SHIVPURI NEWS- अंकित और अंकिता में उलझी बिजली कंपनी कोर्ट में केस हार गई

Bhopal Samachar
शिवपुरी। माननीय विशेष न्यायाधीश विद्युत अधिनियम शिवपुरी श्रीमान ए.के.गुप्ता ने बिजली चोरी के एक प्रकरण में साक्षियों के कथनों में अति गंभीर विरोधाभासों के प्रकाश में तथ्यों और साक्ष्यों का विश्लेषण कर महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए अभियुक्त हरिशंकर ओझा को दोष मुक्त कर दिया है। प्रकरण में अभियुक्त की ओर से पैरवी गोपाल व्यास एडवोकेट और अजय गौतम एडवोकेट ने की। 

अभियोजन के अनुसार आरोपी हरिशंकर ओझा पर आरोप था कि उसने दिनांक 28/ 9/ 2018 को दोपहर 2:10 पर सांखला काॅपलेक्स,  गुरुद्वारा रोड़ , थाना देहात शिवपुरी में स्थित अपनी दुकान में बिना वैध विद्युत कनेक्शन के अवैध रूप से दुकान के उपयोग हेतु खंबे से डायरेक्ट दो तार दुकान के उपकरणों से जोड़कर कुल 2310 वोट विद्युत ऊर्जा का उपयोग उपभोग कर विद्युत चोरी की है। इसके संबंध में निरीक्षणकर्ता अधिकारी द्वारा मौके पर पंचनामा अभियुक्त के विरुद्ध तैयार किया गया। मौके पर अभियुक्त का कंप्यूटर ऑपरेटर उपस्थित मिला। जिसे पंचनामे पर हस्ताक्षर नहीं किये। आरोपी द्वारा उपयोग किये जा रहे लोड की गणना कर अंतरिम निर्धारण राशि समझौता शुल्क सहित 85464 रुपए निर्धारित करते हुए अंतरिम राशि की मांग रजिस्टर्ड डाक द्वारा प्रेषित कर अभियुक्त से की गई। अंतरिम निर्धारण राशि अभियुक्त द्वारा जमा नहीं की गई। 

तब विद्युत कंपनी की ओर से परिवाद पत्र न्यायालय में पेश किया गया। हरिशंकर ओझा के विरुद्ध विरचित आरोपों पर बतौर साक्षी न्यायालय में प्रस्तुत हुए विधुत वितरण केन्द्र सतर्कता शिवपुरी के महाप्रबंधक पराग धावर्डे, विधुत वितरण केन्द्र पश्चिम क्षेत्र शिवपुरी के सहायक यंत्री रवि प्रकाश तिवारी, ओमप्रकाश कुशवाह और शम्स राजा के कथनों व साक्ष्यों का विश्लेषण करते हुए माननीय न्यायालय ने पाया कि उक्त सभी आरोपियों के कथनों में इतना अधिक गंभीर विरोधाभास था कि वह मामले को संदेह से परे साबित करने में असफल हुए। प्रकरण में साक्षी के तौर पर बोलते हुए पराग धावर्डे  एवं रवि प्रकाश तिवारी ने कहा की निरीक्षण स्थल पर कंप्यूटर ऑपरेटर "अंकिता ओझा " मिली थी जिसने पंचनामे पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, वहीं साक्षी ओमप्रकाश कुशवाह ने अपनी बयान में कहा कि कथित निरीक्षण स्थल पर उसे कंप्यूटर ऑपरेटर "अंकित ओझा " नाम का व्यक्ति मिला जिसने बताया की उक्त दुकान हरिशंकर ओझा की है। 

ओम प्रकाश कुशवाह ने कहा कि वह अंकित ओझा को स्वयं नहीं जानता बल्कि उसी ने बताया कि उसका नाम अंकित ओझा है। उक्त साक्षियों ने मौके पर मिले व्यक्ति से उसकी पहचान के संबंध में या उसकी नियुक्ति के संबंध में कोई दस्तावेज नहीं देखा। उक्त साक्षियों द्वारा अंकिता ओझा और अंकित ओझा के संदर्भ में किए गए कथनों के संबंध में माननीय न्यायालय ने कहा कि कथित रूप से अभियुक्त द्वारा नियुक्त किए गए व्यक्ति के स्त्री अथवा पुरुष होने के संबंध में विरोधाभासी कथन किया जाना परिवादी पक्ष में मामले को अति गंभीर रुप से प्रभावित करता है क्योंकि यह स्वाभाविक तथ्य नहीं हैं कि किसी व्यक्ति के लिंग के संबंध में साथियों के मध्य विरोधाभास मौजूद होना पाया जाए। इसके अतिरिक्त कथित निरीक्षण स्थल पर मिले व्यक्ति को पहचानने का कोई दस्तावेज एवं कथित रूप से अभियुक्त के नियोजन में कार्य करने का कोई भी दस्तावेज परिवादी साक्षियों के अनुसार प्रस्तुत नहीं किया गया है। उक्त अंकित ओझा कंप्यूटर ऑपरेटर को मामले में न तो अभियुक्त बनाया गया है और न हीं उसे प्रस्तुत किया है। 

प्रकरण में गोपाल व्यास व्यास एवं अजय गौतम एडवोकेट्स द्वारा बचाव साक्षी के तौर पर हरीशंकर ओझा को भी माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया। ऐसी दशा में परिवादी पक्ष  का मामला संदेहास्पद हो जाता है। इसके अलावा प्रकरण में परिवादी की ओर से कोई सामाग्री मौके से जप्त नहीं की गई और न ही जब्ती न किये जाने के संबंध में कोई भी स्पष्टीकरण दिया गया। अवैध कनेक्शन जोड़ने वाले तारों की संख्या को लेकर भी साक्षियों के मध्य विरोधाभास पाया गया। वही अभियुक्त ने कथित निरीक्षण स्थल पर उसका स्वामित्व व आधिपत्य होने के तथ्य से इनकार किया। 

वहीं परिवादी साक्षियों ने भी अभियुक्त के स्वामित्व का कोई दस्तावेज अथवा निरीक्षित दुकान पर उसके अधिपत्य का कोई भी दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए परिवादी साक्ष्य से मामला समर्थित नहीं है। वहीं साक्षी ने यह भी कथन किया कि अभियुक्त को सूचना पत्र उसकी दुकान पर भेजा गया था मामले में अभियुक्त को भेजा गया सूचना पत्र गुरुद्वारा रोड के सामने के रूप में उल्लेखित किया गया है ऐसे में गुरुद्वारा रोड के सामने जहां अभियुक्त ने उसके किसी प्रतिष्ठान के होने से इंकार किया। 

वहीं परिवादी पक्ष अभियुक्त के किसी प्रतिष्ठान के मौजूद होने के तथ्य को प्रमाणित करने में उपरोक्त विवेचना के आधार पर असफल हुआ है। ऐसे में अभियुक्त हरीशंकर ओझा विरुद्ध कोई भी विश्वसनीय साक्ष्य उपलब्ध नहीं है इसलिए परिवादी का मामला उपरोक्त लोप एवं विरोधाभासों से अंतर्ग्रस्त होकर अभियुक्त के विरुद्ध आपराधिक दायित्व के संबंध में मामले को युक्तियुक्त संदेश से परे की कोटि में लाने हेतु पर्याप्त आधार गठित नहीं करता है । परिणामत:अभियुक्त को अधिनियम की धारा 135 (1)(क) के अधीन आरोपों से मुक्त किया जाता है।