KNP- चीता पवन की गर्दन पर कीड़े के अंडे मिले थे,हटाई जाएगी सभी चीतो की गर्दन से कॉलर आईडी

Bhopal Samachar

भोपाल। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में हुई चीतो की वजह परत दर परत बहार आने लगी है,प्रबंधन समझ नही सका कि कॉलर आईडी भी चीतो की मौत की वजह हो सकती है। कॉलर आईडी के कारण चीतों की गर्दन पर हुए घाव और उनमें पड़े कीड़ों के बाद ज्यादातर चीतों को ट्रेंकुलाइज कर बड़े बाड़ों में लाया जा चुका है और उनकी कॉलर आईडी भी हटा दी गई हैं।

चीता स्टीयरिंग कमेटी अब मौजूदा कॉलर आईडी के विकल्प खोजने पर विचार कर रही है। चीत के शरीर के अनुकूल कॉलर आईडी के डिजाइन बदलने पर भी विचार हो रहा है।

मप्र वन विभाग की वन्यजीव शाखा ने बुधवार को कॉलर आईडी के कारण त्वचा में संक्रमण वाले तीनों बीते के स्वास्थ्य पर एक बुलेटिन जारी किया, जिसके मुताबिक गौरव और शौर्य (एल्टन और फ्रेडी) को ट्रेंकुलाइज कर क्वारंटीन बोमा में शिफ्ट कर दिया गया है, दोनों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया, दोनों स्वस्थ पाए गए हैं।

दोनों को फिलहाल क्वारंटाइन बोमा में ही रखकर अन्य स्वास्थ्य परीक्षण किए जाएंगे। 14 अगस्त को ट्रेंकुलाइज कर क्वारंटाइन किए गए पवन औवान) की सेहत भी अब ठीक है, नामीबिया और दक्षिण अफ्रीकी विशेषज्ञों के समन्वय से उसका इलाज चल रहा है। सूत्रों के मुताबिक जिस दिन चीते सूरज की मौत हुई थी, उसी दिन पवन की गर्दन पर मक्खियां देखी गई थी, पवन की गर्दन पर घाव का तुरंत पता चल जाने के कारण उसका समय से इलाज शुरू हो गया। पवन की गर्दन पर मैगोट्स (कीड़ों) के अंड़े मिले थे। यदि यह उसी दिन पकड़ा नहीं जाता, तो इसे भी बचा पाना मुश्किल होता।

कर्नाटक, गुजरात और उड़ीसा से जांच दल बुलाने पर उठ रहे सवाल
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और एनटीसीए ने कूनो में चीतों की मौत के कारणों की जांच के लिए एनटीसीए के कर्नाटक, गुजरात और ओडीशा डिवीजन से बुलाए एक्सपर्ट पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जानकारों के कहना है कि इनमें से किसी को भी चीता प्रबंधन का अनुभव नहीं हैं। किसी ने चीतों पर कोई ट्रेनिंग भी नहीं ली है, ऐसे में वे क्या जांच कर पाएंगे यह सवालों के घेरे में हैं।

कर्नाटक के एक्सपर्ट दल की रिपोर्ट में खुल जाएगी सच्चाई
बता दें कि कूनो नेशनल पार्क में केंद्र सरकार ने कर्नाटक से तीन सदस्यीय दल कूनो नेशनल पार्क में भेजा है। जो 21 तक यहां रहकर मौतों के कारणों का पता करेगा और उसके निदान की भी तलाश करेंगे, इसके बाद उसकी रिपोर्ट शासन को देंगे। यहां उपस्थित विशेषज्ञ की रिपोर्ट के बाद यह भी पता चल सकेगा कि चीतों की मौत वाकई नेचुरल थी, कॉलर आईडी की वजह से हुई थी, या फिर जैसा कि सेवानिवृत्त आईएफएस बता रहे हैं कि पहले चीता कुपोषित हुए, उससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हुई और उसी के चलते कॉलर आईडी का यह इंफेक्शन ज्यादा तेजी से बढ़ा।

रिटायर्ड आईएफएस बोले- चीतों में दिखे कुपोषण के लक्षण
रिटायर्ड आईएफएस रामगोपाल सोनी का कहना है चीतों में कुपोषण के भी लक्षण मिले हैं। चीता छोटे जानवरों व खासकर चीतल का शिकार करता रहा है, लेकिन खुले जंगल में चीतलों का घनत्व बाड़े के मुकाबले कम है। नतीजा वह उतना शिकार नहीं कर पाए, जितना जरूरत था। नतीजा वह कमजोर हो गए।

गलत कदम ... बारिश से पहले चीतों को फ्री-रेंज करना पड़ा भारी
चीता स्टीयरिंग कमेटी से जुड़े एक सदस्य के मुताबिक चीतों को बारिश से पहले फ्री-रेंज करना एक गलत कदम साबित हुआ है। चीतों के अलग-अलग दिशाओं में बिखर जाने और बारिश में रास्ते खराब हो जाने से निगरानी में दिक्कत आ रही थी, इस कारण कई चीते का मूवमेंट और उनकी स्थित पता भी नहीं चल पा रही थी।

चीतों को फ्री रेंज करने पर सर्वाधिक जोर चीता स्टीयरिंग कमेटी के चेयरमैन राजेश गोपाल दे रहे थे, वहीं हाल ही में हटाए गए पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान इसके खिलाफ थे।

सूत्रों के मुताबिक चौहान ने चेताया था कि बारिश में सभी चीतों को खुले जंगल में छोड़ने से परेशानी खड़ी हो सकती है, इसलिए बेहतर निगरानी के लिए इन्हें बाड़ों में ही रखा जाए, लेकिन इस सुझाव को माना नहीं गया। 14 जुलाई को ही पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ की ओर से स्टीयरिंग कमेटी को सभी चीतों की कॉलर आईडी तत्काल हटाने को लेकर एक पत्र भी लिखा गया था।

फिलहाल सभी चीते स्वस्थ हैं
स्टीयरिंग कमेटी ने जो निर्देश दिए हैं, उनका पालन किया जा रहा है। सभी चीतों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया है. फिलहाल सभी स्वस्थ हैं।
असीम श्रीवास्तव, पीसीसीएफ वाइल्डलाइफ