दीपावली पर अपने घरो के साथ साथ अपने अंदर की भी सफाई करोः बाल मुनि- Shivpuri News

Bhopal Samachar
शिवपुरी। 84 लाख जीव यौनि में मानव जीवन मिलना अत्यंत दुर्लभ है। जीवन का उत्थान सिर्फ मानव जीवन में ही संभव है। लेकिन जो भी व्यक्ति अमूल्य मानव जीवन के अवसर का लाभ नहीं उठा पाता और इसे यूं ही व्यर्थ में गंवा देता है, वहीं सही मायने में पापी है।

उक्त उद्गार प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने स्थानीय आराधना भवन में भगवान महावीर स्वामी की अंतिम वाणी उत्तराध्ययन सूत्र का विश्लेषण करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि मानव जीवन में हर पल आनंद के लिए है। जिससे जीवन जीते जी स्वर्ग बन सके।

बकौल बाल मुनि मानव जीवन मेंं यदि किसी का बुरा करने की बात तो अलग लेकिन भला करने की सामर्थ्य है फिर भी भला न कर पाएं तो यह पाप है। धर्म सभा में संत कुलरक्षित विजय जी, साध्वी शासन रत्ना श्री जी, साध्वी अक्षय नंदिता श्रीजी आदि भी उपस्थित थीं।

दीपावली पर्व कैसे मनाएं इसे बताते हुए संत कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि यह पर्वू बहुत अनूठा है। इसमें अपने आवास, मंदिर स्थानक और गुरु स्थान की सफाई तो अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। लेकिन इसके साथ.साथ अपने अंदर की सफाई भी अत्यंत आवश्यक है।

ताकि भीतर जमे हुए कषाय जैसे काम, क्रोध, मान, माया लोभ, राग, द्वेष आदि से मुक्ति मिल सके। जीवन को नर्क बनाने का काम यही कषाय करते हैं। इसके साथ.साथ अपने आस.पास की सफाई भी करें। उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए बताया कि आपके जीवन में यदि कोई ऐसा व्यक्ति है, जो नकारात्मक प्रवृत्ति का है अथवा जिसकी सोच खराब है अथवा वह बुरी लतों से ग्रसित है, तो ऐसे व्यक्ति से दीपावली पर अपना पल्ला झाड़ लें,उन्होंने कहा कि बुरी संगत से बड़े.बड़े ऋषि मुनि भी नहीं बच पाते आम आदमी की बिसात क्या है।

दृष्टि बदलने से समस्या का समाधान हो जाता है

संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि हम जीवन में कुछ नहीं बदल सकते। हमारे हाथ में तो सिर्फ हमारी दृष्टि है। दृष्टि ठीक नहीं है तो समस्या है और दृष्टि ठीक कर ली तो समाधान है। उन्होंने कहा कि जब यह सोच लो कि मैं सही और आप गलत तो समस्या है।

लेकिन जब दृष्टि बदल ली और कहा आप सही मैं गलत हूं तो समाधान है। संत कुलदर्शन विजय जी ने त्याग क्यों आवश्यक है, इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि त्याग से संतुष्टि मिलती है, जबकि भोग से असंतुष्टि। यहीं कारण है कि अच्छे.अच्छे अरबपति बिलगेट, मार्क जुकरवर्क आदि भोग से दृष्टि मोड़कर त्याग की ओर आगे बढ़ रहे हैं।