शिवपुरी। हमारे हिन्दू धर्म में कई सारी परंपरा चली आ रही हैं, जिन्हें यह संसार निभा रहा हैं। कोई भी त्यौहार या पर्व हो हमारे यहां वह बेहद खास होता हैं, तो आज हम उस त्योहार की बात करने जा रहे हैं जो सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद खास माना जाता हैं। महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं और अपने रिश्ते को मजबूत बनाएं करने की कामना करती हैं।
जी हां हम बात कर रहे हैं उस विशेष त्यौहार''करवा चौथ''की, जिसे हिन्दू धर्म में सुहागिन महिलाओं के लिए एक बहुत बड़ा पर्व या बहुत बड़ा दिन मानती हैं, करवा चौथ पर विवाहित महिलाएं अपने पति के लिए भूखी, प्यासी रहकर व्रत रखती हैं। और पूरे दिन अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं। वैसे तो चाहे कोई भी महिला हो, वह हर दिन, हर घंटे, हर पल अपने पति की लम्बी उम्र की ही कामना करती हैं। लेकिन करवा चौथ इतना खास क्यों माना जाता हैं आइए हम जानते हैं।
चंद्रमा पुरुष रूपी ब्रहा का रूप हैं
करवा चौथ के दिन भगवान गणेश, शिव-पार्वती और कार्तिकेय की पूजा होती है, मां पार्वती को अखंड सौभाग्यवती का वरदान प्राप्त था। ऐसे में मां पार्वती की पूजा कर महिलाएं अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद मांगने के लिए व्रत रखती हैं, इसके अलावा चांद को देखकर व्रत खोलने के पीछे एक वजह यह भी है कि चंद्रमा पुरुष रूपी ब्रह्मा का रूप है
चंद्रमा को हैं दीर्घ आयु का वरदान प्राप्त
धार्मिक आधार पर देखें तो चंद्रमा भगवान ब्रह्मा का रूप हैं, और वहां एक और मान्यता है कि चांद को दीर्घ आयु का वरदान प्राप्त हैं। इसीलिए चांद की पूजा करने से दीर्घ आयु प्राप्त होती हैं, साथ ही चंद्रमा सुंदरता और प्रेम का प्रतीक भी होता हैं यही कारण हैं कि पत्नी चांद को देखकर, चांद की पूजा करके अपने पति की लम्बी उम्र की कामना करती हैं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
पौराणिक कथाओं में एक ब्राह्मण के सात पुत्र और इकलौती पुत्री वीरावती थी। सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती बहुत ही लाडली थी। सभी भाई उससे अपार प्रेम करते थे और बहन की आंखों में एक आंसू नहीं देख पाते थे। कुछ सालों बाद वीरावती का का विवाह एक ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद जब वीरावती मायके आई तो उसने अपनी सातों भाभियों के साथ करवा चौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वो भूख और प्यास से व्याकुल हो उठीं। अपनी बहन की ऐसी हालात देखकर सभी भाई उससे खाना खाने के लिए मनाने लगे। इसके बाद वीरावती ने कहा वो खाना या पानी नहीं पी सकती है क्योंकि उसका करवा चौथ का व्रत है। वो चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही अन्न और पानी को हाथ लगा सकती है।
चंद्रमा के जल्दी नहीं दिखने पर भाईयों ने एक तरकीब खोजा और एक भाई पीपल के पेड़ पर चढ़कर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी-खुशी जाकर चांद को देखा और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई। उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई।
इसके बाद वीरावती की भाभी ने सारा माजरा बताया कि उसके साथ ये सब क्यों हुआ है। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। फिर एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवा चौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। तब देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवा चौथ का व्रत करने के लिए कहा। इंद्राणी की बात सुनकर वीरावती ने वैसा ही किया और फिर पूरी श्रद्धा के साथ करवा चौथ का व्रत रखा। उसकी पूजा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंने वीरावती को अखंड सौभाग्यवती भव: का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया।
यह हैं करवा चौथ पर करवे का महत्व
करवा चौथ में सबसे अहम करवा होता है। करवा का अर्थ होता है मिट्टी का बर्तन। इस व्रत में सुहागिन स्त्रियां करवा की पूजा करके करवा माता से प्रार्थना करती है कि उनका प्रेम अटूट हो। पति-पत्नी के बीच विश्वास का कच्चा धागा कमजोर न हो पाए।
इसके लिए मिट्टी के बर्तन को प्रतीक चिन्ह के रूप में प्रयोग किया जाता है, क्योंकि मिट्टी के बर्तन को ठोकर लग जाए तो चकनाचूर हो जाता है, फिर जुड़ नहीं पाता है। इसलिए हमेशा यह प्रयास बनाए रखना चाहिए कि पति-पत्नी के प्रेम और विश्वास को ठेस नहीं पहुंचे।