शिवपुरी। भगवान महावीर ने अपनी अंतिम देशना उत्तराध्ययन सूत्र में जीवन को बचाने के लिए खरी.खरी बातें कहीं हैं। उन्होंने कहा था कि चाहे संयम धारण कर चुके साधु पुरुष हों या श्रावक कोई भी अपने आप पर अधिक भरोसा न करे।
इस भ्रम में न रहें कि संसार के प्रलोभन और आकर्षण हमें विचलित नहीं कर सकते। मन को यदि नहीं साधा गया तो अच्छे.अच्छे त्यागी तपस्वी संस्कारी और सज्जन पुरुष भ्रष्ट हो सकते हैं। उक्त उदगार प्रसिद्ध जैन संत कुलदर्शन विजय जी ने उत्तराध्ययन सूत्र का विश्लेषण करते हुए व्यक्त किए। आराधना भवन में आयोजित इस धर्मसभा में उन्होंने बताया कि हमारी परम्परा में नववर्ष 1 जनवरी को नहीं बल्कि कार्तिक सुदी एकम और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है।
धर्मसभा में संत कुलरक्षित विजय जी और साध्वी शासन रत्ना श्रीजी अक्षय नंदिता श्रीजी आदि भी उपस्थित थीं।
संत कुलदर्शन विजय जी ने भगवान महावीर की देशना का उल्लेख करते हुए बताया कि इस संसार में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी यात्रा अकेले करनी पड़ती है। जीवन में उसका कोई भी नहीं है। कोई भी आपको रोग, मौत और दुख से नहीं बचा सकता। संसार एक रंगमंच की भांति है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होती है। लेकिन यह अभिनय भीतर गहराई तक नहीं जाना चाहिए। आत्मा में यह प्रतीति होना चाहिए कि मैं संसार में सिर्फ नाटक का एक पात्र हूं।
संसार में किसी की भूमिका भी स्थाई नहीं है। महाराज श्री ने बताया कि संसार में जितना आप चीजों से लगाव बढ़ाएंगे उतना ही अपने आप को दुखी करेंगे। भगवान महावीर स्वामी की अंतिम वाणी का जिक्र करते हुए मुनि कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि इस संसार में कोई भी व्यक्ति अलग प्रवृत्ति का नहीं है। ऐसा नहीं कि कोई विशिष्ट और कोई सामान्य है। यह भावना यदि हम आत्मसात करें तो जीवन से अहंकार तिरोहित हो जाएंगा। वहीं संसार में किसी की भी अवहेलना नहीं करना चाहिए।