हरतालिका तीज व्रत कथा प्राचीन एवं शास्त्रानुसार,​इसी व्रत ने किया था शिव और शक्ति को एक - SHIVPURI NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। भगवान शिव व माता पार्वती को समर्पित प्रत हरतालिका तीज का सुहागिनों को बेसब्री से इंतजार रहता है। इस साल हरतालिका तीज व्रत 15 सितंबर 2023, सोमवार को रखा जाएगा। मान्यता है कि इस व्रत को रखने से सुहागिनों को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर प्राप्त होता है। इस व्रत में महिलाएं 24 घंटे निर्जला व्रत रहती है। रात भर जागकर भजन-कीर्तन करती है।

हरियाली तीज का व्रत कैसे किया जाता है, जान लें ये जरूरी बातें

हरतालिका तीज व्रत का पूजन मुहूर्त 18 सितंबर को हरतालिका तीज व्रत पूजन का शुभ मुहूर्त सुबह 05 बजकर 07 मिनट से सुबह 07 बजकर 38 मिनट तक रहेगा। शाम को 04:51 पी. एम से 08 23 पी एम तक रहेगा।

हरतालिका तीज व्रत कथा हरतालिका तीज व्रत हर साल भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज व्रत रखा जाता है। यह व्रत महली बार मां पार्वती ने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए रखा था। मां पार्वती ने अन्न जल त्याग कर कठिन तपस्या की. जिसके बाद भगवान शिव ने मां पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार करने का वचन दिया था।

हरतालिका तीज व्रत कथा प्राचीन एवं शास्त्र अनुसार

माता पार्वती ने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने हेतु हिमालय पर्वत पर पवित्र गंगा नदी के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। तपस्या की अवधि में बालिका पार्वती ने अन्न का त्याग कर दिया और सूखे पत्ते चबाकर भूख शांत की। इसके बाद कई वर्षों तक अन्न एवं जल का त्याग कर प्राणवायु के आधार पर जीवन व्यतीत किया।

माता पार्वती की घनघोर तपस्या के कारण उनके पिता अत्यंत दुखी होते थे। इसी काल अवधि में देवर्षि नारद जी, माता पार्वती के पिता के पास पहुंचे। देवर्षि नारद जी ने उनके समक्ष भगवान विष्णु और माता पार्वती के विवाह का प्रस्ताव रखा। यह भी बताया कि विवाह का प्रस्ताव स्वयं नारायण की सहमति और इच्छा से प्रस्तुत किया गया है।

भगवान विष्णु से अपनी कन्या का विवाह प्रस्ताव सुनकर पिता बहुत प्रसन्न हो गए और विवाह प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार कर लिया। इस विषय की जानकारी जब माता पार्वती को हुई तो वह बहुत दुखी हो गईं और विलाप करने लगीं। अपनी एक प्रिय सखी को भगवान विष्णु के विवाह प्रस्ताव और पिता की इच्छा के बारे में बताकर माता पार्वती ने स्पष्ट किया कि यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं।

प्रिय सखी से सलाह करने के बाद माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां स्थित एक गुफा में जाकर देवा दी देव महादेव की आराधना में लीन हो गई। भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया।

माता पार्वती के इस कठोर तप और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान शिव स्वयं उपस्थित हुए और माता पार्वती की इच्छा के अनुसार उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। इस प्रकार जो भी महिला भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन विधि-विधान पूर्वक और पूर्ण निष्ठा से इस व्रत को करती हैं, वे अपने मन के अनुरूप पति को प्राप्त करती हैं एवं संपूर्ण दांपत्य जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करती है।