शिवपुरी। शिवपुरी में वन अधिकार अधिनियम के तहत आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा ग्राम विनेगा में तीन आदिवासियों को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के हाथ से वन अधिकार के पट्टे दिलाने का बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर हुआ है। आदिम जाति कल्याण विभाग ने जिन आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के पट्टे जारी किए हैं उनके नाम पहले से ही राजस्व के रिकॉर्ड में जमीन दर्ज हैं। ऐसे में भू.स्वामी आदिवासियों को भूमिहीन बताकर पट्टों का वितरण किया गया है।
जानकारी के अनुसार 16 दिसम्बर को जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान शिवपुरी आए थे उस समय कई आदिवासियों को वन अधिकार अधिनियम के पट्टे वितरित किए गए थे। जिन लोगों को पट्टे जारी किए गए हैं उनमें सुघरा पत्नी बाबू आदिवासी, कमलेश पत्नी घनश्याम पुत्र टिल्लू आदिवासी, कुसुम पत्नी अमृतलाल पुत्र दौजी आदिवासी के नाम शामिल हैं। इन तीनों को भूमिहीन बताकर सतनवाड़ा रेंज के कम्पार्टमेंट क्रमांक पी.969 में कृषि भूमि के पट्टे प्रदाय किए गए, जबकि वास्तविकता यह है कि तीनों के नाम पर राजस्व विभाग के दस्तावेजों में जमीन दर्ज है।
सुघरा पत्नी बाबू आदिवासी के नाम खसरा नंबर 641, 642, 630, 643ध्मिन1 ग्राम विनेगा तहसील सुभाषपुरा, कमलेश पत्नी घनश्याम पुत्र टिल्लू आदिवासी के नाम खसरा क्रमांक 584 ग्राम विनेगा तहसील सुभाषपुराए खसरा क्रमांक 52 ग्राम ढकरोरा खोरघार तहसील शिवपुरी कुसुम पत्नी अमृतलाल पुत्र दौजी आदिवासी के नाम खसरा नंबर 584 ग्राम विनेगा में जमीन दर्ज है। ऐसे में यह लोग भूमिहीन कैसे हो गए, कुल मिलाकर प्रशासनिक अधिकारियों ने बड़ी सूझबूझ के साथ सीएम के समक्ष शाबासी हासिल करने के लिए बड़ा फर्जीवाड़ा किया है।
1 साल पहले की तारीख में जारी किया गया पट्टा
खास बात यह है कि जो पट्टा सीएम के हाथों 16 दिसम्बर को वितरित कराया गया हैए वह पट्टा 1 फरवरी 2021 की तारीख में जारी किया गया है। ऐसे में यह प्रतीत होता है कि या तो अधिकारियों ने फर्जीवाड़ा करने की हड़बड़ी में गलत तारीख अंकित कर दीए अथवा पुरानी तारीख में पट्टा जारी किया गया है। कुल मिलाकर दाल में कुछ काला तो है।
जिस जमीन का पूर्व से पट्टा, उसी पर पुन: पट्टा कैसे,
यहां उल्लेख करना होगा कि सतनवाड़ा रेंज के कम्पार्टमेंट क्रमांक पी.969 पर जहां यह पट्टे जारी किए गए हैं। उक्त जमीन पर पूर्व में 5 मई 2015 को सामुदायिक वन अधिकार के तहत पट्टा जारी किया गया था। ऐसे में विचारणीय पहलू यह है कि जिस जमीन का पूर्व में ही पट्टा दिया जा चुका है, उक्त जमीन का पट्टा दुबारा से कैसे दे दिया गया, यहां भी प्रशासनिक अधिकारियों की लापरवाही उजागर हुई है।
सुप्रीम कोर्ट के स्थगन के बावजूद जारी किए पट्टे
यहां बताना होगा कि पी.969 की भूमि पर सामुदायिक वन अधिकार अधिनियम के पट्टे जारी होने के उपरांत कुछ आदिवासी परिवारों ने यहां पर प्रधानमंत्री आवास के पक्के मकानों का निर्माण कर लिया। इस संबंध में एक याचिका एनजीटी न्यायालय में लगाई गई। उक्त याचिका की सुनवाई के उपरांत न्यायालय ने 15 फरवरी 2019 को आदेश जारी करते हुए प्रशासन को स्पष्ट निर्देश दिए थे कि अधिकारी वन भूमि पर बनाए गए मकानों को हटाने के संबंध में कार्रवाई करे और वन भूमि को उसकी मूल प्रकृति में हरा.भरा करने के लिए पुनर्स्थापित करे।
एनजीटी के कोर्ट के न्यायालय के आदेश के खिलाफ कुछ परिवारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई। इस अपील पर 5 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्थगन आदेश देते हुए यथास्थिति रखने के आदेश दिए थे। ऐसे में विचारणीय पहलू यह भी है कि सुप्रीम कोर्ट के स्थगन एवं यथास्थिति के आदेश के बावजूद यहां नए पट्टे कैसे जारी कर दिए गए,
तीसरी बार जारी किए गए हैं पट्टे
यहां उल्लेख करना होगा कि जिन लोगों को अभी पट्टे जारी किए हैं, उक्त लोगों को पूर्व में फरवरी.मार्च 2017 में प्रशासन ने दो.दो बीघा के पट्टे जारी किए थे। इसके बाद प्रशासन ने नियमों को ताक पर रख कर 22 जून 2017 को सुघरा आदिवासी, घनश्याम आदिवासी को तथा 28 जून 2017 में अमृतलाल आदिवासी को पट्टा जारी किया गया था। जब इस मामले में तूल पकड़ा तो प्रशासनिक अधिकारियों ने दो.दो बीघा जमीन के पट्टे वाली प्रक्रिया को निरस्त कर दिया। खास बात यह है कि सेटेलाइट इमेज में वर्ष 2004 से अब तक उक्त लोगों द्वारा जमीन पर कहीं भी खेती करना प्रतीत नही हो रहा है। सेटेलाइट इमेज में स्पष्ट रूप से जंगल नजर आ रहा है। इसके बावजूद एक बार फिर नियमों को खूंटी पर टांग कर पुन: पट्टे जारी किया जाना कहां तक उचित है।
ये बोले जिम्मेदार
.यह मामला मेरे संज्ञान में भी लाया गया है। मुझे कुछ लोगों ने इसकी शिकायत दर्ज कराई है। मैं इस मामले को दिखवा रहा हूं। अगर कहीं कुछ गलत किया गया है तो मामले में उचित वैधानिक कार्रवाई की जाएगी।
अक्षय कुमार सिंह
जिला कलेक्टर शिवपुरी