काजल सिकरवार शिवपुरी। पूरे भारत में कलयुग के देवता श्री हनुमान जी महाराज का जन्मोत्सव बडे धूमधाम से मनाया जाता रहा है। जिसके चलते पूरे देश में श्रद्धालु श्री हनुमानजी के अवतरण की खुशियां पूरे धूमधाम से मनाते। शिवपुरी जिले में कई हनुमान मंदिरों पर हनुमान उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है।
श्री बांकडे हनुमान मंदिर शिवपुरी का सबसे प्रसि़द्ध मंदिर हैं, इस मंदिर का इतिहास सदियों पुराना है। यहां अनंत काल से ही श्री बांकडे सरकार की मूर्ति विराजमान है। उन्हें भी इतिहासकारों से पता चला है कि यह मंदिर श्री बलारी मां के मंदिर से भी पुराना है। जिसे लेकर पौराणिक मान्यता है कि मां बलारी जगल के रास्ते से श्री बांकडे सरकार के दर्शन करने आ रही थी। और वह दर्शन कर लौटते समय जंगल में ही विराजमान हो गई। जहां आज मां बलारी का मंदिर है वहां मां को लाखा बंजारा लेकर आया। परंतु मां के विराजमान का सही स्थान और अंदर है।
श्री गिरीश महाराज ने बताया है कि बांकडे हनुमान से कोई भी हारा हुआ व्यक्ति आकर अपनी पूरी इच्छा के साथ बाबा के दरबार में अपनी फरियाद लगा दे। और पलक झपकते ही बाबा श्रद्धालुओं को दुख हर लेते है। यहां प्रति मंगलवार और शनिवार शहर से लगभग 5 हजार श्रद्धालु पैदल बाबा के दरबार में पहुंचकर अपनी अर्जी लगाते है और बाबा सभी की मनों कामना पूरी करते है। श्री गिरीश महाराज ने बताया है कि भगवान का मनमोहन बाला रूप देखकर श्रद्धालु मंत्रमुग्ध होकर भगवान की आराधना करते है। श्री हनुमान प्रकटोत्सव के दौरान श्री यहां मेला लगता है।
बताया जा रहा है कि यह मंदिर फोरेस्ट क्षेत्र में आने के चलते यहां प्रशासन और मंदिर कमेटी की और से कोई भी निर्माण कार्य आसानी से नहीं हो पा रहा। जिसके चलते यहां पुरानी बनी सड़क पुलिया सहित संर्कीण रास्ता होने के चलते श्रद्धालुओं को यहां आने में दिक्कतों का सामना करना पडता है। परंतु जब भी प्रशासन यहां सडक निर्माण या पुलिया निर्माण या कोई भी नया कंस्ट्रक्शन का प्लान करता है तो फॉरेस्ट विभाग की एनओसी का रोडा सबसे पहले आता है और यहां मंदिर क्षेत्र में कोई नया बदलाव नहीं हो पा रहा है। जिससे श्रद्धालुओं को राहत मिल सके।
कल्याण नामक पुस्तक के अनुसार
ग्वालियर-चंबल अंचल का सबसे पुराना हनुमान मंदिर है। गीता प्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण नामक पुस्तक के अनुसार इस मंदिर का निर्माण लगभग 934 ईस्वी में हुआ था। पुस्तक में इसे ग्वालियर-चंबल का सबसे पुराना मंदिर बताया गया है। स्टेट काल में सिंधिया घराने के राजा-महाराजा भी यहां पूजा-अर्चना करने और सवामणी का भोग लगाने के लिए आया करते थे।