शिवपुरी। अगर कुछ करने की इच्छा शक्ति मजबूत है तो आप कोई भी टारगेट अचीव कर सकते है। उसके लिए वर्क आउट ओर कागजी प्लानिंग के साथ शुरू करे तो आप यकीन मानिए आपका टारगेट आपके होगा। कोई भी काम एक दिन मे नही होता लेकिन एक दिन होना आवश्यक है। यह कहना है। शिवपुरी की सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष डॉ सुषमा पांडेय है
चार प्रकार का जीवन होता है मनुष्य का
हिन्दू धर्म ग्रंथों ने मनुष्य जीवन को चार भागो में विभक्त किया है पहला ब्रह्मचर्य आश्रम, दूसरा गृहस्थ आश्रम, तीसरा संन्यास आश्रम और चौथा वानप्रस्थ आश्रम। कुछ ऐसा ही उदाहरण डॉ सुषमा पांडे के जीवन से मिलता है। इन चार आश्रमों को वर्तमान जीवन में समावेश किया जाए तो पहला बचपन अर्थात पढाई के दिन,दूसरा शादी-बच्चे और बच्चों को अपने पैरो पर खड़ा करना,तीसरा सन्यास,सन्यास का मतलब यहां अपने लिए कुछ करना,डॉ सुषमा पांडेय ने अपने ग्रहस्थ जीवन से निकलकर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना शुरू किया,स्कूल-कॉलेज के डायरेक्टर वही चौथा काल वानप्रस्थ,वानप्रस्थ भगवान की सेवा में लीन हो जाना,यहां श्रीमती पांडे सेवा अर्थात जनेसवा,सीडब्ल्यूसी के अध्यक्ष और मातृशक्ति विभाग संयोजक के रूप में वह अपनी चौथी पारी शुरू कर चुकी है। कहते है कि कोई भी कंप्लीट नही होता,लेकिन यकीन मानिए। यहां हर काम परफेक्ट दिखाई देता है।
बचपन प्ले स्कूल एंव केशव महाविद्यालय की डारेक्टर श्रीमती सुषमा पाडें भिंड का मायका भिंड जिले में है और ससुराल कोलारस में है। अगर शिक्षा की बात करे तो सुषमा पांडे भिंड ने 1985 में एम फस्टईयर ही किया था। बाकी अपनी कॉलेज की पढाई शिवपुरी अपनी ससुराल में की है। उसके पति शादी पति महेश पांडे आदिम जाति कल्याण विभाग से वर्तमान में रिटायर्ड है। एक बेटा ऋषि पांडे बेटी ऋचा पांडे दोनो की शादी हो चुकी है। बेटी दतिया में वर्ग एक शिक्षक एवं बहू मानसी पांडेय बैंककर्मी। कुल मिलाकर फैमिली का 100 प्रतिशत उत्तरदायित्व पूर्ण।
20 साल घरेलू महिला का जीवन जिया
सुषमा पांडे ने कहा कि गृहस्थ जीवन के 20 साल पूर्ण करने के बाद कुछ नया करने का प्लान आया। मेरी मां शिक्षाविद थी वह उस जमाने में शिक्षिका थी जब बेटियां 5वीं क्लास तक नही पढ़ती थी,मां रमा त्रिवेदी ने हिंदी,संस्कृत और इंग्लिश से एमए किया था। वह अपनी ससुराल भिंड के स्कूल में सरकारी से डिप्टी डारेक्टर के रूप में रिटायर्ड हुई थी। जब मां भिंड में सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने जाती थी आप विश्वास कीजिए,हेड मास्टर और अन्य शिक्षक ससुराल भिंड होने के नाते से जेठ और ससुर समान थे। मां घघूट कर पढाती थी,उनका शिक्षा के प्रति लगाव था इस कारण ही मेरे में उनकी कुछ संस्कार आए शिक्षा के प्रति मेरा भी लगाव था। शिक्षा की पूजा हमारे घर में इसलिए होती थी कि पिता श्री के एल मिश्रा भी प्रिंसिपल थे।
शादी के 22 साल बाद में पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी की थी। शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना था,भगवान केशव ने केशव महाविद्यालय शुरू करने की साहस दिया,वह पूर्ण हुआ फिर छोटे छोटे बच्चों को अच्छे संस्कार और गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने के उद्देश्य से बचपन प्ले स्कूल शुरू किया।
जब बेटे ऋषि ने दोनो संस्थान संभाल दिए फिर से में फ्री इस कारण ही समाज सेवा में जाने के लिए मन हुआ। भगवान के आर्शीवाद और पीएचडी की योग्यता के कारण बाल कल्याण समिति की अध्यक्ष बनी और आरएसएस की महिला विंग मातृशक्ति का विभाग संयोजक बनने का गौरव प्राप्त हुआ। अब समाज सेवा करने का मन है।
शिक्षा विद सुषमा पांडे ने बताया कि शादी के बाद में शुद्ध गृहस्थ जीवन जिया,बस घर पर बच्चों को अवश्य पढाती थी जिससे शिक्षा के प्रति समर्पण बना रहे। 6 भाई बहनों के भरे पूरे परिवार में जन्मी सुषमा पांडे कहती है कि मां रमा त्रिवेदी के संघर्ष देखकर कर ही संघर्ष करने का बल मिलता है। ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और पॉजिटिव सोच हमेशा रही है,इसलिए जीवन के कई सकंट भरे पलों को आसानी से निकाल लिया।
महिलाओं में आत्मबल उनके डीएनए मे है
महिलाओं के लिए सुषमा पांडे ने कहा कि महिला का आत्मबल सबसे बडा होता है। यह आत्मबल उसे पीढी दर पीढी मिलता रहता है,महिला के शरीर में ब्लड की जगह संघर्ष दौडता है आसान से उदाहरण है उसका घर मैनेजमेंट उसे दिखाता है। सास-ससुर,जेठ जेठानी देवर देवर पति बच्चे और भी परिवार के लोग,हर व्यक्ति का अलग अलग स्वभाव,उसी हिसाब से उसे उस व्यक्ति को डील करना पड़ता है। यह कार्य हमे मैनेजमेंट सीखता है,यह सीख केवल भरे पूरे परिवार वाली महिलाओं केा बचपन से मिलती है।
एक समय मे कई काम सफलतापूर्वक करना यह हमें हमारे रसोई सीखताी है और आगे की प्लानिंग करना हमें हमारे हिन्दू त्यौहार-व्रत सीखाते है। परिवार की महिलाओं पर यह जिम्मेदारी होती है इसलिए प्लानिंग संघर्ष और काम को फिनिशिंग देकर खत्म करना महिलाओं के डीएनए मे होता है बस उसको आवश्यक है आपके सहयोग की,मेरे पति ने मुझे हमेशा हर कदम हर निर्णय पर सहयोग दिया है।
सहनशील बनो, सोचो समझो फिर करो
युवा पीढ़ी के लिए सुषमा पांडे को कहना है कि सबसे पहले सहनशील बनो। कोई भी घटना है तो घटना के साथ उसका कारण आप देखे हो सकता है कि आप उस घटना से आपको सीखने को मिल सकता है। अपने आप को कभी कमजोर नही समझना,अपने टारगेट को अपनी नजरो में रखो,उसके लिए कागज पर प्लानिंग करो,उस बडे गोल को अचीव करने के लिए छोटे छोटे टारगेट सेट करो और प्रतिदिन जैसे सूर्य भगवान कर्म करने की शिक्षा देते है उसी प्रकार उस टारगेट के लिए चलो। दौड़ने से सफलता नही मिलेगी,थक जाओगे,वॉक करो चार कदम चलो,अव्यय मिलेगी।
मां मेरी आइडल है,अपने काम को
अपने जीवन की आइडल बताते हुए कहा कि मेरी मां मेरी लिए आइडल थी,उस उनका वह चेहरा वह संघर्ष उस जमाने में घघूट कर पढाने जाना,उस दृश्य को याद कर में अपने काम में लग जाती हूंं। सुबह साढ़े पांच से उठकर अपने काम में लग जाना यह मेरा प्रतिदिन का नियम है। अपने आप के लिए समय कैसे निकलता है इस प्रश्न पर कहा कि पूरा समय मेरा है। मेरा व्यायाम मेरा है मेरी भगवान की सेवा मेरी है,हर काम में इंज्याय के साथ करना मेरी आदत है।
आधुनिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा बहुत आवश्यक है
नैतिक शिक्षा अर्थात चरित्र का निर्माण,मनुष्य के भाग्य का निर्माण उसका चरित्र करता है। चरित्र ही उसके जीवन में उत्थान और पतन, सफलता और विफलता का सूचक है। अतः बालक को सफल व्यक्ति, उत्तम नागरिक और समाज का उपयोगी सदस्य बनाना चाहते हैं तो उसके चरित्र का निर्माण किया जाना परम आवश्यक है। आधुनिक शिक्षा हमारे चरित्र का निर्माण नही कर सकती है। हम भारत देश में ऐसे महापुरुषों की जयंती मनाते है जिन्होंने आधुनिक शिक्षा ग्रहण नही की थी। आधुनिक शिक्षा हमे जीवन उर्पाजन में मदद कर सकती है,शिक्षित बना सकती है,नौकरी दिला सकती है लेकिन एक आदर्श जीवन नही दे सकती है।`