शिवपुरी। सफलता पुरुषार्थ और भाग्य से मिल जाती है। लेकिन जीवन की सार्थकता पुण्य उपार्जन से मिलती है, दूसरों के काम आने से मिलती है, इंसानियत का फर्ज निभाने से मिलती है। जब लोग आपके सुख की कामना करने लगे तो समझो जीवन हुआ सार्थक। उक्त शब्द प्रसिद्ध जैन मुनि कुलदर्शन विजय जी के हैंए जो आज आराधना भवन में एक विशाल धर्मसभा में उन्होंने कहे।
जैन संत ने यह भी कहा कि हमारे जीवन में शांति इसलिए नहीं आ रही क्योंकि हम दूसरों के सुख को नहीं देख पाते। धर्मसभा में जैनाचार्य कुलचंद्र सूरि जीए साध्वी शासन रत्ना श्री जी और अक्षय नंदिता श्री जी ठाणा 6 सतियों की भी गरिमापूर्ण उपस्थिति थी।
संत कुलदर्शन विजय जी ने बताया कि जिन लोगों में आत्मावलोकन की सामर्थ्य होती है उन्हीं के जीवन में धर्म का प्रवेश होता है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे मन में कुछ सवाल खड़े हों तो धार्मिक होना मुश्किल नहीं है। सवाल नम्बर 1 . उन्होंने कहा कि सांसारिक चक्र में आप इतने उलझे हुए होए व्यस्तता जीवन को घेरे हुए है। जीवन की गति बहुत अधिक है।
लेकिन सवाल अवश्य उठना चाहिए कि जीवन में गति तो है, परंतु गीत कितने हैं। जीवन में संगीत और आनंद कितना है। यदि नहीं तो ऐसी गति से फायदा क्या महाराज श्री ने कहा कि जीवन की स्पीड बढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन शर्त है कि उससे मन का आनंद कम नहीं होना चाहिए, गीत का लोप नहीं होना चाहिए।
गति बढ़ाना नुकसानदायक नहीं बल्कि गीत का दूर जाना नुकसानदायक है। उन्होंने कहा कि अधिकांश लोग कहते हैं कि जवानी पैसा कमाने के लिए होती है। धर्म तो हम बुढ़ापे में कर लेंगे। तर्क यह रहता है कि जवानी में शरीर में ताकत रहती है और उस समय ही पैसा कमाया जा सकता है। महाराज श्री ने कहा कि उसी तरह धर्म भी तब किया जा सकता है जब शरीर में ताकत हो।
संत कुलदर्शन विजय जी ने कहा मन में दूसरा सवाल यह उठना चाहिए कि हमारे पास शक्ति तो बहुत है। हमारी ताकत के आगे दुनिया झुकती है। लेकिन क्या हमारे पास शांति भी है, समाधि भी है बिना शांति के जीवन का क्या अर्थ और इससे कैसे जीवन होगा सार्थक। शांति कैसे मिलेगी इसे भी स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि शक्ति के सदुपयोग से ही शांति का सृजन होता है।
मन में तीसरा सवाल यह भी उठना चाहिए कि हमारे जीवन में सफलता तो बहुत है। लेकिन सार्थकता कितनी है। उन्होंने कहा कि जिनके जीवन में धर्म हो, उन्हीं का जीवन सार्थक होता है। मानवता की सेवा जीवन को सार्थकता पहुंचने का मार्ग है। महाराज श्री ने अंत में कहा कि यह भी एक सवाल है कि हमारे पास परिवार तो बहुत बड़ा है। आज कल तो सोशल मीडिया पर भी लाखों फॉलोअर्स हैं। लेकिन प्रेम कितना है। बिना प्रेम के बड़े परिवार का क्या अर्थ
पारस पत्थर की तरह भगवान पार्श्वनाथ का नाम चमत्कार की खान है
संत कुलदर्शन विजय जी ने भगवान पार्श्वनाथ के निर्वाण कल्याणक के अवसर पर उन्हें याद करते हुए कहा कि जिस तरह से पारस पत्थर लोहे को सोना बना देता है, उसी तरह भगवान पार्श्वनाथ के नाम के स्मरण से आत्मा परमात्मा बन जाती है।
उन्होंने कहा कि 23वें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के आज सबसे अधिक मंदिर और तीर्थ हैं। भगवान पाश्र्वनाथ नाम के स्मरण से पापों का नाश, रोगों का नाश और जीवन के संशयों का नाश होता है। इससे जीवन, तन और मन पवित्र होता है।