शिवपुरी। कूनो नेशनल पार्क में 17 सितंबर को चीता प्रोजेक्ट का शुभारंभ देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों होगा। इस प्रोजेक्ट की अब उल्टी गिनती शुरू हो चुकी हैं। पीएम के कूनो आने के कारण देश की मीडिया की निगाहे कूनो पर लगी है।
कूनो देश का पहला चीता अभ्यारण्य बनने की ओर हैं। देश में 70 साल बाद कुनो की धरा पर कदम रखेगा। 1952 में चीता देश की विलुप्त प्राणी की लिस्ट में जगह बना चुका था,लेकिन अब 70 साल बाद अफ्रीका से चीता भारत आ रहा हैं। सबसे बड़ा सवाल की कूनो ही क्यों,क्या खास है कूनो में चीता के रहवास के लिए आइए जानते हैं।
कब शुरू हुई इस अभियान की शुरुआत
भारत में चीतों के विलुप्त होने के बाद सरकार 1972 में वाइल्डलाइफ ;प्रोटेक्शन, एक्ट लेकर आई। इसमें किसी भी जंगली जानवर के शिकार को प्रतिबंधित कर दिया गया। साल 2009 में राजस्थान के गजनेर में वाइल्डलाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया की ओर से एक वर्कशॉप का आयोजन किया गया, इसमें चीतों को भारत में वापस लाए जाने की मांग की गई। इस वर्कशॉप में केंद्र सरकार के मंत्री और अधिकारी के साथ कई एक्सपर्ट भी मौजूद थे। ऐसे में इस बात को लेकर सहमति बन गई। बैठक में देशभर में कुछ जगहों को चिन्हित किया गया जहां इन चीतों का वापस लाया जा सकता है।
एक्सपर्ट ने सुझाव दिया कि देश में गुजरात, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ ही ऐसी जगहें हैं जहां का वातावरण चीतों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है, इन राज्यों में एक्सपर्ट ने 10 जगहों को चिन्हित भी कर लिया। बैठक में सुझाव दिया गया कि छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास नेशनल पार्क गुजरात में बन्नी ग्रासलैंड्स, मध्यप्रदेश में डुबरी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, संजय नेशनल पार्क, बागडारा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, नॉराडेही वाइल्डलाइफ सेंचुरी और कूनो नेशनल पार्क, राजस्थान में डेजर्ट नेशनल पार्क वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और शाहगढ़ ग्रासलैंड्स और उत्तर प्रदेश की कैमूर वाइल्डलाइफ सेंचुरी चीतों के लिए सबसे उपयुक्त होगी।
भूगौलिक स्थिती ओर पर्यावरण सटीक है अफ्रिकी चीतो के लिए
चीते को ग्रासलैंड यानी थोड़े ऊंचे घास वाले मैदानी इलाकों में रहना पसंद है खुले जंगलों में घने नहीं,वातावरण में ज्यादा उमस न हो, थोड़ा सूखा रहे इंसानों की पहुंच कम हो तापमान बहुत ठंडा न हो,बारिश ज्यादा न होती होA bu सभी बातों का ध्यान से विश्लेषण करने के बाद पता चला कि कूनो नेशनल पार्क अफ्रीकन चीतों के लिए सबसे उपयुक्त जगह है यहां पर चीतों के सर्वाइव करने की संभावना सबसे ज्यादा है।
कूनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर का इलाका है, जिसमें इंसानों का आना-जाना बेहद कम है, जहां इंसान नहीं रहते, इस नेशनल पार्क का बफर एरिया 1235 वर्ग किलोमीटर है, पार्क के बीच में कूनो नदी (Kuno River) बहती है, पहाड़ियां हैं,जो बहुत तेज ढाल की नहीं हैं यानी चीतों के पास कुल मिलाकर 6800 वर्ग किलोमीटर का इलाका रहेगा अधिकतम औसत तापमान 42-3 डिग्री सेल्सियस रहता है, सबसे न्यूनतम तापमान 6 से 7 डिग्री सेल्सियस रहता है, इलाके में साल भर में 760 मिलीमीटर बारिश होती है।
कूनो नेशनल पार्क में खाने की कमी नहीं
कूनो नेशनल पार्क में कोई इंसानी बस्ती या गांव नहीं हैं, न ही खेती बाड़ी चीतों के लिए शिकार करने लायक बहुत कुछ हैं, जैसे. चीतल, सांभर, नीलगाय, जंगली सुअर, चिंकारा, चौसिंगा, ब्लैक बक, ग्रे लंगूर, लाल मुंह वाले बंदर, शाही,भालू, सियार लकड़बग्घा, ग्रे भेड़िये, गोल्डेन सियार, बिल्लियां, मंगू जैसे कई जीवन यानी चीता जमीन पर हो या पहाड़ पर घास में हो या फिर पेड़ पर उसे की कमी किसी भी हालत में नहीं होगी, नेशनल पार्क में सबसे ज्यादा चीतल मिलते हैं, जिसका, शिकार करना चीतों को पसंद आएगा, नेशनल पार्क के अंदर चीतल की आबादी 38.38 से लेकर 51.58 प्रति वर्ग किलोमीटर है, यानी चीतों के लिए खाने की कोई कमी नहीं है।
कूनो नेशनल पार्क में इंसानों की बस्ती
नेशनल पार्क में पहले करीब 24 गांव थे. जिन्हें समय रहते दूसरी जगहों पर शिफ्ट कर दिया गया. ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ दूसरे स्थानों पर चले गए. इन्हें कूनो नेशनल पार्क के 748 वर्ग किलोमीटर के पूर्ण संरक्षित इलाके की सीमा से बाहर भेज दिया गया है. ये सारे काम 1998 में ही पूरी हो चुके थे. जाते-जाते ग्रामीणों ने अपनी बिल्लियां और कुत्तों को भी जंगल में ही छोड़ दिया था. करीब 500 के आसपास. ये जानव चीता के शिकार बनने लायक हैं।
कितने चीते आ सकते हैं इस नेशनल पार्क में
किसी भी नेशनल पार्क में किसी बड़े शिकारी जीव को तब लाया जाता है, जब शिकारी की संख्या के अनुपात में शिकार मौजूद है. इसके साथ ही नेशनल पार्क का आकार भी जोड़ा-घटाया जाता है. चीते का शिकार आमतौर पर वो जीव होते हैं, जिनका वजन 60 किलोग्राम के आसपास होता है. जैसे चीतों के शिकार के प्रतिशत की गणना करें तो ये 10 फीसदी लंगूरों का ही शिकार कर पाएंगे. नीलगाय या सांभर की पूरी आबादी व 30 फीसदी हिस्सा ही खा सकते हैं. इन सारे गणित और एनालिसिस के बाद एक्सपर्ट्स के मुताबिक कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में 21 चीतों के लिए शिकार है. यानी इतने चीते आ सकते हैं. अगर 3200 वर्ग किलोमीटर में सही प्रबंधन किया जाए तो यहां पर 36 चीते आ सकते हैं. रह सकते हैं और पूरे आनंद के साथ शिकार कर सकते हैं।
क्यों चुना गया नामीबिया के चीतों को
किसी भी देश से दूसरे देश में जंगली जीवों का प्रत्यर्पण करते समय कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है. पहला कि जिस देश से चीता आ रहा है, क्या वह देश लगातार कुछ सालों तक चीतों की सप्लाई करता रहेगा. चीतों का जेनेटिक्स कैसा है. व्यवहार कैसा है. उम्र सही है या नहीं. लिंग का संतुलन कैसा है. साथ ही चीते नामीबिया से आकर मध्यप्रदेश के वातावरण, रहने लायक जगह की स्थिति, शिकार के प्रकार आदि से एडजस्ट कर पाएगा या नहीं. इन मामलों में नामीबिया के चीतों ने ईरान के चीतों को पछाड़ दिया. फिलहाल अगले पांच साल तक चीतों के लिए नामीबिया से समझौता हुआ है. दक्षिण अफ्रीका से डील प्रोसेस में है।