शिवपुरी। राजनीति समाज को तोड़ती है और साहित्य समाज को जोड़ता है इसलिए साहित्य राजनीति से कहीं श्रेष्ठ है। जीवन की विभिन्न स्थितियों मन स्थितियों में साहित्य ही मनुष्य का मार्गदर्शन करता है इसलिए हर युग में साहित्य की उपयोगिता अक्षुण्ण रहेगी। यह उद्गार श्री रामकिशन सिंघल फाउंडेशन द्वारा दुर्गा मठ में आयोजित सम्मान समारोह एवं काव्य संध्या में मुख्य अतिथि व म.प्र. लेखक संघ के प्रांतीय अध्यक्ष रामवल्लभ आचार्य ने व्यक्त किए।
आयोजन के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार हरीश भार्गव ने कहा कि सिंहल जी संघर्ष के प्रतिरूप थे।वह अपने सामाजिक राजनीतिक जीवन में सदैव उच्च मानदंडों की स्थापना के लिए संघर्ष करते रहे।विशिष्ट आतिथि विचारक एवं चिंतक हरिहर शर्मा ने बताया कि वह सिंहल जी के सम्पर्क में रहे हैं और आपातकाल के बाद जनता पार्टी के शासन में उनके नेतृत्व में काम किया है।वह सिद्धांतवादी थे इसमें दो मत नहीं हैं।
श्री रामकिशन सिंघल फाउंडेशन द्वारा दुर्गा मठ में आयोजित काव्य संध्या में -'हैं नहीं ये हाथ केवल हाथ मलने के लिए/तू इन्हें मुट्ठी बना दुनिया बदलने के लिए' पंक्तियां पढ़ते ही सभागार भोपाल से पधारे गजलकार महेश अग्रवाल के लिए तालियों से गूंज उठा।
गीतकार ऋषि श्रंगारी ने मधुर स्वर में जब कहा-ढल रही है शाम जीवन की अंधेरा है शिवालय में/जलाकर दीप यादों के इन्हें धरने चले आओ,तो वंश मोर की आवाज गूंजने लगी।नई ग़ज़ल सम्मान से सम्मानित अशोक निर्मल ने कहा -अपने सूरज की हो जाये अनुगामिनी/और क्या चाहिए इक किरन के लिए।रामवल्लभ आचार्य ने प्रतीकात्मक गीत प्रस्तुत किया-मन में इतनी उलझन जितने सघन सतपुड़ा वाले वन/हल्दी घाटी हुई सिंध की चेरापूंजी हुए नयन।
प्रारंभ में सुकून शिवपुरी ने पुरुषोत्तम राम के आदर्श को मुक्तकों के माध्यम से प्रस्तुत किया तो श्रीमती उर्वशी गौतम ने राम की शाब्दिक वंदना की।हेमलता चौधरी ने शहीदों को नमन करते हुए देशभक्ति के लिए प्रेरित किया।प्रमोद भारती ने कहा-जिनके सतत संघर्ष से खिल उठी कली कली/ऐसे सुगंधित पुष्प को सहस्त्रों श्रद्धाजंलि।प्रभुदयाल शर्मा ने पिता पर केन्द्रित कविता के साथ उन्हें प्रणाम किया तो रमेशंचंद्र वाजपेयी ने साम्प्रदायिक हिंसा की मुखालफत की।सुभाष पाठक ने पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता व्यक्त की-हवा को साफ नदी ताल को भरे रखना/यें चाहते हो तो जंगल सभी हरे रखना।
डॉ. मुकेश अनुरागी ने नवगीत में प्रतिबिंब प्रस्तुत किया-बिना कहे चुपचाप आ गई दालानों में धूप। याकूब साबिर ने कहा-जीत को हार बना देता है/राह दुश्वार बना देता है।गोविंद अनुज ने पिता पर केंद्रित गीत का पाठ किया-सुख सुविधाओं के मनभावन झूले झूल रहे/पिता तुम्हारे आशीषों से हम फल फूल रहे।आशीष पटैरिया ने एक हास्य व्यंग्य की रचना से गुदगुदाया।प्रकाशचन्द्र सेठ ने विचारोत्तेजक कविता प्रस्तुत की। अवधेश सक्सेना ने अपने मुक्तक से प्यार मोहब्बत की शिक्षा दी।
काव्य संध्या में घनश्याम योगी,सतीश श्रीवास्तव, सौरभ तिवारी करैरा ,राधेश्याम सोनी ,सतीश दीक्षित किंकर बैराढ़ ,विनयप्रकाश नीरव, इशरत ग्वालियरी, अजय जैन अविराम आदि ने भी काव्य पाठ किया।अंत में सी. पी. वर्मा ,विजय भार्गव, त्रिलोचन जोशी ,पंकज गर्ग आदि द्वारा फिल्मी गीतों की प्रस्तुति दी गईं।