हमारे पूर्वज हमारी विरासत: पब्लिक के वास्तविक HERO थे स्व:सुशील बहादुर अष्ठाना, यू ही कोई रॉबिनहुड नही बन जाता

Bhopal Samachar
शिवपुरी। हमारे पूर्वजों से प्राप्त विरासत आने वाली पीढ़ी के लिए अमानत होती है। चुनावी समय है और पितृ पक्ष भी चल रहे है ऐसे समय में जनसेवा की जो विरासत हमारे सामने छोड़ गए है उनका स्मरण भी श्रद्धांजलि से कम नही होता। शिवपुरी की राजनीति की अगर 57 से 90 तक बात होगी तो शिवपुरी विधानसभा से तीन बार विधायक रहे स्व:श्री सुशील बहादुर अष्ठाना की अवश्य होगी-साथी कहते थे कि जिसका कोई नही उसके सुशील भाई साहब थे। सुशील बहादुर नाम के बहादुर नही बल्कि उनके जीवन में कई ऐसे घटनाएं सामने आई है जिससे यह सिद्ध हुआ कि वह जनसेवा में भी बहादुर थे।

शिवपुरी जिले में भारतीय जनसंघ के निर्विवाद एकछत्र नायक रहे श्री सुशील बहादुर अष्ठाना का जन्म अगस्त 1928 में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन मंदसौर में हुआ था। पिता श्री जंग बहादुर अष्ठाना पी.डव्लू.डी. में कार्यरत थे। स्थानान्तरण के कारण वे जहां जहां जाते, पूरा परिवार भी स्वाभाविक ही साथ जाता। अतः सुशील जी की प्रारम्भिक शिक्षा विदिशा में हुई। पिताजी के शिवपुरी स्थानान्तरण होने पर वे भी शिवपुरी आये और शिवपुरी महाविद्यालय से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर की डिग्री प्राप्त की व प्रथम छात्र संघ अध्यक्ष बनने का गौरव प्राप्त किया था और दो बार लगातार छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए।

अधिकारियों के विवाद के कारण कर दिया नौकरी का त्याग

पिताजी के स्वर्गवास के बाद उन्होंने कुछ समय पी.डब्लू.डी. में ही नौकरी भी की, किन्तु अधिकारियों से विवाद के चलते नौकरी छोड़ दी। किन्तु उनके इस निर्णय के कारण उन्हें गंभीर आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा। साइकिल की पंचर जोड़ने व पेंटिंग को व्यवसाय बनाना पड़ा। आर्थिक कठिनाईयों से जूझते हुए भी सुशील जी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक के रूप में भारत विभाजन के दौरान आये हुए विस्थापितों के पुनर्वास में सहयोग के साथ हिन्दू समाज में व्याप्त असुरक्षा की भावना दूर करने में महत्वपूर्ण कार्य किया।

29 साल की उम्र पहला चुनाव

मात्र 29 वर्ष की अवस्था में स्व:अष्ठाना जी ने अपना पहला विधानसभा चुनाव लडा था। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से 1957 व 1962 में सुशील जी को भारतीय जनसंघ का प्रत्यासी बनाया गया था। उस समय जनसंघ अपने पैरो पर खड़ा होना सीख रहा था और मप्र में केवल हिन्दू महासभा और कांग्रेस के प्रत्याशी की चुनाव में विजयी होते थे। हालांकि यह दोनो चुनाव स्व:सुशील बहादुर अष्ठाना हार गए थे,लेकिन इन चुनावो में स्व:अष्ठाना जी एक लोक नायक नेता की छवि में स्थापित हो गए और जनसंघ को भी यहां मजबूती मिल गई थी।

1967 में मप्र में चुनाव हुए और सुशील बहादुर अष्ठाना जनता पार्टी के उम्मीदवार विधायक चुने गए,इसके बाद 1972 में विधानसभा चुनाव संपन्न हुए और शिवपुरी की जनता ने सुशील बहादुर अष्ठाना को पुन:शिवपुरी ने अपना विधायक के रूप में स्वीकार किया। फिर उसके बाद 1990 वाला चुनाव शिवपुरी विधानसभा के इतिहास के पन्नों में दर्ज हुआ था इस चुनाव में स्व:अष्ठाना जी ने निर्दलीय के रूप में लडा था और भाजपा के दिग्गजों ने इस चुनाव में स्व:अष्ठाना का प्रचार अपने चुनाव चिन्ह फूल के खिलाफ किया था और इस चुनाव में स्व:सुशील बहादुर अष्ठाना रिकार्ड मतो से विजयी हुए थे।

कैसे सुशील जी रॉबिन हुड बने

वैसे तो सुशील जी के अनेक किस्से है लेकिन इन किस्सो को आज भी याद किया जता है कि एक नगरपालिका चुनाव में एक मुस्लिम नाबालिग तरुण फर्जी वोट डालते हुए पकड़ा गया। कार्यकर्ता उसे पकड़कर थाने ले गए और उसे थानेदार के सुपुर्द कर दिया गया था, पीछे मुस्लिम समाज का हुजूम भी थाने पहुँच गया, घबराये थानेदार ने प्रकरण कायमी नहीं कीै मालूम पड़ने पर सुशील जी भी थाने पहुंचे व थानेदार को समझाया कि लडके की उंगली पर स्याही का निशान है, इसका अर्थ ही यह है कि इसने वोट डाला है, अतः आपको कार्यवाही करना चाहिएै किन्तु थानेदार बदतमीजी पर उतर आया, यहाँ तक कि उन पर डंडा तानने की जुर्रत भी कर बैठौ फिर क्या था सुशील जी आगबबूला हो गए और फिर हुई - जैसे देव बैसी पूजौ जमींदोज और अपमानित थानेदार ने सुशील जी पर मारपीट का मुक़दमा कायम कर दिया !

अब सामने आये तत्कालीन संघचालक व मामले को जलेबी बनाने की महारत में विख्यात बाबूलाल जी शर्मा वकील साहब, श्री मंसूरकर न्यायाधीश थेै जिरह से प्रभावित न्यायाधीश ने पुलिस वालों से प्रतिप्रश्न किया कि कोतबाली के अन्दर चार पुलिस वाले थे और मारपीट का मुक़दमा कायम हुआ है एक सुशील बहादुर पर।

एक अकेला आदमी चार पुलिस वालों को कैसे पीट सकता है ? और अगर आप चार पुलिस वाले एक अकेले आदमी से पिटे हो तो क्या आप पुलिस की नौकरी के काबिल हो ? जैसे ही यह प्रश्न उठा पुलिस वालों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई,उन्हें अपनी नौकरी खतरे में दिखने लगी। अब तो वे सुशील जी के पैर छूने लगे, उन्हें मनाने लगे कि कहीं वे अदालत में यह बयान न दे दें कि उन्होंने सही में पुलिसवालों को पीटा है।

यह भी एक किस्सा है बहादुरी का

उन दिनों श्री तख्तमल जैन प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जिला कांग्रेस अधिवेशन के दौरान 14 नंबर कोठी में उनकी सभा चल रही थी। दलबल के साथ सुशील जी भी सभा सुनने वहां पहुंचे हुए थे,एक तरुण सिन्धी कार्यकर्ता हासानंद को मुख्यमंत्री की चमकदार कार ने बड़ा प्रभावित किया और वह उस गाड़ी पर हाथ फेरने लगा। ड्राईवर को उसका गाडी छूना नागवार गुजरा और उसने हासानंद को एक झापड़ रसीद कर दिया।

हासानंद मिरगी का मरीज था, वह चांटा बर्दास्त नहीं कर पाया और जमीन पर गिरकर तड़पने लगा। बस फिर क्या था, सुशील जी व अन्य कार्यकर्ता उस ड्राईवर पर पिल पड़े । ड्राईवर को उसके बर्ताव का भरपूर दण्ड मिला ही, कांग्रेस अधिवेशन भी पूरी तरह अस्तव्यस्त हो गया, भगदड़ मच गई। पुलिस ने सुशील जी को हिरासत में ले लिया, किन्तु जनभावनाएं उन दिनों सुशील जी से इतनी जुड़ चुकी थीं कि कोतवाली पर सैकड़ों की संख्या में भीड़ इकट्ठी हो गई। घबराये हुए पुलिस अधिकारियों ने सुशील जी को छोड़ने में ही भलाई समझी।