SHIVPURI NEWS- गणेश कुंड हुआ खाली:दस दिन सिर माथे पर श्रीजी, लेकिन अब-इस भक्ति को अब क्या नाम दे

Bhopal Samachar
जय नारायण शर्मा शिवपुरी। शिवपुरी जिले में गणेश उत्सव की धूम रहती है। शिवपुरी का गणेश उत्सव मप्र में अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है। गणेश चतुर्थी से लेकर अनंत चौदस के दिन तक शिवपुरी के निवासियों ने बडी श्रद्धा के साथ गणेश जी की पूजा अर्चना की थी और अनंत चौदस के केा श्रीजी का विसर्जन किया गया था।

शिवपुरी शहर में नगर पालिका के द्धवारा बनवाए गए गणेश कुंड में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया था। पिछले 5 सालो से शहर इसी कुंड में गणेश प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। माना जाता है कि गणेश प्रतिमा के विसर्जन के बाद गणेश जी अपने धाम को चले जाते है। लेकिन अब गणेश कुंड जो तस्वीर मिल रही है वह हृदय को सिर्फ पीडा ही दे सकती है।

10 दिन गणेश जी सिर पर रहे,लेकिन अब भक्ति को क्या नाम दे

गणेश चतुर्थी से अनंत चौदहस गणेश जी को सभी भक्तों ने सिर माथे पर लिया। शहर में गणेशोत्सव की धूम रही। जब भक्त अपने गणेश जी का विसर्जन करने जा रहे थे जब विदाई के समय बहुत से भक्तों की आंखें भर आई थी। लेकिन अब गणेश प्रतिमाओं की दुर्दशा हो रही है,यह हम नही कह रहे बल्कि गणेश कुंड से आई तस्वीरे कह रही है।

गणेश कुंड लीकेज खाली हुआ- अब गणेश प्रतिमाओं का पानी में घुलने का इंतजार

नगर पालिका शिवपुरी का गणेश कुंड लीकेज था। नगर पालिका ने इस कुंड को भरने के लिए टैंकर का पानी डाला था वही अनंत चौदस की रात भर इसमें लेजम से पानी छोड़ा गया था लेकिन उसके बाद इसमें पानी नही भरा गया। अब प्रतिमा आधी अधूरी ही गल पाई है।

गणेश प्रतिमाओं की दुर्दशा में नगर पालिका के साथ भक्तों की गलती

बाजार से गणेश प्रतिमा खरीदते समय लोगों ने यह नही सोचा की यह प्रतिमा पीओपी से बनी है यह किसी भी किमत पर पानी में घुलेगी नही। मंदिर पर गणेश प्रतिमा विराजमान करने वाली समिति भी आकर्षक और सुंदर दिखने वाली बडी बडी प्रतिमाए लेकर आए थे। पीओपी से बनी प्रतिमाए सुंदर और आकर्षक तो सकती है लेकिन शास्त्रों के अनुसार नही होती है। हिन्दू शास्त्रों मेें गोबर गणेश और मिट्टी से बने गणेश बनाने का उल्लेख है,लेकिन हम हिन्दू धर्म के अनुसार गणेश जी की पूजा विधान तो मानते है लेकिन धर्म के अनुसार गोबर गणेश या मिट्टी से बनी गणेश मूर्ति का पूजा नही करते है।

क्या कहते है शास्त्र:यह है कहानी गणेश चर्तुथी से विसर्जन तक की

भगवान वेदव्यास ने जब शास्त्रों की रचना प्रारम्भ की तो भगवान ने प्रेरणा कर प्रथम पूज्य बुद्धि निधान श्री गणेश जी को वेदव्यास जी की सहायता के लिए गणेश चतुर्थी के दिन भेजा। वेदव्यास जी ने गणेश जी का आदर सत्कार किया और उन्हें एक आसन पर स्थापित एवं विराजमान किया

जैसा कि आज लोग गणेश चतुर्थी के दिन गणपति की प्रतिमा को अपने घर लाते हैं
वेदव्यास जी ने इसी दिन महाभारत की रचना प्रारम्भ की या " श्री गणेश" किया । वेदव्यास जी बोलते जाते थे और गणेश जी उसको लिपिबद्ध करते जाते थे। लगातार दस दिन तक लिखने के बाद अनंत चतुर्दशी के दिन इसका उपसंहार हुआ ।

भगवान की लीलाओं और गीता के रस पान करते करते गणेश जी को अष्टसात्विक भाव का आवेग हो चला था जिससे उनका पूरा शरीर गर्म हो गया था और गणेश जी अपनी स्थिति में नहीं थे ।

गणेश जी के शरीर की ऊष्मा का निष्कीलन या उनके शरीर की गर्मी को शांत करने के लिए वेदव्यास जी ने उनके शरीर पर गीली मिट्टी का लेप किया। इसके बाद उन्होंने गणेश जी को जलाशय में स्नान करवाया, जिसे विसर्जन का नाम दिया गया।

गणेश जी को घर में लाने तक तो बहुत अच्छा है, परंतु विसर्जन के दिन उनकी प्रतिमा के साथ जो दुर्दशा होती है वह असहनीय बन जाती है। आजकल गणेश जी की प्रतिमा गोबर की न बना कर लोग अपने रुतबे पैसे, दिखावे और अखबार में नाम छापने से बनाते हैं। जिसके जितने बड़े गणेश जी, उसकी उतनी बड़ी ख्याति प्राप्त करना है।