शिवपुरी। यह अनमोल जीवन हमें एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार मिला है। जन्मों.जन्मों तक हमें देव, गुरु और धर्म का सानिध्य मिला है। कई बार धन संपदा, यश और सांसारिक वैभव को प्राप्त किया है। लेकिन हमारी यह यात्रा तब तक व्यर्थ हैए जब तक सिद्ध बुद्ध गति को न प्राप्त कर लिया जाए। पर्यूषण महापर्व उस लक्ष्य तक पहुंचने का एक माध्यम है।
जब तक जीवन में आध्यात्मिक उन्नति नहीं है। तब तक पर्युषण पर्व मनाना सार्थक नहीं है। उक्त उदगार पोषद भवन में पर्युषण पर्व के दूसरे दिन मुनि कुलरक्षित विजय जी महाराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए। आराधना भवन में पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने पर्युषण के अक्षरों का विश्लेषण करते हुए बताया है कि हमारा पर्यूषण पर्व मनाना तब सार्थक होगा, जब जीवन में शत्रुता का अंत और समता का प्रारंभ हो।
धर्मसभा के पूर्व मंदसौर जिले के सुवासरा से पधारे भजन गायक ने गुरु महिमा का सुमधुर स्वर में गुणगान किया। चार्तुमास कमेटी के संयोजक तेजमल सांखला, उप संयोजक प्रवीण लगाए, मुकेश भंडावतए विजय पारख आदि ने धर्मसभा में पधारे विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के पदाधिकारियों को बहुमान किया।
शिवपुरी में आचार्य कुलचंद्र सूरि जी के चार्तुमास के कारण पर्युषण पर्व में जिन वाणी की गंगा प्रवाहित हो रही है। पोषद भवन में स्थानकवासी जैन समाज के समक्ष मुनि श्री कुलरक्षित विजय जी आगम अंतगढ सूत्र का वाचन कर रहे हैं। अंतगढ़ सूत्र में प्रभु महावीर की वाणी है। प्रवचन के प्रारंभ में मुनि श्री कुलरक्षित विजय जी ने बताया कि हमारा जीवन अनेक लोगों के उपकारों की देन है।
लेकिन परमात्मा, माता.पिता और गुरु के उपकारों का कोई मोल नहीं है। उनकी आज्ञा कभी नहीं टालना चाहिए। उन्होंने आगम का महत्व बताते हुए कहा कि आगम की वाणी सुनते समय हाथ नमस्कार की मुद्रा में होना चाहिए। यह हमारे विवेक और संस्कार का प्रतीक है। इसके बाद आराधना भवन में धर्म सभा को संबोधित करते हुए पंन्यास प्रवर कुलदर्शन विजय जी ने कहा कि जीवन में मस्ती, आनंद और बेफिक्री सिर्फ धर्म से ही संभव है।
उन्होंने कहा कि जीवन में शांति और समाधि परमात्मा की आज्ञा के बिना संभव नहीं है। पर्यूषण पर्व के चार अक्षरों की व्याख्या करते हुए मुनि श्री कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि पर्यूषण पर्व के प का अर्थ है कि हमें पर्युषण पर्व प्रभात का अंत और पुरुषार्थ का प्रारंभ करना चाहिए। उन्होंने कहा कि परमार्थ हमें धर्म की ओर उन्मुख होने से अलग करता है।
धर्म बिना प्रसाद के संभव नहीं है। दूसरा अक्षर य की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि पर्यूषण पर्व मनाना हमारा तब सार्थक होगा, जब जीवन में योजनाओं का अंत और यात्रा का प्रारंभ हो जाए। उन्होंने कहा कि हमने अपने आप को भिखारी बना लिया है। हर किसी से याचना करते रहते हैं। परमात्मा से, गुरुओं से और हर किसी से।
पर्युषण पर्व में सूचनाएं बंद होनी चाहिए और धार्मिक यात्रा प्रारंभ होनी चाहिए। पर्यूषण पर्व का ष अक्षय हमें शत्रु का अंत और समता का प्रारंभ करने का संदेश देता है। जबकि अंतिम अक्षर ना का संदेश है कि बहुत जीवन में नाटक कर लिए। तमाम तरह के रूप धर लिए। घर पर कुछ, मंदिर में कुछ, समाज में कुछ तमाम तरह के बहरूपिया धारण कर लिया। अब यह नाटक बंद हो और जीवन में निर्माण का प्रारंभ होए तभी हमारा पर्यूषण पर्व मनाना सार्थक होगा।