Ex-Rey @ lalit mudgal शिवपुरी। खबर बडी हट कर हैं कि एक शिक्षक के 2 हजार रूपए में इतनी ताकत होती हैं जिसके बल पर वह पूरी शिक्षा व्यवस्था को लकवाग्रस्त कर सकता हैं। यह बात उतनी ही सत्य है जितनी आप यह खबर पढ रहे हैं। मप्र शासन ने अभी हाल में ही स्कूल शिक्षा विभाग की 2021-2022 की रिर्पोट जारी की है जिसमें यह आया है कि मध्य प्रदेश के 16 जिलों में एक भी विद्यार्थी ए-प्लस ग्रेड नहीं है। इस लिस्ट में शिवपुरी का नाम भी चमक रहा है। कुल मिलाकर जिले के सभी शासकीय प्राथमिक विदयालयो में शिक्षा का स्तर शून्य रहा है।
बल्लभ भवन में बैठे राज्य शिक्षा केन्द्र के सुप्रीमो से लेकर जिला स्तर पर बैठे डीपीसी ओर केन्द्र के अमले में अपनी पूरी ताकत सिर्फ इस पर खर्च कर दी कि शिक्षक स्कूल आया कि नही,बच्चो की उपस्थिती कितनी रही और माध्यन भोजन के क्या हाल रहे-लेकिन शिक्षक का मूल कार्य की शिक्षक ने बच्चो को पढाया कि नही,जबकि राज्य शिक्षा केन्द्र की स्थापना सिर्फ पढाई की गुणवत्ता सुधारने के लिए किया गया था।
पहले समझिए इस सरकारी जमावट को
शिक्षा विभाग का मुखिया होता हैं जिला शिक्षा अधिकारी। शिवपुरी जिले में कक्षा एक से लेकर 12 तक लगभग 3000 से अधिक स्कूल हैं हर जिले में ऐसा होते हैं इसलिए राज्य शिक्षा मिशन का गठन किया गया। प्राथमिक और माध्यमिक स्तर के स्कूल मिशन के हवाले कर दिए गए। ऐकेडमिक और व्यवस्था के सभी पावर मिशन को दिए गए और इस मिशन का मुखिया होता हैं डीपीसी। इस मिशन का जिले स्तर पर सुप्रीमो होता है।
डीपीसी का कार्य मुख्य रूप से 1 से 8 क्लास तक के स्कूलो को शिक्षा व्यवस्था,निर्माण व्यवस्था,शौचालय निर्माण के अतिरिक्त डीपीसी से नीचे स्तर के अमले को शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता पैदा करना शिक्षा संस्थानो में प्रशिक्षण का होता हैं कुल मिलाकर यह ऐकेडमिक पद होता हैं।
ब्लॉक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को दौडाने लिए बीआरसी (ब्लॉक रिर्सोज कोऑर्डिनेटर)
होता है डीपीसी के बाद जिले के प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर शिक्षा व्यवस्था को संभालने के लिए बीआरसी होते हैं इनका लगभग वही काम हैं जो डीपीसी का होता हैं
BAC (ब्लॉक ऐकेडमिक कोऑर्डिनेटर)
प्रत्येक ब्लॉक स्तर पर बीएसी के 4 पद होते हैं। यह विषय वार पद होते हैं हिन्दी,अग्रेजी,साईस और मैथ्स। बीएसी शुद्ध रूप से ऐकेडमिक पद होता हैं।
इस पद का काम होता हैं कि भाषा वार शिक्षको के साथ बच्चो का पढाना,या यू कह लो शिक्षको पढाने का तरीका सिखाना जिससे पाठयक्रम में आने वाले कठिन बिंदुओ को शिक्षक आसानी से पढा सके समझा सके।
CAC (क्लस्टर ऐकेडमिक कोऑर्डिनेटर)
यह पद जनशिक्षा स्तर पर होता हैं और प्रत्येक जनशिक्षा केन्द्रो पर 2 पद होते है। सीएसी का काम होता हैं सप्ताह में 2 प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलो में पहुंचकर पाठयक्रम में आने वाली डाउड क्लीयर करना। सरल भाषा में लिखे तो शिक्षको को बोर्ड पर बच्चो के साथ पढाने का तरीका समझाना होता हैं। इससे बच्चो को कैसे पढाना हैं यह शिक्षको को समझना होता हैं जिससे पाठयक्रम में आने वाली कठनाईयां दूर हो सके।
सीएसी स्कूल पहुंचकर जो कार्य किया उसे अनवैक्षण रजिस्टर पर अंकित करना होता है। शिक्षको को क्या पढाया। कैसे पढाया। स्कूल के रिर्पोट खुले है कि नही,समय पर शिक्षक पहुंचा है कि बच्चे कितने प्रतिशत में आ रहे हैं शिक्षा का स्तर कैसा हैं। यह ग्रांउड रिर्पोट अपने उपर के कार्यालय में संविट करना
लेकिन होता क्या है
सीएसी अनवैक्षण नही करते बल्कि निरीक्षण करते हैं। पढने ओर पढाने के अतिरिक्त वह सभी काम करते हैं जो साहबगिरी की श्रेणी में आता हैं। कुल मिलाकर ऐकेडमिक काम से दूर रहते हैं। साहबों के जैसे निरीक्षण करते हैं।
शिवपुरी जिले में 1898 प्राथमिक स्कूल है
शिवपुरी जिले में 1898 प्राथमिक स्कूल है और इन स्कूलो में लगभग 2 लाख 10 हजार हैंं,और डीपीसी कार्यालय शिवपुरी के डाटा के अनुसार जिले के इन प्राथमिक स्कूला में 4772 शिक्षक पदस्थ है। इन सभी शिक्षको ने शिक्षा सत्र 2021-2022 में बच्चो को ऐसा पढाया कि जिले के किसी भी स्कूूल का बच्चा ए प्लस ग्रेड हासिल नही कर सका।
अब शिक्षक के मूल कार्य की ओर चलते है शिक्षक पद नाम के अनुरूप शिक्षक को बच्चो को पढाना ही मूल कार्य है वही नही हुआ है। विभाग सिर्फ इस पर फोकस करता रहा है कि शिक्षक स्कूल पहुंचा है कि नही—बच्चो को खाना मिल रहा है नही,मूल कार्य पढना और पढाना इससे दूर रहे और उसका ही नतीजा है यह स्कूल शिक्षा विभाग मप्र से जारी यह रिर्पेाट
नीव खराब हो रही है बच्चो की- 5वीं क्लास अब बोर्ड
बच्चा स्कूल आता है पढने के लिए,लेकिन स्कूल में पढाया नही जाता है हाजिरी भर ली,खेल खिला दिया और भोजन करा दिया। पढाई का स्तर शून्य रहा। यही क्रम पहली क्लास से पांचवी क्लास तक चलता है। अब बच्चा कमजोर हो जाता है जिससे उसके पूरे स्टूडेंट लाइफ गडबडा जाता है। कुल मिलाकर कहने का सीधा सा अर्थ है कि बच्चे की नीव खराब हो रही है पढने और पढाने के अतिरिक्त शिक्षा विभाग में सब हो रहा है अब सवाल यह भी उठता है कि जब पढाई नही हो रही है तो वेतन किस बात का। दुनिया का सीधा सा अर्थ है काम के बदले पैसा। लेकिन यहां मूल काम पढाना वही नही हुआ है।
यहा ताकत काम करती है 2 हजार के नोट की
शिक्षा विभाग के सूत्रों से खबर मिल रही है कि प्रत्येक स्कूलों से 2 हजार रूपए साल भर का चार्ज वसूला जाता हैं। यह सीएसी से होते हुए बीआरसी तक पहुंचाया जाता है। इसके बाद शिक्षक साल भर के लिए फ्री। मिशन का बीआरसी स्तर तक का अधिकारी आपके स्कूल को चैक करने नही आऐगा अगर आकंडे भरने है तो आप तक सूचना पहुंच जाऐगी।
विभाग अब सिर्फ उपस्थिती पर जोर दे रहा है
शिवपुरी की डीईओ ने मोबाइल मॉनिरिटिंग शुरू की थी जिसमें अनुपस्थित रहने वाले शिक्षको को पकडा जा रहा था,क्या विभाग का काम शिक्षको को स्कूल तक उपस्थित रहने तक का ही है। शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी नही है। राज्य शिक्षा मिशन का बनाया गया एक सिस्टम पूरी तरह से फैल है। जिसमे सीएसी को जाकर स्कूलो में पढाना था शिक्षा की गुणवत्ता को चैक करना था। इसकी मॉनिरिटिंग बीएसी को करनी थी,फिर डीपीसी को करनी थी,लेकिन शिवपुरी में ऐसा कुछ नही हुआ है-मप्र सरकार के अपने स्कूलो की रिर्पोट सामने है कि जिले के 4772 का पढाया गया एक भी स्टूडेंट ए प्लस ग्रेड हासिल नही कर सका।