भगवान शांतिनाथ की जिस मूर्ति में लोग पत्थर मारकर मन्नत मांगते थे, उस मूर्ति पर प्रोफेसर P W गुड लिखेंगे नोबेल- Shivpuri News

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शिवपुरी।
जैन धर्म में 24 तीर्थंकर है। भगवान शांतिनाथ की एक ही मूर्ति में 24 तीर्थंकरों के दर्शन करने वाले लंदन के आर्कियोलॉजी प्रोफेसर पी डब्लू गुड अब इस मुर्ति पर नोबेल लिखेंगें। छतरी जैन मंदिर में विराजे भगवान शांतिनाथ की मूर्ति का इतिहास काफी रोचक ओर पुराना हैं। इस मूर्ति पर लोग पत्थर मारकर अपनी मन्नत पूरी करते थे। इस मूर्ति को वापस लाने के लिए शिवपुरी के जैन समाज को काफी संघर्ष करना पड़ा था।

यह बोले मंदिर में पहुंचकर लंदन के आर्कियोलॉजी प्रोफेसर पी डब्लू गुड

मेरा नाम प्रोफेसर पीडब्ल्यू गुड है। मैं लंदन यूनिवर्सिटी से हूं वहां, सेंट ऑफ जैन स्थली का चेयर पर्सन हूं। 3 साल पहले जब दिगंबर जैन धर्म की मध्यकालीन विरासत और जैन परंपरा को देखने इंदौर आया तब समाचार पत्र में भगवान शांतिनाथ की इन खड्गासन मूर्ति को देखा। ऐसा अद्भुत कलाकृति को देखने का भाव लंबे अरसे से मन में था, लेकिन यह पता नहीं था कि यह मूर्ति मध्यप्रदेश के किस हिस्से में विराजमान है। पता करता हूं उससे पहले ही कोरोना लग गया। और इंडिया आना नहीं हुआ।

जब भारत आया तो सबसे पहले भगवान शांतिनाथ की मूर्ति के बारे में पता किया और किसी ने राजकुमार जैन जड़ी-बूटी शिवपुरी बालों का पता बताया। पूछते-पूछते गुरुद्वारा रोड स्थित छतरी जैन मंदिर पहुंचा। जहां भगवान शांतिनाथ की अति प्राचीन प्रतिमा को देखा तो मन प्रफुल्लित हो उठा। मूर्ति के परिकर को देखा तो इसमें कुंथुनाथ और अरनाथ की प्रतिमाओं के अलावा शेष अन्य तीर्थंकरों की छोटी.छोटी प्रतिमाएं थी।

जिस से ज्ञात हुआ कि एक ही परिकर मैं 24 तीर्थंकर विराजमान है। इस अकल्पनीय और अद्भुत मूर्ति को देख मन प्रफुल्लित हुआ।अब पूर्ण अध्ययन के उपरांत इस पर एक नोबेल भी लिखूंगा। यह बातचीत दैनिक भास्कर के संवाददाता और प्रवक्ता जैन समाज शिवपुरी से संजीव बाझंल को प्रोफेसर पीडब्ल्यू गुड ने बताया।

यह है इतिहास इस प्रतिमा का-पत्थर मारकर करते थे विश पूरी

छतरी जैन मंदिर ट्रस्ट कमेटी के अध्यक्ष राजकुमार जैन जड़ी.बूटी, महामंत्री प्रकाश जैन और ट्रस्टी प्रेमचंद जैन ने मूर्ति के इतिहास के बारे में बताया कि इस मूर्ति को अशोकनगर जिले के ईसागढ़ के पास स्थित कदवाया के इंदौर गांव से सन 2001 में राज्य शासन की लिखित अनुमति मिलने के बाद शिवपुरी लाया गया था।

वैद्य रतन चंद जैन जड़ी बूटी का व्यवसाय करते थे, इसलिए जंगल भ्रमण के दौरान उन्होंने इस मूर्ति के दर्शन किए तो देखा लोग पत्थर मारकर मूर्ति का अविनय कर रहे हैं। गांव वालों का कहना है कि पत्थर मारने से उनकी इच्छा पूर्ति होती है। मूर्ति की स्थिति देख वैद्य जी ने अपने बेटे राजकुमार जैन को पूरी बात बताई और फिर ट्रस्ट महामंत्री प्रकाश जैन और उनके साथियों ने मिलकर मूर्ति लाने का प्रयास शुरू किया।

तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के कार्यकाल में राज्य शासन और पुरातत्व की सहमति से यह मूर्ति शिवपुरी जैन समाज को सन 2001 में प्राप्त हुई। उड़ीसा के कारीगरों ने इस मूर्ति पर काम कर मूर्ति के क्षरण हुए हिस्से को बेहतर बनाया और सन 2008 में मुनि विमर्श सागर महाराज के सानिध्य में आयोजित हुए पंचकल्याणक के माध्यम से मूर्ति यहां स्थापित हुई। तब से लेकर अब तक प्रतिदिन इसकी पूजा अर्चना होती हैए और लोग मूर्ति के दर्शनार्थ देश-विदेश से दर्शनार्थी शिवपुरी आते हैं।

इनका कहना है
शिवपुरी छतरी जैन मंदिर से फोन आया कि कोई अंग्रेज मंदिर के दर्शन करने आए हैं जब मंदिर पहुंचे तो उन्होंने अपना परिचय दिया और बताया कि वह लंदन से हैं और मध्यकाल की जैन प्रतिमाओं पर अध्ययन कर रहे हैं भगवान शांतिनाथ की मूर्ति देखकर वह बेहद प्रभावित हुए और उन्होंने इस पर अब नोबेल लिखने की बात कही है।
.संजीव बांझल, प्रवक्ता जैन समाज शिवपुरी।