें परेशानी झेलनी पड़ रही है, तो वहीं लीड संस्था से लेकर कंट्रोल तक खाद्यान्न में शामिल गेहूं व चावल भी समय पर उपलब्ध नहीं कराया जा रहा है।
इन निरक्षर स्व-सहायता समूह वालों को कभी उचित मूल्य की दुकान संचालक खाद्यान्न लीड स्तर से न आने तो कभी डिजिटल मशीन में खाद्यान्न आवंटन प्रदर्शित न होने की बात कह कर भगा देते हैं।