SHIVPURI NEWS- संगीत के सात सुर ही सात देवता होते है- सात देशों में मैने राधा रानी के नाम के झंडे गाड़ दिए: भुवनेश्वर तिवारी

Bhopal Samachar
काजल सिकरवार शिवपुरी। बीते रोज जन्माष्टमी पर श्री मंशापूर्ण हनुमान मंदिर पर भव्य भजन संध्या का आयोजन रखा गया था। इस भजन संध्या में वृंदावन से आए भजन गायक कलाकार ने अपनी जादुई आवाज मे भक्तो को इस प्रकार बांध के रखा कि उनका ध्यान श्री राधा रानी के चरणों की ओर हो गया। लगातार 4 घंटे तक चली इस भजन संध्या में इस जादूइ आवाज का जादू सबके सिर चढ़कर बोल रहा था। लोगों के हाथ ताली बजाने से,पैर थिकरने से रुक नहीं रहे थे। भजन संध्या में पहुंचे भक्त बस अपना कान्हा का गुणगान सुनना चाहते थे वही जादूई आवाज में।

वृंदावन से भजन संध्या के मुख्य कलाकार भुवनेश्वर तिवारी से शिवपुरी समाचार ने विशेष बातचीत की। भुवनेशर तिवारी ने बताया किया कि राजा मानसिंह यूनिवर्सिटी से मैंने पढ़ाई की हैं उससे गोल्ड मेडल भी हासिल हुआ हैं। मैं तो एक बात मानता हूं कि जीवन में जब तक गुरूकृपा,मातृ पिता आशीर्वाद,और प्रभु की कृपा नहीं होगी। तब तक कोई भी चीज आप कर ही नहीं सकते वह संभव नही है।

मेरी शास्त्रीय संगीत की शुरुआत ऐसे हुई
गायक कलाकार भुवनेश्वर तिवारी जी ने बताया कि मैं बहुत छोटा था, मैं बस गाता था। मैं नहीं जानता था कि शास्त्रीय संगीत क्या होता हैं। तो मुझे छोटे बाल्यकाल अवस्था में सभी कहते थे, कि आप बहुत अच्छा गाते हो। एक दिन क्या हुआ कि एक संगीत सभा में मुझे आमंत्रित किया गया। मैं वहां गया मैंने वहां देखा, तो वहां बड़े बड़े उसताद लोग आये थे,कई क्षेत्रों से लोग आये थे तो वहां मैंने एक राग सोहनी मैं एक छोटी सी लाइन गुनगुनाई थी, तो वहां जो बड़े बड़े गायक मौजूद थे उन्होंने मुझसे कहा कि आप गलत गा रहे हो। जब मैं बहुत छोटा था तो मुझे बहुत बुरा लगा।

मेरे गुरू ने कहा कि वो पागल हैं तुम्हें में शास्त्रीय संगीत सिखाऊंगा
तो वहां पर एक वृद्ध बैठे हुए थे जिनका नाम उस्ताद बाबूलाल जी अब मेरे गुरूजी हैं,उन्होंने कहा कि बेटा वो तो पागल है। आप मेरे पास आना मैं आपको संगीत सिखाऊंगा, तो वहां से मेरी शास्त्री संगीत की शिक्षा दीक्षा प्रारम्भ हुई, उसके बाद मैं प्रोग्राम करता रहा, मैं अभी तक सिंगापुर, मलेशिया, पेलांग,लंका, मॉरीशस,ऑस्ट्रेलिया, सिडनी और जिसके बाद मेरा लंदन जाने का प्रोग्राम बन रहा था तब तक कोरोना काल लग गया था। जिसके बाद मैं नहीं जा सका, लेकिन तब से मैं नहीं रूका।

मेरे पास कोई पैसा नहीं हैं बस राधा रानी की कृपा सदैव बनी रहती है
भुवनेशर जी ने कहा कि मेरे पास कोई पैसा नहीं हैं, कि मेरे पास ज्यादा पैसे हो तो ही मैं विदेश जा पाउंगा। ऐसा कुछ नहीं हैं— बस राधा रानी की कृपा से ही सब पॉसिबल हुआ हैं। वहां जाकर के हर जगह में मैने मेरी राधा रानी और बिहारी जी के झंडे गाड़ कर आया हुं।

म्यूजिक है क्या
ग्वालियर में स्वामी हरिदास जी सम्मेलन होता हैं तब ग्वालियर में तानसेन समारोह होता है तब मैंने तानसेन समारोह में ध्रुपद गायन गाया तो मुझे बड़ा प्रोत्साहन मिला। ध्रुपद गायन एक ऐसी शैली हैं जो ग्वालियर घराने से उत्पन्न हुई हैं। और ग्वालियर घराने की गायकी मानी जाती हैं। तो शास्त्रीय संगीत एक ऐसी चीज है, जिसमें साक्षात ईश्वर का वास होता हैं। ध्रुपद गायन राग की शुद्धता, स्वर तथा शब्द के शुद्ध उच्चारण, गमक, ताल और लयबद्धता इत्यादि तत्वों पर आधारित है।

हमारे यहां से स्वामी हरिदास जी महाराज हुए जिन्होंने एक तन्ना मिश्र को देखा, एक बार वह जंगल में चले आ रहे थे तभी उन्हें एक शेर की आवाज सुनाई दी। तो वह सभी डर गये। कि इस जंगल में शेर कहां से आयेगा। तो उन्होंने देखा कि एक बालक पेड़ पर बैठा था। वहीं शेर की आवाज निकाल रहा था। फिर उन्होने उस बच्चे को पेड़ से उतारा और उससे कहा कि आपके अंदर तो बहुत अच्छी कला हैं,मैं तुम्हें शास्त्रीय संगीत का ज्ञान दुंगा।

पहले के समय में आपने देखा होगा कि राग मेघ मल्हार गाते थे, तो वहां बारिश हो जाती थी। दीपक राग गा दिया तो दीप प्रज्जवलित हो उठते थे। रीजन क्या था'' सा रे गा मा पा धा नी, तक सात स्वर होते हैं, और ये सात स्वर में ही सृष्टी पूरी, स्वर ही ईश्वर हैं आपने सुना ही होगा। तो सात स्वर नहीं हैं ये मैंने संत महाराज जी से सुना हैं कि सात देवता हैं ये, जो कि परस्पर नित निरंतर सरस्वती मईया की सेवा करते रहे।

मेरा सबसे प्रिय भजन-मेरी विनती यही है राधा रानी कृपा बरसाए रखना।। महारानी कृपा बरसाये रखना, मुझे तेरा ही सहारा महारानी।। चरणों में लिपटाये रखना हाय, कृपा बरसाए रखना हाये।। ये मेरा सबसे प्रिय भजन हैं।