शिवपुरी। पोहरी विधानसभा शिवपुरी जिले की पांचों विधानसभा में सबसे पिछडी विधानसभा है। पोहरी विधानसभा में चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं जातिगत आधार पर लड़ा जाता है। सीधे शब्दों में कहे तो पोहरी विधानसभा जातिगत श्राप से श्रापित है। पोहरी में चुनाव के समय विकास से अधिक जाति पर चर्चा होती है।
अभी तक पोहरी में धाकड और ब्राह्मण उम्मीदवारों की जीत की संख्या अधिक रही है। वही पोहरी की राजनीति का पार्टियों का पैरामीटर उम्मीदवार का पैरामीटर का सबसे प्रमुख केन्द्र जाति ही रहता है। पोहरी में कैलाश कुशवाह ही तीसरी जाति तीसरा गणित लेकर पोहरी विधानसभा में धूमकेतु की तरह उभरे थे,लेकिन अब वर्तमान परिस्थिती में पोहरी की राजनीति में राजनीतिक नहीं बल्कि अब एक गणित है।
क्यों है कैलाश कुशवाह अब एक गणित
कैलाश कुशवाह ने पोहरी विधानसभा से 2 बार विधानसभा का चुनाव लड़ा है। 2018 में आम विधानसभा चुनाव में कैलाश कुशवाह हाथी की सवारी कर बीएसपी से चुनाव लडे। 2018 के आम विधानसभा चुनाव मे भाजपा से प्रहलाद भारती और कांग्रेस से सुरेश राठखेडा चुनाव लड़े थे। पहली बार पोहरी की विधानसभा में प्रमुख पार्टियों से धाकड उम्मीदवार मैदान में थे। इस कारण कैलाश कुशवाह को बसपा का मूल वोटर उनकी जाति कुशवाह समाज के वोट और ब्राह्मण वोटरों का पूर्ण झुकाव सहित सर्व समाज ने कैलाश कुशवाह का समर्थन किया था।
लेकिन फिर भी कैलाश कुशवाह चुनाव नहीं जीत सके लेकिन दूसरे स्थान पर रहकर 52,736 मत प्राप्त हुए थे,लेकिन इस बार चुनाव में जो सबसे बड़ी बात सामने आई वह थी कि प्रहलाद भारती जो दो बार के विधायक रहे वह तीसरे नंबर पर रहे और कांग्रेस के प्रत्याशी सुरेश राठखेड़ा ने चुनाव में विजयी श्री हासिल की,लेकिन कैलाश कुशवाह एक राजनेता के रूप में अवश्य स्थापित हो गए।
अब बात करते है कैलाश कुशवाह के दूसरे चुनाव की। ग्वालियर के महाराज ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस का त्याग कर भाजपा का दामन थाम लिया था। सिंधिया के साथ कांग्रेस के 22 विधायक भी सिंधिया के साथ चले गए थे। इस कारण प्रदेश में उपचुनाव हुए पोहरी विधानसभा के विधायक सुरेश राठखेड़ा भी सिंधिया के साथ चले गए थे इस कारण पोहरी में उपचुनाव हुए। कैलाश कुशवाह उपचुनाव में भी मैदान में हाथी पर बैठकर चुनाव में उतरे,इस बार भी वही परिणाम आए कैलाश कुशवाह 43,848 मत प्राप्त कर दूसरे स्थान पर रहे,जीत भाजपा के सुरेश राठखेडा की हुई और तीसरे नंबर पर कांग्रेस प्रत्याशी हरिवल्लभ शुक्ला रहे।
अब कैलाश कुशवाह और बीएसपी के गठजोड़ की बात करते है
कैलाश कुशवाह की शक्ति की बात करते है। बसपा एक ऐसा दल है जो चुनाव जीतने का बैस अर्थात तैयार करता है। बसपा को फिक्स वोट बैंक है वह कैलाश को दोनों चुनाव में मिला वही कुशवाह वोट भी कैलाश कुशवाह को दोनों चुनावों में मिला है। वही 2018 के चुनाव की बात करे तो भाजपा और कांग्रेस के प्रत्याशी धाकड़ समाज से थे।
पोहरी विधानसभा का ब्राह्मण मतदाता फ्री था इसके साथ ब्राह्मण मतदाता के साथ अन्य समाज का मतदाता भी साथ आ जाता है। इस कारण सन 2018 के चुनाव में कैलाश कुशवाह ने रनिंग विधायक के पीछे धकेल दिया था और दूसरे नंबर पर आए थे हार का अंतर भी 7918 था।
अब कैलाश कुशवाह के दूसरे अर्थात उपचुनाव की बात करते है। उपचुनाव में भाजपा के प्रत्याशी थे मंत्री सुरेश राठखेडा कांग्रेस से प्रत्याशी पूर्व विधायक हरिवल्लभ शुक्ला। यहां जंग फिर हो रही थी ब्राह्मण और धाकड प्रत्याशी के बीच यहां ब्राह्मण मतदाता हरिवल्लभ की ओर चला गया। इस चुनाव में कैलाश कुशवाह का दूसरे नंबर पर रहे लेकिन हार का अंतर अधिक था इस बार कैलाश कुशवाहा को 42 हजार वोट मिले थे और पहले चुनाव में 52 हजार वोट प्राप्त हुए थे।
सीधे सीधे लिख सकते है कैलाश कुशवाह को अपने पहले चुनाव से 10 हजार वोट कम प्राप्त हुए है। कारण स्पष्ट था की इस बार मैदान में 2 धाकड नहीं थे। एक ब्राह्मण और दूसरा धाकड प्रत्याशी,इस कारण ब्राह्मण वोटर खुल कर कैलाश की पक्ष में नही आ सका और कैलाश के वोट का अंतर अधिक आ गया।
अब क्या होगा-क्या कैलाश कुशवाह केवल गणित है
अब कैलाश कांग्रेस के हो गए है और पोहरी विधानसभा से अपने पिछले 2 चुनावों के प्रदर्शन के बल पर टिकिट के दावेदार है,अब कैलाश की शक्ति कांग्रेस के साथ की बात करते है। इससे पहले कैलाश कुशवाह ने बसपा से चुनाव लड़े थे इस कारण बसपा का मूल वोटर कैलाश कुशवाह के साथ था बसपा का मूल वोटर एक बैस तैयार करता था जिसकी संख्या का आंकड़ा 15 हजार प्लस है। अब वह कैलाश के साथ नहीं होगा अब वह बसपा के साथ होगा। कांग्रेस का मूल वोटर आदिवासी था लेकिन वह भाजपा की योजनाओं में फस चुका है। भाजपा ने कांग्रेस की मूल आदिवासी वोटर में सेंध लगा चुके है। कैलाश कुशवाह के पास केवल उनके समाज का वोटर जिसकी संख्या 10 हजार मान सकते है।
पंचायत चुनाव में कैलाश कुशवाह ने कई पंचायतों मे सीधे जाकर हस्तक्षेप किया। कुशवाह बाहुल्य गांव में जाकर पंचायत चुनाव में कुशवाह समाज के खड़े हुए सरपंच पर खडे उम्मीदवारों की मिटिंग कर सिर्फ एक प्रत्याशी मैदान में उतार दिया जिससे अन्य समाज जैसे ब्राह्मण और यादव और ठाकुर समाज के प्रत्याशी हार गए। कैलाश कुशवाह का सीधा हस्तक्षेप रहा इस कारण अन्य समाज उनसे नाराज बैठा है। वही कैलाश कुशवाह के पिछले दोनों चुनावों को देखे तो धाकड धाकड प्रत्याशी रहे तो हार का अंतर 7 हजार रहा और धाकड़ और ब्राह्मण मतदाता मैदान में रहे तो हार का अंतर 10 हजार रहा है।
कुल मिलाकर सीधे सीधे लिखे तो कैलाश कुशवाह पोहरी की राजनीति में एक गणित की तरह है दोनों ओर से धाकड़ प्रत्याशी होता है तो बसपा और कुशवाह समाज और ब्राह्मण समाज का समर्थन से कैलाश कुशवाह ताकतवर बनाते है। अगर कुशवाह को कांग्रेस से टिकिट मिला है,ओर भाजपा को सुरेश राठखेडा से आमने सामने की टक्कर होगी तो कितना टिक पाएगा कैलाश कुशवाह यह कह नही सकते है।
अगर बसपा से ब्राह्मण नेता टिकिट ले आता है तो कैलाश तो पूरे संकट में होगें। कुल मिलाकर भविष्य उज्जवल नहीं हो सकता है कांग्रेस में कैलाश का। वैसे राजनीति में पूरी यह संभावना लगती है और राजनीति संभावनाओं से ही चलती है। वही सूत्रों का कहना है कि सुरेश राठखेडा चाहते है कि इस बार कांग्रेस से टिकिट कैलाश कुशवाह को ही मिले अब वह क्यो चाहते है यह सवाल अभी भविष्य की गर्त में है।