शिवपुरी। विधानसभा चुनाव के परिणाम सामने आ चुके है मप्र में भाजपा को शानदार जीत मिली है। इस जीत से भाजपा के पन्ना प्रभारी से राष्ट्रीय नेतृत्व तक खुश है,वही कांग्रेस में मातम है और सबसे अधिक दुखी वह नेता है जिन्होने भाजपा का त्याग कर कांग्रेस का हाथ थामा था। वही ऐसे कांग्रेस और भाजपा के ऐसा नेता भी राजनीतिक वनवास की ओर है जो इस विधानसभा चुनाव में बड़ी हार हारे है।
वीरेन्द्र रघुवंशी ने कांग्रेस के टिकट की आस में छोड़ी पार्टी
कोलारस विधानसभा से पांच साल तक भाजपा के विधायक रहे वीरेंद्र रघुवंशी ने इस उम्मीद में पार्टी छोड़कर कांग्रेस का दामन थामा था कि शिवपुरी से विधानसभा चुनाव का टिकट मिलेगा। बाद में शिवपुरी से केपी सिंह टिकट ले आए तो फिर वीरेंद्र ने चुनाव प्रचार के दौरान शिवपुरी छोड़कर दूसरे जिलों में कांग्रेस का चुनाव प्रचार किया। अब चर्चा यह भी है कि विधानसभा चुनाव में गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस का प्रचार करने के परिणामस्वरूप उन्हें लोकसभा में कांग्रेस इस संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बना सकती है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो वीरेंद्र रघुवंशी की राजनीति के यह पांच साल तो अज्ञातवास में ही चले जाएंगे।
सिंधियानिष्ठ परिवार के सेठजी ने छोडा सिंधिया का साथ
राकेश गुप्ता पिता सांवल दास गुप्ता तीन बार नगर पालिका अध्यक्ष रहे हैं। पूरा परिवार कट्ट सिंधिया समर्थक था। शिवपुरी से टिकट की चाह में पार्टी छोड़ी थी, लेकिन टिकट नहीं मिला। उम्रदराज हैं और अब पांच साल बाद फिर चुनाव के मैदान में लौटना मुश्किल है।
धाकड़ समाज के बड़े नेता, नहीं मिला टिकट
रघुराज धाकड़ ग्रामीण अंचल में किरार समाज के नेता हैं और किसान कांग्रेस में बड़े पदों पर रहे। कोलारस से टिकट चाहते थे, लेकिन नहीं मिला। चुनाव प्रचार में भी नदारद ही नजर आए। अब यहां सिंधिया समर्थक महेंद्र यादव जीत चुके हैं।
कोलारस से टिकट की आस, नही बैठी गोटी फिट
जितेंद्र जैन गोटू: कोलारस से टिकट की उम्मीद में कांग्रेस में गए और जमकर भंडारे कराए। पार्टी में अपनी पैठ बनाने यशोधरा राजे को लेकर तीखे बयान भी दिए। बाद में टिकट नहीं मिला तो भाजपा से शिवपुरी में चुनाव लड़े अपने भाई देवेन्द्र जैन के साथ चुनाव मैदान में कूंद गए।
टिकिट तो मिला,लेकिन करारी हार भी मिली
बैजनाथ सिंह यादव: कट्टर सिंधिया समर्थक रहे और पार्टी बदलने के बाद कांग्रेस से 72 वर्ष की उम्र में पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। 50 हजार से अधिक मतों से हार का सामना करना पड़ा। अब अगले चुनाव तक राजनीति में सक्रिय रहने पर भी संशय है।
करारी हार से करियर पर संकट
पोहरी से पहली बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर विजय श्री का वरण करने वाले पूर्व राज्यमंत्री सुरेश राठखेड़ा ने अपने 5 साल के कार्यकाल में जीत,इस्तीफा अचानक से मंत्री पद और अब हार का स्वाद भी चख लिया है। अपने राजनीतिक भगवान ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ भाजपा का दामन थमा ओर अपनी विधायकी से इस्तीफा दिया। भाजपा के प्रत्याशी के रूप में फिर पोहरी से उपचुनाव लड़ा और राज्य मंत्री बने। भाजपा ने चुनाव लडाने से पहले ही मंत्री बना दिया था।
विधानसभा 2023 की बात करे तो चुनाव से पूर्व ही सर्वे में रिपोर्ट निगेटिव आई लेकिन अपने राजनीतिक भगवान ज्योतिरादित्य सिंधिया के भरोसे पर अड़े रहे और फिर भाजपा का टिकट प्राप्त कर चुनाव लडा। चुनाव में भारी विरोध के चलते मप्र की सबसे बड़ी खबर बने कि प्रचार के दौरान मतदाता ने हाथ काट लिया।
अपना सब कुछ दांव लगाने के बाद भी जनता को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सके और जनता ने हरा दिया। कांग्रेस प्रत्याशी ने करारी हार दी। हार का आकडा 40 हजार के पार है। अब राजनीतिक गाडी पटरी वापस लौटेगी कह नहीं सकते,लेकिन अब यह लिख सकते है कि सुरेश राठखेडा का अब राजनीतिक कैरियर संकट में अवश्य है।
पिछोर पहलवान को अखाड़ा बदलना पड़ा भारी, चित्त
छात्र जीवन से राजनीति की शुरुआत करने वाले केपी सिंह ने पिछोर से पहला चुनाव वर्ष 1993 में जीता और फिर लगातार 6 बार विधायक रहने के बाद वे सातवां चुनाव लड़ने अपनी सीट छोड़कर शिवपुरी आ गए। जबकि शिवपुरी से कांग्रेस प्रत्याशी बनाने का वायदा कमलनाथ ने वीरेंद्र रघुवंशी से कर दिया था, जिसके चलते चुनाव से पहले वीरेंद्र ने भाजपा को बाय-बाय करके कांग्रेस का दामन थामा था।
झांसी रोड पर स्थित पत्थर फैक्ट्री पर होने वाली सालाना गोठ में केपी सिंह से मिलने शहर के कुछ विशेष लोग जाते थे, जिन पर भरोसा करके वे यहां से चुनाव लड़ गए और परिणाम स्वरूप पह 43030 वोट से करारी शिकस्त गर मिली। केपी सिंह ने अपना क्षेत्र पहले ही छोड़ दिया और यहां से हार गए, तो अब उनका राजनीतिक करियर भी खत्म होने की कगार पर आ गया।