आजकल फिल्मों और टीवी सीरियलों में कई बार दोहराया जाता है कि बेटियां बेटों से काम नहीं होती। परिवार की जिम्मेदारी उठाने में सक्षम होती है, लेकिन ताजा प्रसंग देखने के बाद फिल्मी डायलॉग पर विश्वास नहीं होता। लगता है जैसे पुराने लोग सच कहते थे। बेटियां पराया धन होती हैं, वक्त आने पर जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेती हैं।
सन 1994 में आई और बोली कि मैं अपने घर लौट कर आई हूं। अब हमेशा यही रहूंगी। आप सब का ध्यान रखूंगी। शिवपुरी वाले तो सब पर विश्वास कर लेते हैं, अपनी लाडली घर आई है तो पलक पांवड़े बिछा दिए। 1998 और 2005 में जो मांगा वह दिया, 2007 मे ग्वालियर गई तो सोचा चलो अपना ही घर है। यहां अच्छा नहीं लग रहा होगा। 2013 में वापस आई तो किसी ने कोई सवाल नहीं किया। शिवपुरी ने 2019 में अपने बेटे को सबक सिखाया लेकिन 2018 में अपनी बिटिया को आंख भी नहीं दिखाई। कभी कोई कमी नहीं रहने दी, फिर भी कल गुड बाय कह कर चली गई।
बेटा होता तो जाता क्या। कोई बहाना बनाता क्या। आज जब दुनिया भर में तेजी से विकास हो रहा है। शिवपुरी को अपनी पढ़ी-लिखी बेटी की जरूरत है। हमको भी डिजिटल बनना है। हम भी स्मार्ट बनना चाहते हैं, लेकिन क्या उम्मीद करें। पुराने लोगों ने सही कहा है, बेटियां पराया धन होती है, जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेती हैं।