शिवपुरी। शिवपुरी-ग्वालियर की रेल गड़िया शिवपुरी जिले की सीमा में 150 किलोमीटर का सफर तय करती है। इस 150 किलोमीटर की सीमा में भारतीय रेल के लगभग आधा दर्जन स्टेशन ऐसी है जो अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे है। इनमें कुछ स्टेशन तो ऐसे है जों जंगल में रेलगाड़ी एकाध मिनट को रूकती है यात्री रेल में चढते है और उतरते है,लेकिन इन रेलवे स्टेशन सुविधा नाम की कोई चीज नही है ना ही इन स्टेशनों पर टिकट मिलता है।
इन रेलवे स्टेशन वर्तमान में वीरान है इन स्टेशनों पर ना ही कोई स्टाफ है,ना ही अन्य सुविधा,यहां से रेल यात्रा करने वालो को कोई जानकारी मिलती है कि गाड़ी कहां है कितने बजे आएगी। 25 वर्ष पहले यानि सन 1998 में शिवपुरी से गुना और ग्वालियर के लिए रेलवे ट्रैक की शुरुआत हुई।
शिवपुरी से गुना और ग्वालियर तक पहुंचने के लिए जो स्टेशन बने जिनमें खोकर, रायश्री, खजूरी ,लुकवासा, रावसर जागीर और तरावटा रेलवे स्टेशन बने यहां ट्रेन के स्टॉपेज भी शुरु हुए। शुरुआत में यहां स्टेशन मास्टर और स्टाफ की भी तैनाती हुई। लेकिन धीरे-धीरे इन स्टेशनों का अस्तित्व खोता गया और यहां के स्टेशन खंडहर हो गए जहां अब न यात्रियों के लिए आने जाने के लिए टिकट मिलते और सर छुपाने के लिए छांव मिलती।
ऐसे में 25 साल बाद भी इन स्टेशन पर यात्रियों को सुविधाएं न मिल पाना परेशानी का सबब बना हुआ है। शिवपुरी से ग्वालियर जाने के दौरान पाडरखेडा, मोहना, घाटीगांव, और पनिहार ट्रैक पर भी यही हालात हैं।
खोकर स्टेशन
शिवपुरी से गुना जाते समय पहला स्टेशन खोंकर हैं। यहां न टिकिट काउंटर है और न प्लेटफॉर्म। जंगल में यहां ट्रेन रोज सुबह और रात में 1 मिनिट के लिए रुकती है। यहां सवारी तो उतरती है और चढ़ती भी है लेकिन यात्रियों को परेशानी का सामना करना पड़ता है।
लुकवासा स्टेशन
शिवपुरी से गुना जाते समय लुकवासा आता है। यहां से रातों रात स्टेशन जमींदोज हो गया। स्थानीय लोगों ने विरोध किया तो रेलवे प्रबंधन निद्रा से जागा अब यहां कोई काउंटर तो बन रहा है लेकिन सुविधाओं के दृष्टिकोण से यह स्टेशन भी शून्य हैं।
रावसर जागीर स्टेशन
बदरवास के बाद अगला स्टेशन रावसर जागीर आता है। इसका नाम तो शाही है लेकिन यहां स्टेशन पर सुविधाएं शून्य हैं। यहां न तो टिकिट खिड़की हैं और व्यवस्थित प्लेटफार्म ऐसे में यात्रियों को इस स्टेशन से दूसरे स्टेशन जाने के लिए परेशान होना पड़ता है।
तरावटा स्टेशन
रावसर जागीर के बाद गुना से पहले तरावटा रेलवे स्टेशन आता है। यहां स्टेशन तो बना लेकिन वह अब उजड़ गया है। टूटी-फूटी स्टेशन है यहां यात्रियों को सुविधाओं के नाम पर न टिकट मिलता है और न ट्रेन के बारे यात्रियों को पता चलता है।
पाडरखेडा स्टेशन ने किया संघर्ष
शिवपुरी से ग्वालियर को ओर जाते समय मोहना से पहले पाडरखेडा रेलवे स्टेशन है यहां लोकल चलने वाली रेल रूकती है। यह स्टेशन जंगल में है और इस स्टेशन से एक रेलवे इंजीनियर का डकैतो ने अपहरण कर लिया था,रेलवे के कर्मचारी इतने भयभीत हो गए कि स्टेशन का बंद कराने की कुटील चाले चलनी शुरू कर दी। इस स्टेशन से इस क्षेत्र के 1 दर्जन गांवों के निवासियों को लाभ मिलता था। जनता के विरोध के कारण यह स्टेशन जिंदा रहा,बल्कि अब यह टू लेन बना दी है कई गाडिया इस स्टेशन से क्रॉसिंग करती है।
किराया दोगुना किया लेकिन सुविधा देना भूला रेलवे प्रबंधन
दरअसल कोरोना काल में रेलवे का आवागमन सारे देश में प्रभावित हुआ था। ऐसे में रेल मंत्रालय के लिए रेलवे का संचालन मुफीद साबित हुआ। क्योंकि उन्होंने सारी पेसेंजर ट्रेन को एक्सप्रेस का तमगा तो दे दिया। ताकि उन्हें यात्रियों से दोगुना किराया वसूलने में आसानी हो लेकिन सुविधाएं देने के नाम पर रेलवे ने हाथ खींच लिए। यही वजह है कि शिवपुरी से गुना का पेसेंजर किराया पहले 25 रुपए था अब भी इतने ही समय में ट्रेन शिवपुरी से गुना या ग्वालियर पहुंच रही है लेकिन टिकट का दाम दो गुना हो गया। क्योंकि टिकट अब एक्सप्रेस ट्रेन का यहां लगने लगा। बावजूद इसके रेलवे प्रबंधन ने कोई व्यवस्था नहीं की।
रेलवे प्रबंधन से बात करें
जिन स्टेशन पर टिकट विंडो नहीं है वहां टिकट ट्रेन में चलने वाले गार्ड के माध्यम से मिल जाता है। कहीं-कहीं टिकिट एजेंट भी हैं। इस संबंध में हम इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकते हैं। सुविधाओं के लिए रेलवे प्रबंधन से इस बारे में आप बात कर सकते हैं।
-एस आर मीना, स्टेशन मास्टर शिवपुरी।
डीआरएम को प्रस्ताव देंगे
यात्रियों के लिए यह बड़ी परेशानी है। मेरी जानकारी में आप यह पूरा मामला लेकर आए हैं और हम रेलवे की अगली बैठक में डीआरएम को प्रस्ताव देंगे कि वह स्टेशन पर टिकट, प्लेटफार्म, छांव पानी की तो व्यवस्था करें।
-विष्णु अग्रवाल, मानसेवी सचिव चैंबर ऑफ कॉमर्स एवं रेलवे सलाहकार समिति सदस्य।