शिवपुरी। 84 लाख जीव योनि में भटककर मानव जीवन मिलता है। दुर्लभ मानव जीवन पुण्य के प्रभाव से मिलता है और यह इतना अनमोल है कि देवता भी इसे प्राप्त करने के लिए तरसते हैं। क्योंकि भगवान बनने का रास्ता सिर्फ और सिर्फ मानव जीवन से ही संभव है। देवता भी मानव जीवन प्राप्त करने के लिए तरसते हैं। क्योंकि देवता अपने पुण्यों के प्रभाव से सिर्फ भोग कर सकते हैं।
लेकिन पुण्यों का अर्जन करना उनके लिए संभव नहीं है। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन साध्वी श्री मंजिता श्री जी महाराज ने स्थानीय पोषद भवन में आयोजित एक धर्मसभा में व्यक्त किए। साध्वी मंजिता श्रीजी थाना 2 दिल्ली से पद बिहार कर शिवपुरी पहुंची है। पोषण भवन में कल 17 मार्च को सुबह 9 बजे से उनके नियमित प्रवचन होंगे।
धर्म सभा में साध्वी मंजिता श्रीजी ने बताया कि पहले तो मनुष्य भव मिलना दुर्लभ है और मनुष्य भव मिल जाए तो आर्य देश मिलना मुश्किल है और आर्य देश भी मिल जाए तो जैन कुल मिलना मुश्किल है और जैन कुल मिलने के बाद भी ईश्वर के प्रति भक्ति और श्रृद्धा मुश्किल है। उन्होंने कहा कि जब सब संयोग आपके अनुकूल हो गए हैं तो इसका उपयोग कर आप अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
भगवान महावीर स्वामी की वाणी को रेखांकित करते हुए साध्वी मंजिता श्रीजी ने कहा कि ईश्वत्व की यात्रा के लिए राग और द्वेष से मुक्ति आवश्यक है। जीवन के उत्थान में दोनों ही बाधक हैं। उन्होंने कहा कि इस संसार में जन्म लिया है तो जीवन के दायित्वों को तो निभाना पड़ता है। साथ-साथ रहना पड़ता है लेकिन हमेशा यह अनुभव करना चाहिए कि यह संसार हमें अपनी आत्मा की उन्नति के लिए मिला है।
ताकि नर से नारायण तक की यात्रा की जा सके। संसार के दायित्वों को निभाने के साथ ही हमें अपनी आत्मा के लिए भी समय निकालना चाहिए। यह मानव जीवन माता-पिता और ईश्वर के आशीर्वाद से मिला है। उनके प्रति कृतज्ञता का भाव मन में होना चाहिए। ईश्वर पूजा के साथ-साथ ईश्वर के गुणों को भी हमें आत्मसात करना चाहिए।
हमारा धर्म सिर्फ मंदिर तक सीमित न हो बल्कि वह हमारे जीवन का अंग बने। सभी के प्रति संवेदनशीलता, दया, करूणा का भाव मन में हो। यहीं ईश्वर प्राप्ति का मार्ग है और इसी से हम अपने मानव जीवन को सार्थक बना सकते हैं। भौतिक उपलब्धियां हमारे साथ नहीं जाएंगी। धर्म ही हमारे जीवन का उत्थान करेगा।