शिवपुरी। किसी आकाश छूती इमारत का गौरव उसका शिखर नहीं, बल्कि उसकी नींव होती है। नींव या फाउंडेशन जितनी मजबूत हो उतनी ही इमारत बुलंदियों को छूती है। यदि आप वृद्धाश्रम में जाने से बचना चाहते हो तो अपने बच्चों की नींव मजबूत करो। यह नींव अच्छी शिक्षा से नहीं, बल्कि अच्छे संस्कारों से मजबूत होगी।
उक्त प्रेरणास्पद उद्गार आराधना भवन में विशाल धर्मसभा को संबोधित करते हुए प्रसिद्ध जैनाचार्य कुलचंद्र सूरी जी महाराज के सुशिष्य पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी महाराज ने व्यक्त किए। जैन संत ने बताया कि जन्म हमारे हाथ में नहीं है यह निर्णय हम नहीं कर पाते हैं, लेकिन अपने जीवन को बनाना और उसे सुधारना हमारे हाथ में है।
प्रसिद्ध फुटबॉल खिलाड़ी रॉनाल्डो के वचन को दोहराते हुए संत कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि गरीबी में जन्म लेना दुर्भाग्य नहीं है, बल्कि गरीबी और दीनावस्था में अपने जीवन को समाप्त करना दुर्भाग्य है। इसके पूर्व आचार्य कुलचंद्र सूरि जी ने मांगलिक पाठ का लाभ सभी धर्मपे्रमियों को दिया।
धर्मसभा में पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी बाल मुनि ने महाभारत के प्रमुख पात्र ज्येष्ठ पांडव कर्ण के जीवन चरित्र पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कर्ण ने अपने पुरुषार्थ और प्रज्ञा से अपने जीवन को महान बनाया जिससे परिचय और आत्मीयता हुई, उस आत्मीयता को अपने जीवन की बाजी लगाकर अंतिम क्षण तक निभाया।
उन्होंने कहा कि पुण्य हमारे हाथ में नहीं, लेकिन पुरुषार्थ हमारे हाथ में है। आप जैसा जीवन वर्तमान में जी रहे हैं वह आपकी चाह का नतीजा है। उसी तरह हमारी प्रज्ञा हमारे जीवन को तय करती है। महाराजश्री ने कहा कि आपका परिचय किन लोगों से है उससे भी आपका जीवन तय होता है।
जीवन को कैसे सुधारा जाए, इस पर चर्चा करते हुए बाल मुनि ने कहा कि जिन बच्चों की संस्कार रूपी फाउंडेशन मजबूत होती है वह जीवन पथ पर सुगमता से आगे बढ़ सकते हैं और ना केवल अपने जीवन,बल्कि अपने सगे संबंधियों और परिचितों के जीवन को भी स्वर्ग बना सकते हैं।
महाराज श्री ने कहा कि विश्व के सर्वाधिक धनाढ्य लोगों में से एक दुबई के राजा शेख मोहम्मद बिन राशिद भी संस्कारों को धन से अधिक महत्व देते हैं। वे कहते हैं कि अपने बच्चों को इस तरह से तैयार करो ताकि किसी भी तकलीफ में वे हताश न हों और चुनौतियों का वह मजबूती से सामना कर सकें। कर्ण के जीवन की महानता का वर्णन करते हुए
संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि हर परिस्थिति को ठीक ढंग से अपने पक्ष में नियंत्रित करने की अद्भुत सामथ्र्य थी। सत्ता और संपत्ति से ऊपर उन्होंने हमेशा रिलेशन को महत्व दिया। कौरवों के पक्ष में खड़ा होने के बावजूद भी उन्होंने अपनी अच्छाईयों को नहीं छोड़ा और उन जैसा दानवीर तो इस दुनिया में कोई दूसरा नहीं है। कर्ण का उदाहरण हमें सिखाता है कि तमाम उपेक्षा, प्रताडऩा और अपमान के बावजूद अपनी अच्छाईयों से किस तरह से उन्होंने अपने जीवन को महान बनाया।
अपने अनुयायियों के निवास स्थान पर पहुंचकर उन्हें दिया आशीर्वाद
निरंतर चार माह तक शिवपुरी में जिनवाणी की गंगा प्रवाहित करने वाले आचार्य कुलचंद्र सूरि जी और उनके सुशिष्य पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी 8 नवम्बर को चातुर्मास समाप्ति के पश्चात स्थान परिवर्तन हेतु समाधि मंदिर के लिए विहार करेंगे, लेकिन इसके पूर्व वह अपने अनुयायियों की विनती और आग्रह पर उनके निवास स्थान पर पहुंचकर उन्हें आशीर्वाद प्रदान कर रहे हैं।
इसी कड़ी में जैन संतों ने गौतम बिहार और श्रीराम कॉलोनी में अपने कट्टर भक्त सुनील सांड, अशोक कोचेटा और अशोक मुनानी के निवास स्थान पर पहुंचकर उन्हें सपरिवार आशीर्वाद दिया।